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गजल आज के परिवेश के लिए

12 अप्रैल 2017

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पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए ।

शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका ।

जन्नत,, के धनी "पैर,, कभी सहला न सका । .

दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर,

मैं 'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका । .

बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास' दिला न सका

पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका । .

वो 'भूखी, सो गई 'बहू, के 'डर, से एकबार मांगकर,

मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिला न सका । .

नजरें उन 'बुढी, "आंखों,, से कभी मिला न सका ।

वो 'दर्द, सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका । .

जो हर "जीवनभर" 'ममता, के रंग पहनाती रही मुझे,

उसे "Eid" पर दो 'जोड़, कपडे सिला न सका । .

"बिमार बिस्तर से उसे 'शिफा, दिला न सका ।

'खर्च के डर से उसे बडे़ अस्पताल, ले जा न सका । .

"माँ" के बेटा कहकर 'दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,

'दवाई, इतनी भी "महंगी" न थी के मैं ला ना सका ।

माँ तो माँ होती हे भाईयों माँ अगर कभी गुस्से मे गाली भी दे तो उसे उसका "Duaa" समझकर भूला देना चाहिए|✨,, ✨ मैं यह वादा करता अगर यह पोस्ट आप दस ग्रुप मे भेजोगे तो कम से कम दो लड़के ईस पोस्ट को पढ कर अपनी माँ के बारे मे सोचेंगे जरुर!!!!!!!!

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