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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *ग्यारहवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*दसवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*"हरहुँ कलेश विकार"* के अन्तर्गत *हरहुँ कलेश*
अब आगे :---
*विकार*
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*गोस्वामी तुलसीदास जी* ने *क्लेश* के बाद *विकार* का वर्णन किया है | *विकार* का अर्थ होता है कि जिस प्रकार मनुष्य *संस्कार एवं संस्कृति* से शुद्ध होता है उसी प्रकार *विकृतियो*ं से वह अशुद्ध भी हो जाता है , यही विकृतियां ही *विकार* कही गयी हैं | *विकार* को ही ग्रामीण भाषा में *बिगाड*़ कहा जाता है | *विकार* को और गहराई से समझा जाय तो इसका अर्थ होता है अन्यथा गुणाधान पूर्वक जो परिवर्तन है वही *विकृति* है अन्यथा गुणाधान का अर्थ है कि किसी अन्य विशेषता का जो मूल पदार्थ है उसमें सम्मिलित हो जाना | चाहे *गुण* हो या *दोष* यदि देखा जाय तो *दोष* भी अपने आप में कुछ विशेषता रखता है | जैसे दूध की *विकृति* दही के रूप में हमको प्राप्त होती है | यहां दूध में दूध के अन्यथा गुणों का अभाव होने से इसमें दूध के गुण नहीं रह जाते और वह दही बन जाता है | यह *विकृति* भी एक परिवर्तन है | प्रकृति की *विकृति* गुणों का प्राकट्य है | गुणों की *विकृति* ही पंचमहाभूतादि हैं |
यहां पर प्रश्न हो सकता है कि जब गुभी *विकार* की श्रेणी में आते हैं तो *विकार को हरण* करने की प्रार्थना क्यों की गई ??? इसे इस प्रकार से समझने की आवश्यकता है | *तुलसीदास जी* "मुमुक्षु साधक" हैं | वे जानते हैं कि *जीव* तो ईश्वर का अंश होता है , जैसा कि बाबा जी ने अपने *मानस* में लिखा भी है :--
*ईश्वर अंश जीव अविनाशी !*
*चेतन अमल सहज सुखराशी !!*
यह *जीव* ईश्वर का अंश होते हुए भी संसार में आकर के अनेक प्रकार के *विकारों* के वशीभूत हो जाता है | अनेक प्रकार के *विकारों* ने उसको चक्कर में डाल दिया है | नित्य आनन्द में रहने वाला जीव *क्लेशयुक्त* होकर के दुखों की *भवजाल* में फंस गया है | ऐसा *विकारों* के कारण ही हुआ है | यदि *जीव* के *विकार* दूर कर दिए जायं तो वह शुद्ध बुद्धि मुक्तात्मा के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जाएगा |
इसीलिए *तुलसीदास जी* ने *विकारों के हरण* करने का निवेदन किया है | *क्लेश विकार* कहकर *तुलसीदास जी* ने संकेत किया है कि ये *क्लेश* ही *विकार* है जिसे *हे हनुमान जी* आपको *हरण* करना है | जैसे *अविद्या* के साथ तज्जनित अन्य *क्लेशों* को भी हरण करने की बात उन्होंने कही है उसी प्रकार मात्र *क्लेशों* को ही नहीं बल्कि तज्जनित *विकारों* को भी हरण करने की प्रार्थना की है |
हनुमान जी को *पवन कुमार* की संज्ञा देकर के उनकी समर्थता को सिद्ध करते हुए अपने *विकारों* एवं *क्लेशों* को हरण करने का निवेदन करके *तुलसीदास जी* ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जो समर्थ होता है वही *हरण* कर सकता है और ऐसा करने पर उसे कोई दोष भी नहीं लगेगा | जैसे :--
*समरथ को नहिं दोष गुसाईं !*
*रवि पावक सुरसरि की नाईं !!*
असमर्थ व्यक्ति किसी का भी कुछ भी *हरण* नहीं कर सकता और यदि उसके द्वारा ऐसा किया जाता है तो वह दोषी सिद्ध हो जाता है | *हनुमान जी* को *तुलसीदास जी* ने सर्वसमर्थ एवं ऐश्वर्यवान मान करके ऐसा कहा है | क्योंकि :- *विकृति* से बचाना एवं *हरण* करना दो भिन्न बाते हैं | दूध का दही न बनने देना उसका सुरक्षात्मक उपाय हो सकता है किंतु दही बनने पर पुनः दूध बना देना ही *विकार का हरण* करना है |
*तुलसीदास जी* बहुत ही दूरदर्शी थे उन्होंने पहले *अविद्यादि क्लेशों* का हरण करने की बात कही परंतु उन्हें ध्यान आया कि *विकार* जो कि *विद्यामायामय* भी हो सकते हैं , उनको भी यदि *हनुमान जी* के द्वारा *हरण* करवा लिया जाय तो *मोक्ष का अधिकार पत्र* प्राप्त किया जा सकता है |
*तुलसीदास जी* का सीधा सा भाव है कि *हे हनुमान जी* मैं *रघुवर बिमल यश* का *वरण* करना चाहता हूं उसमें कहीं मेरा दोष भी सम्मिलित ना हो जाय | यदि कहीं *विकार* हो तो आप उसका *हरण* कर लेना क्योंकि मैं जड़ प्राणी होने से :-- *"प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्राणी"* के अनुसार यदि कहीं भूल कर दूँ तो आप उसे दूर कर देना जिससे *रघुवर यश* की निर्मलता बनी रहे |
इस प्रकार *श्री हनुमान चालीसा* का दोहा आज सम्पूर्ण हुआ ! कल *चौपाई* का शुभारम्भ होगा |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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