दिल की बाते गर सुन ले तो ओर भी अच्छा हैउसके बिन अब जीना है प्यार मेरा ये सच्चा है...एक ख्वाब सा आया मुझको, फिर जाने क्यों रूठ गयादिल था पत्थर लेकिन फिर भी,इक फूल&nbs
।। गीत ।। मन विसर्जित कैंसी व्यथा मन आखिर कैंसे बताए तुम्हे... राह डले पुष्प कांटे हुए, छाले कैंसे आखिर बताए तुम्हे..
यह गीत एक प्रिय के लिए है परंतु ये मेने ईश्वर को ध्यान में रखते हुए लिखा हैं, अगर आपकी कोई प्रियतमा हों तो आप उन्हें स्मरण करे और गीत पढ़े, और नही हैं तो जिस ईश्वर को आप प्रेम करते है उन्हे याद करे।
।। गीत ।।आओ मिलने आओ, आंखों खलिश मिटाओ..मैं हूं दीवाना तेरा, तेरी हर इक अदा का,आओ गले लगाओ, कु
तू मेरी दुआओं में रही कश्मीर- ऐ- हिंदुस्तान की तरहहम नाकाम हुये तेरे इश्क में पाकिस्तान की तरह।
आजकल महाराष्ट्र में जो राजनीतिक हलचल मच रही है , एकनाथ शिंदे 40 शिव सेना के विधायकों को लेकर गौहाटी उड़ गये हैं और महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार तथा शिव सेना पार्टी पर खतरे के बादल मंडरा रहे
थोड़ा अराजक थोड़ा सा हिंसक थोड़ा लाचार हूं मुझे माफ करना भारत मैं तेरा अपना ही बिहार हूं मेरी संतति की बुद्धि पर पूरी दुनिया को नाज है मेरे नौजवानों की आसमानों से ऊंची परवाज है "ना
यह पैरोडी "ओ हंसिनी ओ हंसिनी कहां उड़ चली" गीत पर बनाई गई है । एक व्यक्ति की बीवी बहुत मोटी है , बिल्कुल टुनटुन की नानी जैसी । जब वह चलती है तो धरती हिलने लग जाती है । तो उस पत्नी के
कभी क्या श्रमिक-अश्रु तुमने बहाया? पौरुष कहाँ उनके जैसा दिखाया ll बहे स्वेद पानी के जैसा धरा पर l श्रमिक बन जले और कितना यहाँ पर l सूरज की लाली उठे चक्षु खोले, धरा से गगन आज कुछ भी न
प्रभु तुम जग के पालनहार ll हम निरीह सन्तानो का तुम कर दो बेडा पार ll आसमान से विपदा बरसी, अब उठकर के जागो l चीर हरण में जैसे भागे, वैसे उठकर भागो l पेट सभी का जो भरता है, वही हुआ बेकार ll 1ll प्रभु त
गीत -------====----- कठिन है पथ पथिक को पथ से मिलाना है तुम्हें l साध्य को भी साधना के पास लाना है तुम्हें ll स्वर्ग की है कल्पना, इस सत्य को पहचान लो l इस धरा के प्रस्तरों से आज तुम अनजान हो ll
🌷🌷🌷 जब कोई अपना ही.........................बात करने का अंदाज़ बदल ले.............. तो औरों से क्या उम्मीद.....!!!🥀💔🥺🌿🌿🌿🌿🌷जब कोई अपना दूर चला जाता हैं,,,,,,🍁🤍तो बहुत तकलीफ होती हैं,,,,💔🌷
जय जय हे जगत जननी सीता माता जय जय हे जगत नारायणी सीता माता, झोली भर के जाता, जो तेरे दर पे आता। तू सुकुमारी जनक दुलारी मिथिला कुमारी, सारा संसार तेरी महिमा के गुण है गाता। जय जय हे जगत जनन
आओ हम सब दीप जलाएं l अंधकार को दूर भगाएं ll कण-कण में आलोकित हो जग l जन-जन में आभूषित हो जग ll दीप ज्योति का पर्व मनाएं l अंधकार को दूर भगाएं ll भेद-भाव से दूर रहे मन l साथ चलें मिलकर हम सब जन ll
ब्रह्म कमंडल से निकली यह जीवन अमृत धारा है l शिव जट-जूट उलझकर रह गई, वहीं से ही विस्तारा है ll पाल रही हो वसुंधरा को, हरित वर्ण हरियाली है l रूप अनेकों रचित तुम्हारे, अनुपम छटा निराली है ll मन पवित्र
(79) खुली आँखें किसी में मकर मिला फिरता। किसी में भूख भरी पाई। किसी में चोट तड़पती थी। किसी में साँसत दिखलाई॥1॥ किसी में लगन की लहर थी। किसी में था लानत-लेखा। आँसुओं की बूँदों को जब। खोलकर
(69) आँसू और दिल आँसुओ, यह बतला दो, क्यों। कभी झरनों-सा झरते हो। कभी हो झड़ी लगा देते। कभी बेतरह बिखरते हो॥1॥ गिर गये जब आँखों से तब। किसलिए उनको भरते हो। निकल आये दिल से, तब क्यों। फिर जगह
(59) आँख का जल पास अपने कोई पापी। नहीं पाता पावन सोता। बड़े ही बु-बु धाब्बे। अधाम प्राणी कैसे धोता॥1॥ कालिमामय कोई कैसे। कालिमाएँ अपनी खोता। जलन जी की कैसे जाती। जो न आँखों का जल होता॥2॥
(49) आँख की लालिमा उषा-सी लोक-रंजिनी बन। साथ लाती है उँजियाली। अलौकिक कान्ति-कला दिखला। दूर करती है अंधियारा । बना करती है बन-ठन के। छलकती छविवाली प्यारेली। लालिमा विलसित आँखों की। मुँहों क
(39) आँख की लालिमा पूत सम्बन्धा दिव्य मन्दिर में। लाग की आग आ लगाये क्यों। प्रेम की अति ललाम लाली को। क्रोधा की लालिमा जलाये क्यों॥1॥ रंग अनुराग का अगर बिगड़ा। अंधता ही अगर लुभाती है। था भला