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मानव

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रहा, न कैद में।सुवा कैद में रहकर उड़ान भरने की कोशिश करता है।कबूतर ऊँची उड़ान भरकर कैद में खुद चला आता है।उड़ना दोनो चाहते है इस दुनीयाँ में, आदत जो है उड़ने की। एक बंधन तोड़ना सिखाता है दूसरा बंधन में जुड़ना सिखाता है। वही मुर्गा सभी को जगाने की कोशिश किया जिसकी वजह से उसे हलाल होना पड़ा। कुत्ता वफ़ादार हो

वाद को पनपने मत दो।गाँव मे जातिवाद, जिले में गैंगेस्टर, प्रदेश में माववादी, प्रदेश बॉर्डर में नक्सलवादी, देश बॉर्डर में आतंकवादी। इन सब से हारे तो वायरस वाद, इन सब का बाप राजनीतिवाद। यह आम जनता को न जीने देते है न मारने देते है। इन सब का झूठ का पुलिंदा बांधने वाला मीडियावाद, आजकल समाजवाद पर हॉबी है।

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गुम इंसान की आप बीती...मानव तस्करों के जाल से ऐसे मुक्ति मिली दीपक को.....दीपक गवरे पिता प्रेमलाल गवरे नामक मजदूर अंतत: अपने परिवार में वापस तो आ गया लेकिन अपने गुम होने के करीब बीस -बाईस दिन उसने कैसे बितायें यह एक दिलचस्प कहानी है. गुम इंसान की खोज लाश दिखाकर-इस शीर्ष से इस साल के शुरू में दीपक

धर्म धर्म का उफान उठा है, मानव धर्म कोई ना निभाएं। चील, कव्वे, गिध, गधा, कुत्तों का नाम लेकर एक इंसान दूजे को कोसे, पर खुद के अंदर झांकने का इरादा ना पाए। बेटी पिता को बिठा साइकिल पर मीलों सफर कर, अपने गांव घर ले आए। पढ़ें लिखे लोगों के बीच भूख से व्याकुल हथिनी, खानें के नाम पर धोखा खाएं। कदमों के छ

न छेड़ प्रकृति को।गर्मी से झल्लाउ, ठंडी से घबराऊँ।डर वर्षा की बूँदों से छिप जाऊ।गिरते पतझड़ के पत्तो से शरमाऊं। बहे बयार तूफानी गति से आँखे भी अंधी हो जाए। जितना प्यार करु प्रकृति से, उतना ही थर्राऊ।कर प्रकृति का विनाश, महामारी को फैलाया।जब-जब आई महामारी से, हर मानव हरि-हरि चिल्लाया।न छेड़ प्रकृति को व

त्रासदी और मौत बिना रास्ते और पते के ही अपने मुक़ाम तक पहुँच जाती है। पानी, आँग, हवा इनके साथी।मानव मथुरा जाये चाहे काशी।

स्वतंत्रता मिलने के बाद देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई। प्रकारांतर में अखबारों की भूमिका लोकतंत्र के प्रहरी की हो गई और इसे कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के बाद लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ कहा जाने लगा। कालांतर में ऐसी स्थितियाँ बनीं कि खोजी खबरें अब होती

छीटा से मुट्टी-मुठ्ठी भर दाना जोते खेत मे फेको दाना खड़ा गिरे, तिरक्षा गिरे, पेड़ सीधा ही खड़ा होगा। यह खेत की भुरभुरी मिट्टी की ताकत। फिर यह मानव जीवन मे टेड़ा पन कहाँ से पनपता जा रहा है। सबकुछ है तो मानव की मुठ्ठी से। फिर मानव एक दूसरे को नीचा दिखाने में क्यो अड़ता जा रहा है। अपने, अपने को ही नही समझ

सुर संगीतमार काट कर धुन बनाया मानव ने।जिसकी धुन में नाचे अबला नारी।कर सृंगार पहन साड़ी धुन पर नर नाचे।मार मृग की खाल उतार मृदंग बनाया।काट बॉस कर छेद अनेक बासुरी बनाया।घर छोड़ राधा बृज कानन में रास रचाई।कर छेद खाल में हारमोनियम बनाई।बजे जब नागिन लहरा तब हिले कमरिया।सुखा लौकी को मिला बसुुरी बीन बनाया।लै

मापनी- 221 2121 1221 212 (ताराजराजभासलगाराजभालगा) मिश्रितगीता क़ुरान प्रेम ज़रा जान लीजिएlमानव महा प्रयाण विधा ज्ञान लीजिएllदुनियाँ अजीब मित्र मकड़ जाल में फँसी,माया महल विशाल सुधी ठान लीजिएlधरती वियोग अम्बरविधना विचार है,नदियाँ मिले समुंदर स्वर मान लीजिएlमन मापनी विचित्र सखे धर्म वीरताकायर विचार धर

युगो-युगो तक टूट कर गिर जाने सेउम्र कम नहीं हो जाती,आसमान मे चमकोगे तारो की तरह।आकार के छोटा बड़ा हो जाने सेकोई भूल नहीं पाता,ईद-बकरीद,पूर्णिमा, करवाचौथ मे चाँद पूजा जाता।एक रंग मे ऊग कर,उसी रंग मे डूबजाने से औकाद कम नहीं होती।बन आंखो की रोशनी सारेजहाँकी, छठ पर्व मे सम्मानित किया जाता।सूख कर,धूल-बनकर

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 *श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम* 🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲 *जय श्रीमन्नारायण*🦚🦜🦚🦜🦚🦜🦚🦜🦚 *जीवन रहस्य*🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 यह जीवन परमपिता परमेश्वर ने कृपा करके हमें प्रदान किया जिसे पाने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं जितने भी सजीव शरीर हैं उनमें मानव शरीर की महत्ता सबसे अधिक

*🌹श्री राधे कृपा ही सर्वस्वम🌷* *जय श्रीमन्नारायण* आज समाज की दयनीय स्थिति जीवन में अधिक पाने की लालसा का खत्म ना होना जीवन को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है की अंततोगत्वा कोई भी साथ में चलना पसंद नहीं करता दोष दूसरों को देते हैं और अपनी तरफ कभी ध्यान नहीं देते एक दृष्टांत याद आ रहा है एक राजा था

मानव और उसकी सोच यात्रा के समान ही चलती है जिस तरह मानव धन कमाने हेतु विचरन करते रहता है ठीक उसी तरह यात्रा करने के साथ उसकी सोच भी विचरन को विवश रहता है जिस मनःसथिती से वह विचरन कर रहा होता है मानो हर पल वह बेचैन मन से चला करता है कया होगा कैसे होगा यह सब सोचते ही विचलित मन से यात्रा पर चलता रहना ह

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मानव मन की बात ही क्या, पता नहीं कब कौन सी बात उसके मन को भा जाए और कब कौन की बात उसके दिल में घर कर जाए, कहां नहीं जा सकता। कब वह आकाश की ऊंचाइयों को छूने की कल्पना करने लगे और कब वह धड़ाम से जमीन पर आ गिरे। आज तक कोई भी मानव मन की थाह तो क्या, उसके एक अंश को भी नहीं जान पाया। आपका प्रिय आपकी कौन सी

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हितेश भारद्वाज जो कलर्स के सीरियल छोटी सरदारनी में मानव का किरदार निभा रहे है वो अपने इस किरदार को अपने एक्टिंग कैरियर का सबसे बड़ा अवसर मानते है।शो छोटी सरदारनी जिसमें अभी मानव और मेहर (निमृत कौर) की क्यूट सी लव स्टोरी दिखाई जा रही है उसे दर्शकों द्वारा काफी पसंद किया जा

वर्दी विश्वास मानव मे नही उसकी वर्दी मे होता हैं। कुर्सी का कलर एक हो सकता हैं पर वर्दी का नहीं। कुछ बुद्धजीवियों ने यह तय किया की इस कुर्सी के लिए इस कलर की वर्दी जमेगी। जवान, वकील, डॉक्टर, मास्टर, जज, राजा, नेता, किसान सब की एक वर्दी को उनकी योग्यता के अनुसार बनाया लेकिन आज वह वर्दी भी मायने नहीं

और क्या मँगोगे ?महावत से हाथी , तालाब से कमल, किसान से हल,मजदूर से साईकिल, आदिवासियों से तीर कमान, दार्जलिंग से चाय पत्ती, मानव से हाथ, गाँव से लालटेन, आसमान से चाँद तारे रंग चुराए प्रकृति से , यह राजनेता भी कितने अजीब हैं कहते हैं करते नहीं हर चुनाव मे एक नई मुसीबत मांग लेते हैं पूरा नहीं करते।1

एक नज़र इधर भी आँख से नींद बनी,पेट से खेत बना,बच्चे से प्यार बना। जीवन साथी से जीना। क्या रखा हैं इस धनदौलत मे?ये तो हैं मानव के मन को गुमराह करने का बहाना।पूज लो माँ-बाप को जीससे बनी ये काया।क्यों फिरता हैं जग मे, बंदा तू मारा-मारा?दिल, दिमाग, मन चंचल, इससे सब कोई हारा।

अब अपने मनसे जीव।आटा-लाटा ख़ाके, ताजा माठा पीव।देख पराई कमाई, मत ललचाव जीव।हो घर मे जो, उसको खा-पी के जीव।चाईना ने तिब्बतके बॉर्डर मे मिसाईल तान दी।1965 मे सहस्रसिपाहियो ने अपनी बलिदानी दी ।जो घर मे होघीव, देख उसे शकुनसी जीव।देख राजा-नेताओके झगड़े मे, मत जलाओअपना जीव।छोड़-छाड़ जातीधर्म आरक्षण का वहम खुद

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