किल में टंगी गर्दन को भी आजाद होना था। रिस्क लेने, झेलने का दर्द भी बहुत हुआ, अब इसे भी खत्म करना जरूरी था। काम की दुनिया से बंधे थे, जो रिश्ते.. वो भी काम की ही दुनिया में सिमट जाएंगे। बिना हक और जरूरत के रिश्ते कब तक साथ चलेंगे? एक न एक दिन बीतते वक्त की धूल में गुम हो जाएंगे। सब भ्रम के पर्दे एक