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जीवन

11 सितम्बर 2018

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सांसो में आता जाता है

स्पंदन बन चलता जाता है


जीवन तू अंतर मैं मुस्काता है


कभी अश्रु बन के जीता है


कभी स्नेहमय बन जाता है


जीवन तू मौन हो सब कुछ कह जाता है


माँ की ममता बहन का प्यार


और कभी प्रयसी की गुहार


जीवन तू सब कह जाता है


रेशम की झालर सा सहलाता है


व्यथा के अंचल मैं लिपट - लिपट के


आँखों से झर के कह जाता है


जीवन तू सब कुछ अपना जाता है


आराधना राय अरु



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आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

अच्छी रचना है |

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