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कविता क्या होती है

11 मार्च 2017

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सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है,

अक्सर भाव उठते है , जब दुनिया सोती है .

पन्ने फड़फड़ाते है,कलम चलने लगती है.

शब्द चमचमाने लगे है, लगता है मोती है .


सच मानो ! मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है,


गरीब के आंसू ,किसी अबला की छटपटाहट.

रोटी जुटाने में लगे मजदूर की थकावट .

मुझे छू लेती है भीतर तक कहीं,

तब-तब आत्मा रोटी है. सच मानो !


मुझे पता नहीं, कविता क्या होती है,

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