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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022

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मंटो भाई !

तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ और मैं समझती हूँ कि इस कोशिश में कामयाब हूँ। मैं और अच्छे अदीबों के साथ आप के अफ़साने भी बड़ी दिलचस्पी से पढ़ती हूँ। आप से मुझे हर बार नए मौज़ू की उमीद रही और आप ने दर-हक़ीक़त हर बार नया मौज़ू पेश किया। लेकिन जो मौज़ू मेरे ज़ेहन में है वो कोई अफ़्साना निगार पेश न कर सका। यहां तक कि सआदत हसन मंटो भी जो नफ़्सियात और जिन्सियात का इमाम तस्लीम किया जाता है।

हो सकता है वो मौज़ू आप की कहानियों के मौज़ूआत की क़ितार में हो और किसी वक़्त भी आप उसे अपनी कहानी के लिए मुंतख़ब करलें। लेकिन फिर सोचती हूँ कि हो सकता है, सआदत हसन मंटो ऐसा बे-रहम अफ़्साना निगार भी इस मौज़ू से चश्म-पोशी कर जाये। इस लिए कि इस मौज़ू को नंगा करने से सारी क़ौम नंगी होती है और शायद मंटो क़ौम को नंगा देख नहीं सकता।

आप की अदीम-अल-फ़िर्सती के पेश-ए-नज़र मैं इस ख़त को उलझाना नहीं चाहती और साफ़ अल्फ़ाज़ में कह देना चाहती हूँ कि वो मौज़ू है। “हमारे माहौल के मर्दों का कम उम्र लड़कों के साथ ग़ैर-फ़ित्री तअल्लुक़।” मुख़्तसर अल्फ़ाज़ में आप कोई भी इस्तिलाह ले सकते हैं।

मेरा लुब्ब-ए-लबाब यही था................ मैं बहुत अर्से से सोच रही थी कि इस बारे में आप को ख़त लिखूं और आख़िर जुर्रत करली। सिवाए मंटो के और कोई इस मौज़ू को बे-नक़ाब नहीं कर सकता। अगर मेरे क़लम में ज़ोर होता तो मैंने कभी की कहानी लिखी होती।

वस्सलाम!

आप की बहन (मैं यहां असल नाम नहीं दे रहा) नुज़हत शीरीं बी,ए

जब मुझे ये ख़त मिला तो मैं सोचने लगा कि ये लड़की कौन है? मैं कहाँ का माहिर-ए-नफ़्सियत और जिन्सियात हूँ कि उस ने मुझ से रुजू किया।


जब ये ख़त मिला तो इत्तिफ़ाक़ से मेरे दस्त जो इल्म-ए-नुजूम और दोस्त शनासी में शग़फ़ रखते हैं। इस के इलावा रमल और जफ़र के इल्म के भी तालिब हैं तो मैंने उन्हें ये ख़त पढ़ने के लिए दिया और कहा। “वारसी साहब! मैंने इस के मुतअल्लिक़ जो राय क़ायम की है वो महफ़ूज़ है।”

मेरे एक और दोस्त जिन का नाम दोस्त मुहम्मद है। उन से मैं अपनी राय बयान कर चुका था।

वारसी साहब ने ये ख़त पढ़ा और अपने मख़सूस अंदाज़ में मुस्कुरा कर कहा। “ये औरत अगर वाक़ई औरत है और शादीशुदा है............... जोकि होना चाहिए तो इस के ख़ाविंद को अग़लाम बाज़ी का शौक़ है।”

मैंने दोस्त मुहम्मद से यही कहा था। अपनी बीवी से भी। मगर वो मानते नहीं थे............ मेरी बहुत सी बातें लोग नहीं मानते। मैं पैग़ंबर नहीं हूँ, कोई वली भी नहीं....... लेकिन अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ लोगों को समझने की कोशिश ज़रूर करता हूँ।

मैंने भी वही नतीजा अख़ज़ किया था जो मेरे दोस्त वारसी साहब ने किया........... मैंने उन से और दोस्त मुहम्मद से मश्वरा किया कि मैं उस औरत के ख़त का क्या जवाब दूं।

वारसी साहब ने कहा। “मंटो साहब............. आप हम से पूछते हैं? ऐसे ख़तों का जवाब देना आप ही का काम है।”


मैंने उन से पूछा। “वारसी साहब! मेरे लिए ये बहुत मुश्किल है। मैं कोई डाक्टर हकीम नहीं। मैं तो साफ़ साफ़ लफ़्ज़ों में, जो कुछ मुझे कहना होगा, लिख दूँगा।”

उन्हों ने कहा। “तो लिख दो”

“औरत ज़ात है.................कैसे लिखूं?”

“जब वो लिखती है कि मर्दों का कम-उम्र लड़कों के साथ ग़ैर-फ़ित्री तअल्लुक़ होता है.............. तो आप क्यों उस के जवाब में ऐसे ही अल्फ़ाज़ में मुनासिब ओ मौज़ूं जवाब नहीं देते”

मैंने उन से कहा। “मुझे ऐसे मुनासिब ओ मौज़ूं अल्फ़ाज़ नहीं मिलते जिन में उस का जवाब लिख सकूं।”

और ये हक़ीक़त है कि मैं ख़ुद को आजिज़ समझ रहा था.......दोस्त मुहम्मद ने कहा। “मंटो साहब, आप तकल्लुफ़ से काम ले रहे हैं। क़लम पकड़िए और जवाबी ख़त लिख डालिए।”

मैंने क़लम पकड़ा और लिखना शुरू कर दिया।

“ख़ातून मोहतरम!

मैं आप को अपनी बहन बनाने के लिए तैय्यार नहीं। इस लिए कि मुझ पर बहुत से फ़राएज़ आइद हो जाऐंगे। आप मेरे लिए ख़ातून मुहतरम ही रहेंगी। इस लिए कि ये रिश्ता ज़्यादा मुनासिब-ओ-मौज़ूं है।

मुझे औरतों से डर लगता है। हो सकता है कि आप किसी मर्द के भेस में औरत बनी हूँ। लेकिन मैं आप की तहरीर पर एतबार कर के आप को एक औरत तस्लीम करता हूँ।

आप के ख़त से जो कुछ मैंने अख़्ज़ किया है........... वो मैं मुख़्तसरन अर्ज़ किए देता हूँ।

मैं यक़ीनन बे-रहम अफ़्साना निगार हूँ....... मेरे सामने लाखों मौज़ूआत पड़े हैं और जब तक में ज़िंदा हूँ, पड़े रहेंगे। सड़क के हर पत्थर पर एक अफ़साना कुंदा होता है। लेकिन मैं क्या करूं। अगर किसी ख़ास जीते जागते मौज़ू पर लिखूं तो मुक़द्दमे का ख़ौफ़ लाहिक़ है।

आप को शायद मालूम हो कि मुझ पर अब तक छः मुक़द्दमे चल चुके हैं.............. फ़हश निगारी के सिलसिले में......... मेरी समझ में नहीं आता कि फ़हश निगार कैसे क़रार दिया जाता हूँ। जब कि मैंने अपनी ज़िंदगी में एक भी गाली किसी को नहीं दी। किसी की माँ बहन की तरफ़ बुरी नज़रों से नहीं देखा............ ख़ैर ये मेरा और क़ानून का आपस का झगड़ा है। आप को इस से क्या वास्ता।

मैं यक़ीनन बे-रहम अफ़्साना निगार हूँ (जिन माअनों में आप ने बे-रहम इस्तिमाल किया है) आप ने जिस ख़दशे का इज़हार किया है कि मैं शायद आप के पेश-ए-नज़र मौज़ू से चश्म-पोशी कर जाऊं तो ये ग़लत है।

मैं अल्लामा इक़बाल मरहूम के इस क़ौल का क़ाइल हूँ कि

अगर ख़्वाही हयात अंदर ख़तरज़ी

मैंने तो अपनी सारी ज़िंदगी इस शेअर की तौलीद से पहले खतरों में गुज़ारी है और अब भी गुज़ार रहा हूँ।

जो मौज़ू आप के ज़ेहन में है, कोई नया नहीं है............ इस पर इस्मत चुग़्ताई अपने मशहूर अफ़साने लिहाफ़ में लिख चुकी है कि एक औरत के ख़ाविंद को इग़लाम बाज़ी की आदत थी। उस का रद्द-ए-अमल ये हुआ कि उस औरत ने दूसरी औरतों से हम-जिंसी शुरू करदी।

जहां मर्दों में हम-जिन्सियत है, वहां औरतों में भी है............ मैं आप को एक ज़िंदा मिसाल पेश करता हूँ........... बेगम पारा (फ़िल्म ऐक्ट्रस) को तो आप जानती होंगी। उस का तअल्लुक़ प्रोतिमा वास गुप्ता से है।

आप लिखती हैं। “हमारे माहौल के मर्दों का कम-उम्र लड़कों से ग़ैर-फ़ित्री ताल्लुक़................ ”

मैं आप से अर्ज़ करूं, जहां तक मैं समझता हूँ, कोई चीज़ ग़ैर-फ़ित्री नहीं होती। इंसान की फ़ितरत में बुरे सा बुरा और अच्छे से अच्छा फ़ेअल मौजूद है। इस लिए ये कहना ना-दरुस्त है कि इंसान का फ़ुलां फे़अल ग़ैर-फ़ित्री है............. इंसान कभी फ़ितरत के ख़िलाफ़ जा ही नहीं जा सकता, जो उस की फ़ितरत है, वो उसी के अन्दर रह कर तमाम अच्छाईयां और बुराईयां करता है।

मुझे मालूम नहीं, आप शादी शुदा हैं या कुंवारी............ लेकिन मुझे ऐसा महसूस होता है कि आप को कोई तल्ख़ तजुर्बा हुआ है, जिस की बिना पर आप ने मुझे ये ख़त लिखा।

अम्रद परस्ती आज से नहीं, हज़ार हा साल से क़ायम है। लेकिन आजकल इस का रुजहान क़रीब क़रीब ग़ायब होता जा रहा है। उस की वजह ये है कि औरतें मैदान-ए-अमल में आगई हैं।

जब अम्रद-परस्ती ज़ोरों पर थी, तो उस वक़्त औरतें आसानी से दस्तयाब नहीं होती थीं। मर्द भटकते भटकते बाक़ौल आप के कमउम्र लड़कों से ग़ैर-फ़ितरी तअल्लुक़ात क़ायम कर लेते थे............. मगर अब ये रुजहान बहुत हद तक कम होगया है।

आप औरत हैं........... इस लिए आप को मालूम नहीं कि ये कमउम्र लौंडे अब आप के रक़ीब नहीं रहे.......... मैं आप से एक और बात कहूं। जिस चीज़ की तलब हो वही मंडी में आती है............ पहले तलब छोकरों की थी, अब छोकरियों की है।

आप यक़ीनन जानती होंगी कि आजकल होव्वा की बेटियां टांगे में सवार शिकार में मसरूफ़ होती हैं?...............

मैं आप को एक और बात बताऊं.......... एक ज़माना था (आज से बीस बाईस बरस पीछे) जब लाहौर में एक सुख लड़का टीनी सिंह होता था.............. बड़ा ख़ूबसूरत.......... उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल के सामने किसी भी हसीन लड़की के नक़्श मान्द पड़ जाते।

उस ने लाहौर में एक क़ियामत बर्पा कर रक्खी थी। उस के आशिक़ ने उस को एक मोटर कार ले दी, ताकि उसे गर्वनमैंट कॉलिज जाने और घर तक आने में कोई तकलीफ़ न हो।

मैं अब आप को कितने क़िसेसे सुनाऊं............ अमृतसर में (जहां का में रहने वाला हूँ) मेरा एक हिंदू दोस्त है......... अच्छी शक्ल ओ सूरत का था। हम दोनों बैठक में बातें कर रहे थे जो अंदर गली में थी। उस ने एक दम मुझ से चौंक कर कहा। “यार बाहर बहुत शोर हो रहा है। चलो”

मैं कानों से ज़रा बहरा हूँ............ मुझे शोर वोर कोई सुनाई नहीं दे रहा था। बहरहाल मैं उस के साथ हो लिया........ हम बाहर निकले तो बाज़ार की तमाम दुकानें बंद थीं। ऐसा मालूम होता था कि कांग्रेस की किसी तहरीक के बाइस हड़ताल होगई है।

चंद गुंडे हाथ में हाकियाँ लिए फिर रहे थे.............. वो हमारे पास आए, एक गुंडे को मैंने पहचान लिया............. बड़ा ख़तर-नाक था। उस ने बड़ी नर्मी से मेरे हिंदू दोस्त मनोहर से कहा। “बाऊ जी। आप अन्दर चले जाएं। ऐसा न हो कि आप को कोई नुक़्सान पहुंच जाये।”

मनोहर और मैं वापस घर चले आए। मैंने उस से पूछा कि ये क़िस्सा किया है, तो उस ने मुझे बताया कि दो आदमी उस से इश्क़ करते हैं........... बड़ा साफ़ गो था........... एक पटरिंगों के मुहल्ले का था। दूसरा फ़रीद के चौक का...............मनोहर पटरिंग से राज़ी था। इस लिए इन दोनों में लड़ाई हुई और नौबत यहां तक पहुंची कि शाम तक ग्यारह आदमी ज़ख़्मी हो कर हस्पताल में थे और मनोहर बिलकुल ठीक ठाक था।

अब मुझे आप से ये कहना है.............. बल्कि पूछना है कि आप ने मर्दों का कमउम्र लड़कों से ग़ैर-फ़ित्री तअल्लुक़ कैसे जाना?

जैसा कि मैंने और मेरे दोस्त वारसी साहिब ने सोचा है उस की वजह सिर्फ़ यही हो सकती है कि आप का शौहर ऐसे शगल करता होगा............... आप मुझे इस के मुतअल्लिक़ ज़रूर लिखिएगा। मैं ये भी नहीं जानता कि आप शादी शुदा हैं.................. हो सकता है कोई और बात हो।

देखिए मैं आप से एक बात अर्ज़ करूं.............. क़रीब क़रीब हर लड़का अपनी जवानी के अय्याम में ऐसी हरकतें करता है.................... हो सकता है आप ने अपने लड़के के मुतअल्लिक़ ही लिखा हो............ उसे तन्बीह करदेना काफ़ी है............ या उस की शादी कर देना चाहिए। क्योंकि हर आदत पक कर तबीयत बन जाती है............ और ये एक ख़ौफ़-नाक चीज़ है।

जिन्स का एहसास सिर्फ़ बालिग़ आदमियों ही में नहीं। छोटे छोटे बच्चों में भी होता है......... मैं इस के मुतअल्लिक़ तफ़सील से कुछ नहीं कह सकता, इस लिए कि कि उर्दू ज़बान उस की मुतहम्मिल नहीं होगी।

आप ने जो मुझे चैलेंज दिया है, क़बूल है............... मैं अर्से से सोच रहा था कि जो मौज़ू आप ने बताया है, उस पर कोई अफ़साना लिखूं। अब यक़ीनन लिखूंगा, चाहे एक मुक़द्दमा और चल जाये।

आप मुझे अपने मुतअल्लिक़ तफ़सील से लिखिए, ताकि में कोई अंदाज़ा कर सकूं।

ख़ाकसार

सआदत हसन मंटो
 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ
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सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ है कि मंटो की यथार्थ और घनीभूत पीड़ा के ताने-बानो से बुनी गयी हैं। 'बू', 'खुदा की कसम', 'बांझा' काली सलवार, समेत कई ढ़ेर सारी कहानियां हैं। इनमें कई कहानियां विवादित रही। 'बू' ने तो उन्हें अदालत तक घसीट लिया था।
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नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया उस को वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई घास के एक तख़्ते पर लेट कर उस ने ख़ुद कलामी शुरू कर दी। कैसी पुर-फ़ज़ा जगह है हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही नज़रें ओझल इ

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7 अप्रैल 2022
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“मेरी समझ में नहीं आता कि आप को कैसे समझाऊं” “जब कोई बात समझ में न आए तो उस को समझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए” “आप तो बस हर बात पर गला घूँट देते हैं आप ने ये तो पूछ लिया होता कि मैं आप से क्या कहना

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डाक्टर सईद मेरा हम-साया था उस का मकान मेरे मकान से ज़्यादा से ज़्यादा दो सौ गज़ के फ़ासले पर होगा। उस की ग्रांऊड फ़्लोर पर उस का मतब था। मैं कभी कभी वहां चला जाता एक दो घंटे की तफ़रीह हो जाती बड़ा बज़्लास

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सुरय्या हंस रही थी। बे-तरह हंस रही थी। उस की नन्ही सी कमर इस के बाइस दुहरी होगई थी। उस की बड़ी बहन को बड़ा ग़ुस्सा आया। आगे बढ़ी तो सुरय्या पीछे हट गई। और कहा “जा मेरी बहन, बड़े ताक़ में से मेरी चूड़ियो

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गंडा सिंह ने चूँकि एक ज़माने से अपने कपड़े तबदील नहीं किए थे। इस लिए पसीने के बाइस उन में एक अजीब क़िस्म की बू पैदा होगई थी जो ज़्यादा शिद्दत इख़तियार करने पर अब गंडा सिंह को कभी कभी उदास करदेती थी। उस

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चन्द मुकालमे

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“अस्सलाम-ओ-अलैकुम” “वाअलैकुम अस्सलाम” “कहीए मौलाना क्या हाल है” “अल्लाह का फ़ज़ल-ओ-करम है हर हाल में गुज़र रही है” “हज से कब वापस तशरीफ़ लाए” “जी आप की दुआ से एक हफ़्ता होगया है” “अ

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शफ़क़त दोपहर को दफ़्तर से आया तो घर में मेहमान आए हुए थे। औरतें थीं जो बड़े कमरे में बैठी थीं। शफ़क़त की बीवी आईशा उन की मेहमान नवाज़ी में मसरूफ़ थी। जब शफ़क़त सहन में दाख़िल हुआ तो उस की बीवी बाहर निकली

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चूहे-दान

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शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझ से कहा करता है ये एक फ़न है जिस को बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच्च पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उन से यही मालूम होता है क

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चोरी

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स्कूल के तीन चार लड़के अलाव के गिर्द हलक़ा बना कर बैठ गए। और उस बूढ़े आदमी से जो टाट पर बैठा अपने इस्तिख़वानी हाथ तापने की ख़ातिर अलाव की तरफ़ बढ़ाए था कहने लगे “बाबा जी कोई कहानी सनाईए?” मर्द-ए-मुअम्म

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ऊपर नीचे और दरमियान

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मियां साहब! बहुत देर के बाद आज मिल बैठने का इत्तिफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा! जी हाँ! मियां साहब! मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर नाअह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारिय

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क़र्ज़ की पीते थे

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एक जगह महफ़िल जमी थी। मिर्ज़ा ग़ालिब वहां से उकता कर उठे, बाहर हवादार मौजूद था। उसमें बैठे और अपने घर का रुख़ किया। हवादार से उतर कर जब दीवानख़ाने में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि मथुरादास महाजन बैठ

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कबूतरों वाला साईं

20 अप्रैल 2022
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पंजाब के एक सर्द देहात के तकिए में माई जीवां सुबह सवेरे एक ग़लाफ़ चढ़ी क़ब्र के पास ज़मीन के अंदर खुदे हुए गढ़े में बड़े बड़े उपलों से आग लगा रही है। सुबह के सर्द और मटियाले धुँदलके में जब वो अपनी पानी भर

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काली कली

20 अप्रैल 2022
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क़ासिम

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बावर्चीख़ाना की मटमैली फ़िज़ा में बिजली का अंधा सा बल्ब कमज़ोर रोशनी फैला रहा था। स्टोव पर पानी से भरी हुई केतली धरी थी। पानी का खोलाओ और स्टोव के हलक़ से निकलते हुए शोले मिल जुल कर मुसलसल शोर बरपा कररह

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बासित

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बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी

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तीन मोटी औरतें

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एक का नाम मिसेज़ रिचमेन और दूसरी का नाम मिसेज़ सतलफ़ था। एक बेवा थी तो दूसरी दो शौहरों को तलाक़ दे चुकी थी। तीसरी का नाम मिस बेकन था। वो अभी नाकतख़दा थी। उन तीनों की उम्र चालीस के लगभग थी। और ज़िंदगी क

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लालटेन

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मेरा क़ियाम “बटोत” में गो मुख़्तसर था। लेकिन गूनागूं रुहानी मसर्रतों से पुर। मैंने उसकी सेहत अफ़्ज़ा मुक़ाम में जितने दिन गुज़ारे हैं उनके हर लम्हे की याद मेरे ज़ेहन का एक जुज़्व बन के रह गई है जो भुलाये

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क़ुदरत का उसूल

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क़ुदरत का ये उसूल है कि जिस चीज़ की मांग न रहे, वो ख़ुद-बख़ुद या तो रफ़्ता रफ़्ता बिलकुल नाबूद हो जाती है, या बहुत कमयाब अगर आप थोड़ी देर के लिए सोचें तो आप को मालूम हो जाएगा कि यहां से कितनी अजनास ग़ाय

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ख़त और उसका जवाब

20 अप्रैल 2022
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मंटो भाई ! तस्लीमात! मेरा नाम आप के लिए बिलकुल नया होगा। मैं कोई बहुत बड़ी अदीबा नहीं हूँ। बस कभी कभार अफ़साना लिख लेती हूँ और पढ़ कर फाड़ फेंकती हूँ। लेकिन अच्छे अदब को समझने की कोशिश ज़रूर करती हूँ

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ख़ुदा की क़सम

20 अप्रैल 2022
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उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला न

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ख़ुशबू-दार तेल

20 अप्रैल 2022
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“आप का मिज़ाज अब कैसा है?” “ये तुम क्यों पूछ रही हो अच्छा भला हूँ मुझे क्या तकलीफ़ थी ” “तकलीफ़ तो आप को कभी नहीं हुई एक फ़क़त मैं हूँ जिस के साथ कोई न कोई तकलीफ़ या आरिज़ा चिमटा रहता है ” “य

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मम्मी

20 अप्रैल 2022
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नाम उसका मिसेज़ स्टेला जैक्सन था मगर सब उसे मम्मी कहते थे। दरम्याने क़द की अधेड़ उम्र की औरत थी। उसका ख़ाविंद जैक्सन पिछली से पिछली जंग-ए-अ’ज़ीम में मारा गया था, उसकी पेंशन स्टेला को क़रीब क़रीब दस बरस से

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इश्क़-ए-हक़ीक़ी

20 अप्रैल 2022
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इ’श्क़-ओ-मोहब्बत के बारे में अख़लाक़ का नज़रिया वही था जो अक्सर आ’शिकों और मोहब्बत करने वालों का होता है। वो रांझे पीर का चेला था। इ’श्क़ में मर जाना उसके नज़दीक एक अज़ीमुश्शान मौत मरना था। अख़लाक़ तीस

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यज़ीद

20 अप्रैल 2022
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सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुज़र गए। बिल्कुल उसी तरह जिस मौसम में ख़िलाफ़-ए-मा’मूल चंद दिन ख़राब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्ज़ी समझ कर ख़ामोश बैठा रहा। उसने उस तूफ़ान का मर्दाना

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उल्लू का पट्ठा

20 अप्रैल 2022
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क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ चला। रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उसके दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी

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अब और कहने की ज़रुरत नहीं

20 अप्रैल 2022
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ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता

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नया क़ानून

20 अप्रैल 2022
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मंगू कोचवान अपने अड्डे में बहुत अक़लमंद आदमी समझा जाता था। गो उसकी तालीमी हैसियत सिफ़र के बराबर थी और उसने कभी स्कूल का मुँह भी नहीं देखा था लेकिन इसके बावजूद उसे दुनिया भर की चीज़ों का इल्म था। अड्ड

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