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किसान

30 नवम्बर 2018

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दिन भर सूरज से बाते करता ,

खुद भूखा रहता हे फिर भी कर्मरत -

हे वह निरंतर

दिन भर तपता ,सूरज की गर्मी में देखता -

क्या दम सूरज में की दे दे वो शाम को

दो दाने वो ान के

भर दे शायद वो पेट उनका भी जो -

बैठे हे एकटक बाट ज़ोह किसी अपने की

(ये ऐसी केसी हालत हे ,

अपने अन्नादाता की

और हम क्यों नहीं कुछ करते,

बददलने हालत अपने ही भगवान की )

--

( जब होगा ही न अन्न

तो फिर क्या होगी हालत,चाहे हो

तन या की )

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दिन भर सूरज से बाते करता , खुद भूखा रहता हे फिर भी कर्मरत - हे वह निरंतर दिन भर तपता ,सूरज की गर्मी में देखता - क्या दम सूरज में की दे दे वो शाम को दो दाने वो ान के भर दे शायद वो पेट उनका भी जो - बैठे हे एकटक बाट ज़ोह किसी अपने की (ये ऐसी केसी ह

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