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लॉक डाउन - और कितना लम्बा

6 अप्रैल 2020

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आइए एक उदाहरण से समझते हैं कि आपके मेरे आने वाले कुछ महीने कैसे बीतने वाले हैं।


मान लीजिए 21 दिन पूरे हो गए। सरकार ये घोषणा करे कि अब भारत भर में एक भी कोरोणा पॉजिटिव नहीं है। वायरस का साइकल टूट गया है। लोक डाउन, कर्फ्यू आदि इंपोज करने का लक्ष्य पूरा हुआ। अब सब ठीक है। आप पहले कि तरह बाहर आ सकते हैं। आराम से बेखौफ घूमिए। कोई चिंता नहीं है।


मज़ाक लग रहा है ना ??


मज़ाक ही था।


अब जब ये मज़ाक था तो इसका मतलब हम सब ये मान के ही चलें कि कि लोक डाउन के बाद भी पॉजिटिव मरीज हमारे बीच ही होंगे। अगर 10,20 या 50 भी हुए तो 21 दिन लोक डाउन में रहने का हम सब त्याग बेकार ही जाएगा। क्यों कि पहले भी शुरुआत एक पॉजिटिव पेशंट से ही हुई होगी। अब तो 1 से ज्यादा ही होंगे। मतलब खतरा बरकरार रहेगा।


लोक डाउन का उद्देश्य तभी पूरा होगा अगर ये साइकल टूट जाता है और हम धड़ल्ले से कह सके कि खतरा टल गया है। फिलहाल ये होता नजर नहीं आ रहा। क्यूं कि अब तक जितने भी पॉजिटिव मरीज थे उन तक पहुंच जाना चाहिए था और पॉजिटिव मरीजों की संख्या कम होनी शुरू हो जानी चाहिए थी। नए लोग संक्रमित ना हो इसीलिए तो लोक डाउन कर्फ्यू लगाया गया था। पर अभी तक तो हमारे यहां नए से नए पॉजिटिव भी एड हो रहे हैं। इतना ही नहीं, नए पॉजिटिव मिलने की रफ्तार कई गुना हो चली है।


एक पक्ष ये भी है कि पॉजिटिव मरीजों की संख्या के बढ़ने को प्रशासन की असफलता के रूप में भी देखा जा सकता है। अगर 21 दिनों के लोक डाउन के पूर्ण होने के बाद भी 14 दिन के साइकल वाले वायरस का खात्मा नहीं हो पाता तो निस्संदेह भारतभर में लोगों ने अंदर डटे रहने का जो साहस दिखाया वो बेकार ही जाएगा।


साफ है। या तो लोक डाउन आगे बढ़ाया जाएगा या फिर अमेरिका रणनीति अपनाई जाएगी कि प्राण जाए पर अर्थव्यवस्था ना जाए।

भारत में निस्संदेह प्राणों की सलामती को ही तरजीह दी जाएगी।

तो तैयार रहिए। अंदर जमे रहने के लिए।

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