सोशल मीडिया. वो प्लेटफॉर्म, जिसने 2014 में बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने का रास्ता बनाया. मुख्यत: फेसबुक और ट्विटर. पिछले दो हफ्ते से सोशल मीडिया पर लोग केंद्र सरकार को हांक रहे हैं कि वो केरल की ज़्यादा मदद क्यों नहीं कर रही है. सरकार की आलोचना के लिए लोग यही तर्क इस्तेमाल कर रहे हैं कि वो विज्ञापन के लिए तो हज़ारों करोड़ खर्च करती है, फिर केरल को 600 करोड़ में क्यों टरका रही है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि सरकार ने इनकार किया हो कि वो केरल को इससे ज़्यादा पैसे देगी नहीं. लेकिन जब तक नहीं दे रही है, तब तक तो सवाल उठेंगे. इसी बीच सूचना-प्रसारण मंत्रालय की तरफ से एक RTI का जवाब आया है, जिसमें मंत्रालय ने बताया है कि 2017-18 के साल में सरकार ने विज्ञापन पर कितना पैसा खर्च किया है. जतिन देसाई नाम के एक सज्जन ने RTI के ज़रिए सरकार से पूछा था कि उसने पिछले साल विज्ञापन पर कितना खर्चा किया. RTI गई सूचना प्रसारण मंत्रालय के पास. फिर मंत्रालय के आउटरीच और संचार ब्यूरो की तरफ से जवाब आया.
ब्यूरो के जवाब के मुताबिक सरकार ने 2017-18 के बीच प्रिंट मीडिया में विज्ञापन पर 632.18 करोड़ रुपए खर्च किए. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विज्ञापन के लिए 475.11 करोड़ और आउटडोर मीडिया पर 208.54 करोड़ रुपए खर्च किए. यानी एक साल में सरकार ने विज्ञापन पर कुल 1,315.83 करोड़ रुपए खर्च किए.
वैसे जतिन ने इन चीज़ों के अलावा ये भी पूछा कि सरकार ने फॉरेन मीडिया में विज्ञापन पर कितना खर्च किया, लेकिन ब्यूरो की तरफ से जवाब आया कि इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. यानी अगर इसका डेटा उपलब्ध होता, तो ये रकम 1,315.83 करोड़ रुपए से भी ऊपर निकल जाती.
फॉरेन मीडिया पर खर्च के डेटा के बिना भी ये आंकड़ा केंद्र द्वारा बाढ़-पीड़ित केरल को दी गई 600 करोड़ रुपए की मदद से दोगुने से भी ज़्यादा है. सरकार को विज्ञापन करना था, उसने कर दिया. हमने जानकारी देनी थी, हमने दे दी. अब ये जनता डिसाइड करे कि विज्ञापन ज़रूरी है या बाढ़ पीड़ितों की मदद.