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हमारी प्यारी बेटियाँ

28 सितम्बर 2018

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"बेटियाँ "कहते है बेटियाँ लक्ष्मी का रूप होती है ,घर की रौनक होती है। ये बात सतप्रतिस्त सही है। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता कि बेटियाँ ही इस संसार का मूल स्तंभ है। वो एक सृजनकर्ता और पालनकर्ता है। प्यार और अपनत्व की गंगा बेटियों से ही शुरू होती है और बेटियों पर ही ख़त्म हो जाती है। लेकिन आज हमारा बिषय हमारी प्यारी बेटियों पर नहीं है बल्कि बेटियों के " बेटी से बहु " बनने के सफर पर है।

क्या आज हमारी बेटियाँ एक अच्छी पत्नी,एक अच्छी बहु या अच्छी माँ बन पा रही है। चलिये , मैं आप को आँखो देखी घटना बता कर इस बिषय को समझने और समझने का प्रयास कर रही हूँ। मेरे एक परिचित है उनके एक बेटा और एक बेटी है। बड़ा ही खुशहाल परिवार , माँ बाप बेटी के पुरे नाज़ नखरे उठा कर बड़े लाढ़ प्यार से पाल थे। किसी भी चीज़ में बेटे से कुछ कम नहीं किया। दोनों भाई बहन की शादी भी एक साल के अंतर पर कर दिया था। बेटी की शादी में तो उन्होंने अच्छा खासा खर्च भी किया था यहां तक की क़र्ज़ में भी डूब गए थे। एक दिन मैं उनके घर गई तो देखा उनकी बेटी आई हुई है। औपचारिकता के बाद मैंने उससे पूछा - तो बेटा कितने दिनों के लिए आई हो ? उसने जबाब दिया - हमेशा के लिए आंटी। मैं थोड़ी सकपका के बोली - ये क्या कह रही हो ? उसने बड़ी ही वेतक्लुफी से कहा - सच कह रही हूँ आंटी,मैंने अपने पति को तलाक दे दिया,मेरा उससे नहीं निभा । जबाब सुन कर मैं सन्न रह गई,क्या बोलती। माहौल थोड़ा भरी सा लगने लगा तो बात बदलने के लिए मैंने पूछा - बहनजी आप की बहु कहा है नज़र नहीं आ रही है। उन्होंने कहा - वो भी अपने मयके चली गई हमेशा के लिए उसने भी तलाक का नोटिस भेज दिया है। मैं आवक रह गई और तुरंत वह से उठ कर चली आई।

इस घटना के कुछ ही दिनों पहले एक और घटना हुई थी। मैं अपनी दोस्त के साथ उसके बेटे की शादी तय करने गई थी। लड़का और लड़की वालो की एक मीटिंग थी। मेरी दोस्त को सिर्फ एक बेटा है उसके पति गुजर चुके है तो वो मुझे अपने साथ ले गए थी। सब कुछ तय था बस एक औचारिकता भर थी वो मीटिंग। जब हम सब बैठे बाते कर रहे थे ,सगाई और शादी के तारीख तय किये जा रहे थे तभी अचानक से लड़की लड़के से बोल पड़ी - "शादी के बाद हम seprate कब होंगे ". लड़के ने आश्चर्य से पूछा - what do you mean ?लड़की ने बड़ी वेतक्लुफी से कहा - "इसमें ना समझने वाली कौन सी बात की है मैंने,शादी के बाद हमारा अपना अलग घर तो होगा ही "लड़के ने कहा - "अरे यार हमारे साथ माँ के अलावा और कौन है"। लड़की ने कहा - " माँ तो है न , हमारी प्राइवेसी कहा रहेगी"। ये सारी बाते सब लोगो के सामने हो रही थी। लड़के की माँ बात को सँभालते हुए बोली - अरे बेटा,आप को प्राइवेसी चाहिए तो मिलेगी न ,हमारा दो फ्लोर का मकान है एक में मैं रह लुगी एक में आप दोनों रह लेना। लड़की ने तपाक से जबाब दिया - अरे नहीं मम्मी जी इसमें प्राइवेसी कहा रही आप की नज़र तो हर पल हम पे रहेगी न। बेचारी माँ के पास कोई जबाब नहीं था। लड़की के फैमिली वाले सब सुन रहे थे लेकिन चुप थे। लड़के ने माँ का हाथ पकड़ा और कहा -चलो माँ मैं यह शादी नहीं करुगा , जो लड़की चंद साल जिन्दा रहने वाली मेरी माँ की देखभाल नहीं कर सकती वो सारी उम्र मेरी और मेरे बच्चो की देखभाल क्या करेगी।मैंने दोस्त को सहारा देकर उठाया, बेटे की पीठ थपथपाई और उठ कर चलने का इशारा किया। इस घटना के चंद दिनों बाद एक दिन लड़की के माँ से मेरी मुलाकात हो गई। मैंने कहा -आपने अपनी लड़की को समझाया नहीं? तो लड़की की माँ बड़ी बेरुखी से बोली - समझाना क्या था जी,क्या मेरी बेटी सारी उम्र उस बुढ़िया की सेवा करती रहती उसकी अपनी ख़ुशी नहीं है क्या। मैं दंग रह गई. मैंने सोचा जब गोदाम ही ऐसा है तो माल केसा होगा। मैंने पूछा - आप का भी तो एक बेटा है न उसकी शादी कब कर रही है। वो चहकती हुई बोली - हां जी ,मैं तो उसके लिए बड़ी सुघड़ बहु लाऊँगी जो हमारी देखभाल करे और परिवार संभाले। मैंने कहा - वो तो संभव नहीं है जी। उसने पूछा - "क्यों नहीं है जी" मैंने कहा - अजी उस लड़की की माँ भी तो यही कहेगी कि -मेरी बेटी सारी उम्र उस बुढ़िया की सेवा क्यों करेगी, इसी दिन के लिए तो मैंने अपनी बेटी को इतने नाज़ो से नहीं पाला ,आखिर वो भी तो अपने माँ बाप की लाड़ली होगी। वो औरत मेरा मुँह देखती रह गई और मैं वहां से निकल ली।

ये दोनों घटनाये ऐसी थी जिसने मेरे अंतर मन को झकझोर दिया। मैं ये सोचने पर मज़बूर हो गई कि -आखिर ऐसा क्यूँ हो रहा है ? मेरे खुद के मुहल्ले में अगर दस लड़किया ब्याही गई है तो उनमे से आठ मायके वापस आ गई है और जो दो ससुराल में है उन्होंने ससुराल वालो और पति तक का जीना हराम कर रखा है।

मैं जानती हूँ मेरा ये बिषय थोड़ा उलझा हुआ (complicated )है। जो शायद बहुतो को पसंद ना आये और वो मुझसे सहमत भी ना हो।लड़कियों को तो शायद मेरी ये बात बिलकुल ही पसंद न आये। क्युकि आज कल नारी जागरण की बहुत बड़ी बड़ी बाते हो रही हैं। लेकिन मैं चिंतित हूँ। मैं खुद एक औरत हूँ और सिर्फ एक बेटी की माँ भी हूँ। (मेरी दूसरी कोई संतान नहीं है )फिर भी मैं ये मानती हूँ की लड़किया जो कर रही है गलत कर रही है। मैं ये निष्पक्ष भाव से कह रही हूँ। सोचने वाली बात है की इस समस्या की शुरुआत कैसे हुई। बेटियां जो प्यार और ममता की मूर्ति होती थी,बेटियां जो सम्बन्धो को जोड़ने और संभालने वाली डोर होती थी वो खुद आज एक कटी पतंग कैसे बन गई ?जो आज बेपरवाही से हवा में उडी जा रही है उन्हें नहीं पता और ना ही फ़िक्र है कि वो अपने डोर से टूटी है तो कहा गिरेगी, कीचड़ में ,खाई में या बाग बगीचे में। मुझे लगता है की बेटियों के इस बदले हुए स्वरूप के जिम्मेदार हम है। कही न कही हमसे चूक हुई है। इसमें बेटियों का कोई कसूर नहीं है। इंसानी प्रकृति है की हम जो करते है अति करते है। गौतम बुद्ध ने कहा है कि -"अति किसी भी चीज़ की बुरी है और निम्नता भी इसीलिए हमे हमेशा माध्यम मार्ग अपनाना चाहिए तभी हमारा कल्याण हो सकता है। "जैसे वीणा के तार को यदि अधिक तनाव से बंधा जाये तो वीणा बजाते वक़्त तार टूट जाती है और अगर तार थोड़ी ढीली हुए तो सुर बिगड़ जाता है। इसलिए कुशल सगीतकार वीणा के तार को माध्यम तनाव में बांधता है और उससे मनमोहक संगीत उत्पन करता हैअब अगर शुरू से देखे तो औरतो पर अत्याचार हुआ वो अति हुआ,उन पर संस्कार के नाम पर पावंदिया लगी वो भी अति लगी। समाज और दहेजप्रथा के डर से कन्या भूर्ण हत्या शुरू हुई तो वो भी एक चलन बन अति हुआ। समाज और औरतो में जागरूकता आई और औरतो को सम्मान और आज़ादी मिलने लगी तो वो भी भारतीय संस्कृति की सारी सीमाओं को पार कर रहा है। हमारी पीढ़ी ने बेटियों का महत्व समझा और उन्हें बेटो से अधिक लाढ -प्यार दे कर पला ,उनकी हर ख़ुशी,हर फ़रमाइस पूरी की तो उसमे भी हमने अति कर दी।

उन्हें हर ख़ुशी देते वक़्त हम उन्हें ये समझाना भूल गए कि -बेटा जी ,जो ख़ुशी हम आप को दे रहे है वो आगे आप को बाटना भी होगा। बेटियों से हमारा घर रोशन रहा लेकिन हमने उन्हें ये नहीं समझाया कि -बेटा ये रोशनी तुम्हे अपने जीवन में हमेशा कायम रखनी है और वो तभी होगा जब तुम अपने दूसरे घर को भी अपनी रोशनी से भरोगी। हमने उन्हें ये नहीं सिखाया कि -बेटा हम आप की हर फ़रमाइस पूरी कर रहे है,तुम्हे हर ख़ुशी दे रहे है तो अपने माँ के घर से जो तुम ले रही हो उससे आगे बांटना तुम्हारी ख़ुशी बढ़ेगी,कभी कम नहीं होगी। लेकिन ऐसा हमने नहीं किया और हमारी बेटियों ने सिर्फ लेना सीखा देना नहीं, उन्हें सिर्फ अपनी ख़ुशी समझ आई दुसरो की तकलीफ नहीं। हमने अपनी बेटियों को पूर्णता दी साझेदारी नहीं सिखाई,अपनी खुशिया पूरी करने की आज़ादी दी लेकिन दुसरो की खुशियों का ख्याल भी रखना है ये नहीं बताया। उनके मुँह से कोई बात निकली नहीं की हमने पूरी की और उन्हें सब्र करना भी नहीं सिखाया।

ये सारी की सारी गलती हमारी है। यही कारण है कि आज जब बेटियाँ बहु बनके दूसरे घर जाती है तो न वो एक अच्छी बहु बन पाती है ,न पत्नी और यह तक की एक अच्छी माँ भी नहीं पाती। क्युकि वे हर जगह अपनी ख़ुशी अपना स्वार्थ ही देखती है। पति से उन्हें ढेरो उम्मींदे रहती है लेकिन पति के ख़ुशी लिए उन्हें क्या करना है इसका ज्ञान नहीं। हमने उन्हें हर जिम्मेदारी से दूर रखा इसलिए वो अपने बच्चे की जिम्मेदारी उठाने में भी परेशान हो जाती है। बहुओ पर सास के अत्याचार हुए तो वो भी अति हुए थे और आज सास स्वसुर द्वारा बहु को ढेर सारा प्यार देने के वावजूद बहुये उन्हें माँ बाप का दर्जा देना तो दूर उन्हें सबसे पहले घर से अलग करना चाहती है। यही कारण है कि बृद्धाआश्रम की सख्यायें बढ़ती जा रही है। जो बेटियाँ हमारे घर की सूरजमुखी रहती है वो बहु बनकर जब दूसरे घर जाती है तो ज्वालामुखी क्युँ बन जाती है और अपने ही हाथो अपने संसार को आग लगा लेती है। आज के दौड़ में यदि आप ध्यान से अपने चारो तरफ के माहौल को देखेंगे तो पाएंगे कि दस में से नौ घर सुलग रहे है। पश्चिमी सभ्यता की तरह आये दिन तलाक की घटनाये बढ़ती जा रही है। क्योकि जो लड़की घर की आधार,उसकी रोशनी होती है वही घर जला रही है। जो सृजनकर्ता है वही विनाश पर उतारू हो जाये तो धरती ज्वालामुखी बनेगी ही। ऐसा नहीं है कि इसमें लड़को की गलती नहीं है लेकिन घर बनना और उसे बसना लड़किया ही सम्भव करती आई है,लड़के घर नहीं बसाते।

हो सकता है कि मैं आप सब के नज़र में गलत हूँ लेकिन आज कल के माहौल को देख मैं चिंतित हूँ मेरी भी एक बेटी है जिसे मैंने अच्छे संस्कार दिए है। लेकिन नहीं जानती कि समाज में चलने वाली इस तेज़ आँधियो में मेरी बेटी भी अपना घर बसा पायेगी या देखा देखीं के चलन में वो भी अपने घर को आग लगा लेगी। मैं चिंतित हूँ.................

कामिनी सिन्हा

कामिनी सिन्हा

बहुत बहुत धन्यबाद शोभा जी जो आपने मेरा लेख पढ़ा ,दिन - ब - दिन जो समाज की स्थिति बिगड़ती जा रही है ,और माँ -बाप के साथ बच्चे जो व्यवहार कर रहे वो चिंता जनक है .हो सके तो समय निकल कर मेरा लेख बृद्धाआश्र्म बनाम सेकेण्ड इनिंग होम जरूर पढ़िएगा आप जैसे अनुवावी की राय काफी मायने है .सादर नमन

23 अक्टूबर 2018

शोभा भारद्वाज

शोभा भारद्वाज

कामिनी जी मैं एक ऐसी माँ को जानती हूँ जिसके बेटे बहू कुछ दूरी पर रहते हैं अपने माँ को तब अपने घर बुलाते हैं जब उनके बच्चे बीमार होते हैं या उनकी मेड नहीं आती रात को काम खत्म होने के बाद घर भेज देते हैं माँ धन्य होती हैं वह अपने बच्चों की जरूरत बनी उनकी मार्किटिंग करती हुई सबसे कहती है मेरे बेटे ने मुझे ओला से घर भेजा जवकि वह महिला स्वयं भी कही आती जाती है ओला से जाती है उसके घर में अपनी गाडी भी है कुछ बेटे बहू अपने बच्चे को सुबह माँ के घर छोड़ जाते हैं शाम को खाना खाने के बाद चलने लगते हैं माँ से एक नहीं बच्चे को लेकर अनेक सवाल करते हैं माँ पिता हर सवाल का जबाब देने के लिए मजबूर है

22 अक्टूबर 2018

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्छा लेख है |

30 सितम्बर 2018

रेणु

रेणु

जी सही कहा आपने -- समाज में इस संकुचित सोच से सुसंस्कारों का अस्तित्व खतरे में हैं | आभार

29 सितम्बर 2018

रेणु

रेणु

प्रिय कामिनी जी - यदि मैं कहूं कि आपने वही अक्षरशः लिख दिया जो मैं अक्सर सोचा करती हूँ तो अतिश्योक्ति ना समझिये | मुझे भी ईश्वर ने एक बिटिया दी है | सावधान हूँ अपनी तरफ से कोशिश भी करती हूँ कि वह पारिवारिक मूल्यों का निर्वहन करने में पारंगत हो सुदक्ष गृहिणी बने | अभी उन्नीस साल की उम्र में उसे घर बसाने का हर हुनर देने की कोशिश करती हूँ और आपकी ही तरह समाज में इस या उस प्रकार की लडकियाँ देखती हूँ जिनका जिक्र आपने अपने सुंदर लेख में किया है साथ में डरती भी हूँ कि बेटे के लिए कोई उस प्रकार की लडकी जीवन में आ गयी तो क्या हो ? इसलिय मैं मेरी बेटी को वही देखना और समझाना चाहती हूँ जिसके लिए मैं आशा कर रही हूँ | सबसे बड़े कमी नजर आती ही माँ बाप में कि वो ये सोचते ही नहीं बिटिया सास - ससुर के साथ ना सही अगर अकेली भी रहेगी तो घर कैसे बसायेगी सारी उम्र माता - पिता साथ ना होंगे तो क्या उसे तकलीफ ना होगी ? और दोहरी मानसिकता रखते हुए हम भूल जाते हैं कि दामाद के माता पिता भी उससे वाही उम्मीद रखेंगे जो हम अपने बेटे से रखते हैं | लेकिन आप को एक बात जरुर कहना चाहूंगी कि हमें अपने संस्कारों पर पूरा भरोसा रखना होगा ताकि उनकी फसल कभी ना मुरझाये | आपके सुंदर विचार परक लेख के लिए आपको हार्दिक बढाती देती हूँ और सारे चिंतन पर अपनी सहमती देती हूँ | सस्नेह --

28 सितम्बर 2018

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टूटते - बिखरते रिश्ते

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आज कल के दौड के टूटते बिखरते रिश्तो को देख दिल बहुत वय्थित हो जाता है और सोचने पे मज़बूर हो जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?आखिर क्या थी पहले के रिश्तो की खुबिया और क्या है आज के टूटते बिखरते रिश्तो की वज़ह ? आज के इस व्यवसायिकता के दौड में रिश्ते

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परिवर्तन या पीढ़ियों में अन्तर

23 जून 2018
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उम्र के तीसरे पड़ाव में हूँ मैं .बचपन और जवानी के सारे खुबसुरत लम्हो को गुजर कर प्रौढ़ता के सीढ़ी पर कदम रख चुकी हूँ .तीन पीढ़ियों को देख लिया है या यूँ कहे की उनके साथ जी लिया है. बदलाव तो प्रक्रति का नियम है इसलिए घर परिवार, संस्कार और समाज में भी निरंतर बदलाव होत

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समंदर - " मेरी नज़र में "

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क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं .सागर दिन में तो बिलकुल शांत और गंभीर होता है. ऐसा लगता है जैसे अपने अंदर अनको राज छुपाये ,अपना विशाल आँचल फैलाये एक खामोश लड़की हो जिसने सारे जहान के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियो को अपने दामन मे समेट रखा है. ले

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प्रकृति और इंसान

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नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है. यही हमारे जीवन के आधार भी है. ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तातपर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है. जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है .लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है

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हर पल सिखाती ज़िंदगी

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दोस्तों,मैं कोई शायरा,लेखिका या कवित्री नहीं हूँ। मैंने जवानी के दिनों में डायरी के अलावा कभी कुछ नहीं लिखा। हां, बचपन से कुछ लिखने की चाह जरूर थी। लेकिन किस्मत कुछ ऐसी रही कि छोटी उम्र से ही जो पारिवारिक जिमेदारियो में उलझी तो उलझी ही रह गई। उम्र के तीसरे पड़ाव में आ

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आत्ममंथन

27 जुलाई 2018
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आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट कर रो रही थी और खुद को कोसे भी जा रही थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाटा ही कभी

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स्वतंत्रता दिवस -" एक त्यौहार "

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15 ऑगस्त " स्वतंत्रता दिवस " यानि हमारी आज़ादी का दिन .हां ,सालो गुलामी का दंस झेलने के बाद ,लाखो लोगो के कुर्बानियो के फ़लस्वरुप हमे ये दिन देखने नसीब हुए .हम हिन्दुस्तानियो के लिए हर त्यौहार से बड़ा सबसे पवन त्यौहार है ये . यकीनन होली, दिवाली

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फुर्सत के चंद लम्हे -"एक मुलाकात खुद से "

18 अगस्त 2018
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फुर्सत के चंद लम्हे जो मैं खुद के साथ बिता रही हूँ। घर से दूर,काम -धंधे,दोस्त - रिस्तेदार से दूर,अकेली सिर्फ और सिर्फ मैं। हां,आस बहरी दुनिया है कुछ लड़के - लड़किया जो मस्ती में डूबे है,कुछ बुजुर्ग जो अपने पोते - पोतियो के साथ खेल रहे है,कुछ और लोग है जो शायद मेरी तरह ब

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रक्षाबंधन -" कमजोर धागे का मजबूत बंधन "

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सावन का रिमझिम महीना हिन्दुओ के लिए पवन महीना होता है। आखिर हो भी क्यों न ये देवो के देव महादेव का महीना जो होता है। और इसी महीने के आखिरी दिन यानि पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम को अभिवयक्त करने का एक जश्न है। जिसे आम बोल चाल में राखी कहते है। सुबह सुबह

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" बृद्धाआश्रम "बनाम "सेकेण्ड इनिंग होम "

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" बृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ढहरे और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके है ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके है। आप के

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दिल तो बच्चा है जी

18 अक्टूबर 2018
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ज़िंदगी हर पल एक चलचित्र की तरह अपना रंग रूप बदलती रहती है।है न , जैसे चलचित्र में एक पल सुख का होता है तो दुसरा पल दुःख का ,फिर अगले ही पल कुछ ऐसा जो हमे अचम्भित कर जाता है और एक पल के लिए हम सोचने पर मजबूर हो जाते है कि "क्या

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"सोना "हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी। कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली

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सोना के बेटे की-" हीरा" बनने की कहानी

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चलिये ,सोना की कहानी को आगे बढ़ाते है और जानते है कि -कैसे उनका बेटा हीरा बन चमका और अपने माँ के जीवन में शीतलता भरी रौशनी बिखेर दी। सोना की बाते सुन माँ ने उन्हें पहले चुप कराया और फिर सारी बात बताने को कहा। सोना ने बताया कि- मेरी बहन ने मेरे बेटे को अब आगे पढ़ाने से म

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हमारे त्यौहार और हमारी मानसिकता

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रहम करे अपनी प्रकृति और अपने बच्चो पर , आप से बिनम्र निवेदन है ना मनाया ऐसी दिवाली गैस चैंबर बन चुकी दिल्ली को क्या कोई सरकार ,कानून या धर्म बताएगा कि " हमे पटाखे जलाने चाहिए या नहीं?" क्या हमारी बुद्धि और विवेक बिलकु

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"ज़िंदगी का सबक सिखाता " - दिसम्बर और जनवरी का महीना

24 दिसम्बर 2018
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एक और साल अपने नियत अवधि को समाप्त कर जाने को है और एक नया साल दस्तक दे रहा है। बस, एक रात और कैलेंडर पर तारीखे बदल जायेगी। दिसम्बर और जनवरी महीने की कुछ अलग ही खासियत होती है। कहने को तो ये भी दो महीने ही तो है पर साल के सारे महीनो को बंधे रखते है। दोस

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जीवन का अनमोल "अवॉर्ड "

8 जनवरी 2019
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" नववर्ष मंगलमय हो " " हमारा देश और समज नशामुक्त हो " नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है ,

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यादें

2 मार्च 2019
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"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनियाँ , हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,

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दम तोड़ती भावनायें

20 मई 2019
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"क्या ,आज भी तुम बाहर जा रहे हो ??तंग आ गई हूँ मैं तुम्हारे इस रोज रोज के टूर और मिटिंग से ,कभी हमारे लिए भी वक़्त निकल लिया करो। " जैसे ही उस आलिशान बँगले के दरवाज़े पर हम पहुंचे और नौकर ने दरवाज़ा खोला ,अंदर से एक तेज़ आवाज़ कानो में पड़ी ,हमारे कदम वही ठिठक गये। लेकिन तभी बड़ी शालीनता के साथ नौकर न

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गाना : हँसते आँसु

27 जून 2019
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हजारो तरह के ये होते हैं आँसुअगर दिल में गम हैं तो रोते हैं आँसुख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसुइन्हे जान सकता नहीं ये जमानामैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जानामैं तो दीवाना ,दीवाना ,दीवाना "मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब हैं। आनं

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जाने चले जाते हैं कहाँ ......

23 सितम्बर 2019
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जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां अक्सर मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया

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आस्था और विश्वास का पर्व -" छठ पूजा "

31 अक्टूबर 2019
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" छठ पूजा " हिन्दूओं का एक मात्र ऐसा पौराणिक पर्व हैं जो ऊर्जा के देवता सूर्य और प्रकृति की देवी षष्ठी माता को समर्पित हैं। मान्यता है कि -षष्ठी माता ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं,प्रकृति का छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी माता कहा गया जो लोकभाषा में छठी माता के नाम

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धरती की करुण पुकार

7 अगस्त 2021
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हे! मानस के दीप कलशतुम आज धरा पर फिर आओ।नवयुग की रामायण रचकर मानवता के प्राण बचाओं ।आज कहाँ वो राम जगत में जिसने तप को गले लगाया ।राजसुख से वंचित रह जिसने मात - पिता का वचन निभाया । सुख कहाँ है वो राम राज्य का ?वह सपना तो अब टूट गया ।कहाँ

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सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ"

30 अगस्त 2021
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<p>कहते हैं, सब मुझको "सैनिक"</p> <p>पर, सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ" </p> <p>मैं सपूत इस

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दे दो ऐसा वरदान...

31 अगस्त 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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आईं झुम के बसंत....

10 फरवरी 2022
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बसंत अर्थात "फुलों का गुच्छा", बसंत, अर्थात  "शिव के पांचवें मुख से निकला एक राग" बसंत जिसके "अधिष्ठाता देवता ही कामदेव" हो, ऐसे ऋतु के क्या कहने।"बसंत" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही दिलों में  फुल

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