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जागरुकता

13 अक्टूबर 2018

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मैनै देखा जागरुकता ! आज की शाकाहार प्रभात फेरी में

आपने भी कहीं देखा होगा होगा
पर मैंने जो देखा अविश्वसनीय था ! लोग तमाशा देखते हैं खड़े होकर पर कोई कुछ नहीं करता शायद इस डर से कि उनका समय बर्बाद न हो जाए वे भी कहीं फस न जाए पर मैंने देखा उस अधेड उम्र की महिला को जिसकी आवाज में सकारात्मकता थी बड़ी बेबाकी से सत्य का पक्ष लेकर अकेले खड़ी बोल रही थी वो जागरुक थी उसे ज्ञान था की वो कई औरों को जागरुक करने का सामर्थ्य रखती है
रोज की तरह आज भी प्रभात फेरी के दौरान एक नुक्कड़ पर खड़े होकर गुरु महाराज का संदेश सुनाया जा रहा था वहां स्कूल के छोटे नन्हे छात्रों को लेकर माताएं बस की बाट जोहती खड़ी थी उन्हीं के बगल हमारे दल शांत खड़े होकर संदेश के आधार को बल दे रहे थे , जैसा की कुछ लोगों को अपना प्रभुत्व प्रदर्शित करने की आदत होती है एक अधेड़ उम्र का आदमी अंदर आक्रोश से भरा बाहर से बनावटी निवेदन के साथ पास आने लगा वैसे तो हमने ऐसे कई खलल झेले थे बिना परेशान हुए संदेश रोककर उसका निवेदन सुना गया " इदर लेडिज ओर बच्चे खड़े रेते हे , स्कूल की बस बी इदरी आती हे आपलोग यहां से चले जाओ , लेडिज ओर बच्चे से बड़ा तुमारा भगवान नई होता " हमने सुना उसके चेहरे भांप लिए थे इसलिए उसे फुसलाकर संदेश फिर से शुरु किया गया वैसे लोगों को खडे रहने के लिए पर्याप्त जगह थी किसी को कोई परेशानी नही हो रही थी इन सब बातो का जायजा पहले ही लिया जा चुका था , वह माना नहीं कुछ देर बात फिर आया अबकी बार चेहरे और शरीर पर प्रश्नचिन्ह लिए हुए था उसका इशारा था की आप अभी भी नही गए उसी मुद्रा मे थोडी देर खडा रहा फिर फोटो निकालने लगा तीन से चार बार रुक रुककर फोटो लिया अलग अलग कोण मे और संदेश समाप्त होने का इंतजार करने लगा इस पूरे घटनाक्रम को हमने नजरअंदाज करने की कोशिश की और संदेश समापन कर घर की तैयारी मे लगे वह मान कहां रहा था सुनाने लगा खरी खोटी पूरा जमाव तमाशा देख रहा था सिवाय उस महिला के जिसने हमारा पक्ष लेकर उसकी आलोचना की बात पुलिस तक पहुंच गई थी मैने देखा कैसे वह बोल रही थी , उस पूरे भीड मे केवल वही जागरुक थी !
क्या आप भी जागरुक हैं ?

पंडित कृष्णकुमार उपाध्याय की अन्य किताबें

उदय पूना

उदय पूना

हां, एक व्यक्ति जो प्रभावशील है, निडर है, जैसा आपने कहा जागरूक है, दिशा निर्धारित करता है, अच्छे लेख केलिए बधाई और साधुवाद, प्रिय पंडित कृष्णकुमार उपाध्याय प्रणाम

7 दिसम्बर 2018

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रात और कवी

22 दिसम्बर 2016
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रात की चांदनी का ज़िक्र बड़ा सुना है शीतल है धीमी है मंद मंद डसती है किसी किसी पे हँसती हैकिसी को मन लुभाती है हर को प्रतिबिम्ब की तरह उसी की बीती सुनाती है.....! कुछ पागल होते हैबिना कुछ किये रोज रात मेंसपने सजाते है सपने ही पाते है...! कोसत

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अपनी जीममेंदारी

17 जनवरी 2017
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नियति से समझौता कैसे हो मेरा बल तेरा बल सबका बल साथ हो भी आनेवाले कल से समझौता कैसे हो परिणामो को स्वीकार करो प्रकृत का गढ़ा आकर बनो जो होता होने दो , जो भी होता हैं होने दो ये सोचकर क्यों तुम भी....? कर्ज का हिस्सेदार बनो...! चलो परिवर्तन का आधार बनो.....1 हम नाचे त

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प्रेम

27 जनवरी 2017
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ईश्वर में प्रेम है ईश्वर में प्रकाश है प्रेम और वासना में फ़र्क़ बड़ा है मेरा प्रेम स्वच्छ है श्वेत है निर्मल है प्रेम में शांति है आशा है दया है प्रेम भी उससे ही है जो खूब श्वेत है नूर का प्रकाश भी उससे न तेज है आँखों से निकलती सदा रौशनी प्रेम की उसका भी प्रेम स्वच्

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हे प्रियतम

13 अप्रैल 2017
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सुन्दर हो तुम मन से तन से करियारी नहीं छा पायी है दृढ़ता है निश्छल मन है तब नूरानी कहलायी हो तुमसे सुन्दर होगा भी जो दुनिया जाने या तुम जानो मेरे मन को इस धरती पर केवल तुम्ही लुभायी हो अब सुंदरता के वश होकर निश्छल मन मेरा ये कहता तुम भी चल दो मै भी चल दू ऐरावत पथ के मेले में सब देव वहाँ तुमको देखे फ

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हे प्रभु तुम्हारी मांग है

3 मई 2017
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भावुक हृदय जलमग्न आंखे घोर वेदना के सिंधु में डूबते उतिराते है रोज की रात ऐसी ही होती है की क्रोध से कोपित हृदय है लावा भभकता उठ रहा है इस ज्वालामुखी को विवेक से शांत करते है अनर्थ हो रहा है अधर्म बढ़ रहा है कब तक शांत हो उठो जागो डोर थाम्हो कसो सीधे खींच

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चेतावनी है दैत्यों

6 मई 2017
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ये जान है ये आवाज़ है जिसे सुनते ही मूर्छित दुश्मन है तुम चीन हो या पाकिस्तान हो संभाल लो अपनी हद तक को आएंगे जब ये तीक्ष्ण हाथ गिर जाओगे ढह जाओगे हो सकता है इस नक़्शे में आज तो हो कल खो जाओगे #indianarmy #army #pmo #kashmir

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5 अगस्त 2017
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जीवन नीरस है -२ तुम बिन है सूना आसमां तुम बिन है सूनी जमी तेरी ज़रूरत है जीवन नीरस है आंखें गीली तो नहीं दिल रो रहा रात दिन मन में हिलोरें खूब हैं जो मैं जी रहा तेरे बिन सीढ़ियों से गिर पड़ते हैं चलते-चलते रुक जाते हैं अब राह की रु

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बड़े दिन हो गए शायद की तुम भी होगे रण में अधमरे से तो सोचा मिल लूँ थोड़ा तुम्हे मैं याद हूं या नहीं मुझे तुम याद आये हो तो सोचा मिल लूँ थोड़ा...!अभी तो कदम रक्खा है शिखर की पगडंडियों परशिखर की श्रृंखलाओं का मुझे अनुमान कैसे हो तुम्हे अनुभव है इनकी मार का हर हाल का तो सोचा मि

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नए हैं हम

22 अगस्त 2017
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नए हैं हमसंकल्प द्ढ है भारत के नवनिर्माण का ।अभी अभी तो आए है विचार लिए विकास का ।दावानल सी फैल उठी है ये बात सारे देश मे ।भारत ! हाँ जी भारत मे हीबल है जनसमुदाय का...! नए है हमअस्तित्व बडा हैयुवाओं के बाँह का ।कदम कदम पर रक्खे हमने नीव तेज विकास का ।हर तरफ अब गूँज उठे ह

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सुबह

25 अगस्त 2017
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सुबह की सुंदर बेला में तुम आओ हम भी आएं आकाश से छलके अमृत तो तुम भी पीयो हम भी पिएं क्या रक्खा है इस कान्क्रीट में क्या रक्खा है इस पत्थर में रेती और बालू की दीवारों में क्या रक्खा हैछोड़कर घुटती चारदीवारी आ जाओ तुम वन उपवन मेंसुबह की सुंदर बेला में तुम आओ हम भी आएं इस अमृत वेला में गहरी सांस खींचकर

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चरित्र_पथ

13 सितम्बर 2017
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#चरित्र_पथचरित्र पथ एक तलवार के धार की सी हैचरित्रवान चाहते चलना उसी पर सेरुकिए नहीं झुकिये नहीं गतिमान पथ पर तीव्रता भी कम नहीं हो पाए और नहीं बस इस तरह की मांग पथ की है चरित्रवान चाहते चलना उसी पर हैतीव्रता इतनी रहे की पग पथिक के फट न पाए तुच्छ मन के ये हिलोरें आगे पथिक के टिक न पाएव्रत धरे ऐसे कि

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ईश्क-ऐ-ग़ज़ब की

22 सितम्बर 2017
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#गज़ल #ईश्क-ऐ-ग़ज़ब की मत पूछिए मुझसे मेरी उदासी का सबब,तुम्हारा नाम मुझसे लिया नहीं जाएगा।मत पूछिए ये भी की अकेला क्यों हूं ,तुम्हारा जिक्र मुझसे किया नहीं जाएगा ।पर बात तो ये भी सच ही है लिए बगैर, तुम्हारा नाम मुझसे जिया नहीं जाएगा ।तुम पास हो तभी तो राहत धड़कन-ऐ-दिल को है,तुम दूर जाओगी तो मुझसे र

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13 अक्टूबर 2018
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