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नजरिया और जीवन

2 दिसम्बर 2018

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भूमिका :


हम देखते हैं, पाते हैं कि अलग अलग व्यक्ति अलग अलग ढ़ंग से, अपने अपने ढ़ंग से ही जीवन जी रहे हैं। बहुत मौटे तौर पर, हम इसको 3 श्रेणी में रख सकते हैं या 3 संभावनाओं के रूप में देख सकते हैं। हरेक के जीवन में हर प्रकार के क्षण आते हैं, उतार चढ़ाव आते हैं, पर कुल मिलाकर क्या दिशा रहती है, क्या दशा रहती है, हम उस पर चर्चा करते हैं, उस पर यह चर्चा है।

नजरिया और जीवन


तीन (3) श्रेणियां, या तीन सम्भावनाएं हैं;

"मैं पत्थर तोड़ता हूँ", "मैं पेट पालता हूँ", "मैं खुशियां बांटता हूँ"।


श्रेणी, "मैं पत्थर तोड़ता हूँ", को समझते हैं;

मैं हूँ क्रोध से भरा, मुझे है सब पर क्रोध, मुझे है स्वयं पर क्रोध,

मैं हूँ हर चीज से परेशान, मैं पत्थर तोड़ता हूँ।


श्रेणी, "मैं पेट पालता हूँ", को समझते हैं;

मैं हूँ लाचार, बेबस, मुझे पैसे कमाने पड़ते हैं, मैं हूँ अभाव का मारा,

मैं पेट पालता हूँ।


श्रेणी, "मैं खुशियां बांटता हूँ", को समझते हैं;

मैं हूँ प्रसन्न, मेरे अंदर है सेवा भाव, लोगों के सवरें जीवन,

इस सोच के साथ कार्य करता हूँ, मैं खुशियां बांटता हूँ।


जिसने चुना नजरिया जैसा, होने लगा उसका जीवन वैसा;

नजरिया जैसा, तो जीवन भी होगया वैसा;

जीवन पसंद जैसा, तो नजरिया अपनालें वैसा।


पहले नजरिया वाले को जीवन लगता है पत्थर तोड़ने जैसा;

उस केलिए है जीवन मात्र पत्थर तोड़ने जैसा;

नीरस, जरूरत से अधिक मेहनत, परेशानी, हर चीज से परेशानी।


दूसरे नजरिया वाले को जीवन लगता है मात्र पेट पालने जैसा;

जीवन गुजार रहा है बेबस होकर, कार्य करता है केवल पेट पालने केलिए।


तीसरे नजरिया वाले को जीवन लगता है आनंद से भरी यात्रा जैसा;

स्वयं है प्रसन्न, सेवा भाव से प्रसन्न होकर करता है कार्य।


जीवन पसंद जैसा, तो नजरिया अपनालें वैसा।


उदय पूना


विशेष :

मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज का आभार,

इस रचना को मिला इनके प्रवचन से आधार;

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