*सनातन धर्म इतना दिव्य एवं विस्तृत है कि यहाँ मानव जीवन में उपयोगी सभी तत्वों का विशेष ध्यान रखा गया है | सनातन धर्म में अन्य देवी - देवताओं की पूजा के साथ ही प्रकृति पूजन का विशेष ध्यान रखा गया है , इसी विषय में आज हम बात करेंगे २५ दिसंबर अर्थात "तुलसी पूजन दिवस" की | मानव जीवन के लिए तुलसी कितनी उपयोगी है यह बताने की आवश्यकता नहीं है | जहां पौराणिक संदर्भो में तुलसी की दिव्य कथायेॉ प्राप्त होती है वहीं दैनिक जीवन में तुलसी एक दिव्य औषधि के रूप में अपने प्रत्येक अंगों के साथ प्रस्तुत होती है | प्रकृति में उपस्थित अन्य पूजनीय वृक्षों में तुलसी का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है | तुलसी का पूजन, दर्शन, सेवन व रोपण आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक – तीनों प्रकार के तापों का नाश कर सुख-समृद्धि देने वाला है | भगवान शिव स्वयं कहते हैं- "तुलसी सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है |" पौराणिक कथाओं में स्थान - स्थान पर तुलसी का महत्व दर्शाया गया है | अपने हित साधन की इच्छा से दंडकारण्य में व राक्षसों का वध करने के उद्देश्य से सरयू तट पर भगवान श्री राम जी ने एवं गोमती तट पर व वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने तुलसी लगायी थी | अशोक वाटिका में सीता जी ने रामजी की प्राप्ति के लिए तुलसी जी का मानस पूजन ध्यान किया था | हिमालय पर्वत पर पार्वती जी ने शंकर जी की प्राप्ति के लिए तुलसी का वृक्ष लगाया था | भगवान विष्णु की कोई भी पूजा बिना तुलसी के पूर्ण नहीं मानी जाती | हमारे ऋषि-मुनि अपने आसपास तुलसी का पौधा लगाते व तुलसीयुक्त जल का आचमन लेते थे | तुलसी की दिव्यता का वर्णन करते हुए व्यास जी पद्मपुराण में लिखते हैं :- "दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी ! रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी !! प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता ! न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः !! अर्थात :- जो दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है |* *आज दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम अपने सनातन मान्यताओं को भूल करके पाश्चात्य संस्कृति पर अपनाने के लिए तत्पर दिखाई दे रहे हैं | आज के दिन हम "तुलसी पूजन दिवस" को भूल करके क्रिसमस दिवस मनाने की तैयारी करते रहते हैं | क्रिसमस दिवस जहां एक प्लास्टिक का वृक्ष तैयार कर के उसके चारों तरफ प्रकाश करके यह कामना करते हैं कि सेंटा क्लाज नाम का कोई व्यक्ति आकर के हमारी मनोकामनाएं पूरी करेगा | क्रिसमस दिवस धर्म विशेष का पर्व हो सकता है परंतु सनातन का नहीं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" क्रिसमस दिवस मनाने वाले सभी सनातन मतावलम्बियों से पूछना चाहूंगा कि हम एक जागृत दिव्य औषधि के रूप में हमारे बीच में उपस्थित तुलसी जैसे पौधे का पूजन भूल कर के निर्जीव क्रिसमस वृक्ष का पूजन करके क्या प्राप्त करना चाहते हैं , या हमको इस से क्या प्राप्त हो सकता है ?? एक तरफ जहां तुलसी पौराणिक , अध्यात्मिक एवं लौकिक जीवन में उपयोगी सिद्ध हुई है जिसके महत्व को आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी मानी है | इनके पूजन को छोड़कर के क्रिसमस दिवस पर एक कृत्रिम वृक्ष का पूजन करके हमें क्या प्राप्त हो जाएगा ?? यह विचारणीय विषय है | जहां तक मैं मानता हू इसका एक ही कारण कि हम अपने धर्म व अपने जीवन में उपयोगी प्राकृतिक संसाधनों के विषय में जानकारी प्राप्त न करके आधुनिक चकाचौंध में भ्रमित होते जा रहे हैं जोकि हमारे लिए घातक है | मैं किसी पर्व विशेष का विरोधी न हो कर के सिर्फ इतना मानता हूँ कि पूजन उसका किया जाय पर्व वह मनाया जाए जिससे मानव मात्र का कल्याण हो |* *आज "तुलसी पूजन दिवस" के पावन अवसर पर मानव मात्र को तुलसी संवर्धन एवं संरक्षण का संकल्प लेते हुए सनातन मान्यताओं के साथ साथ मानव जीवन के संरक्षण में सहयोगी बनने की आवश्यकता है |*