*इस धरा धाम पर मनुष्य के अतिरिक्त अनेक जीव हैं , और सब में जीवन है | मक्खी , मच्छर , कीड़े - मकोड़े , मेंढक , मछली आदि में भी जीवन है | एक कछुआ एवं चिड़िया भी अपना जीवन जीते हैं , परंतु उनको हम सभी निम्न स्तर का मानते हैं | क्योंकि उनमें एक ही कमी है कि उनमें
ज्ञान नहीं है | इन सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को ज्ञान का देवता माना गया है | अपने ज्ञान के कारण मननशील होने के कारण , विचारशील होने के कारण मनुष्य का स्तर सभी प्राणियों में ऊँचा रहा है | मनुष्य की आवश्यकता है ज्ञान | ज्ञानविहीन होने पर मनुष्य चेतन होते हुए भी सभी प्राणियों में निम्न स्तर का गिना जाएगा | विचार कीजिए सृष्टि के आदिकाल में जब मनुष्य पृथ्वी पर आया होगा तो उसका आकार भी एक पशु की तरह रहा होगा , जिसे आदिमानव कहा जाता है | उस समय मनुष्य को ना सामाजिकता का ज्ञान रहा होगा न अपनी जिम्मेदारियों का | अपने गुण , कर्म , स्वभाव , गौरव एवं गरिमा की विशेषताओं के बारे में वह बहुत नहीं जानता रहा होगा | समाज से अलग रहते हुए अपने परिवार के झुंड में एकाकी जीवन व्यतीत करता रहा होगा | परंतु धीरे धीरे विकास क्रम में मनुष्य ने अपने ज्ञान को बढ़ाया , जिसके कारण वह सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनकर अपनी सार्थकता को सिद्ध किया | प्राचीन काल की तुलना में आज के मनुष्य का ज्ञान बढ़ता हुआ चला गया और मनुष्य अपने विवेक का प्रयोग करते हुए सृष्टि का सर्वोच्च प्राणी बन गया |* *आज विचार करने की आवश्यकता है कि ज्ञान क्या है ? ज्ञान की वस्तुत: दो धाराएं होती हैं | प्रत्येक मनुष्य को अपने ज्ञान की दोनों धाराओं को निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए | एक है भौतिक धारा और दूसरी है आध्यात्मिक धारा | भौतिक धारा के ज्ञान को हम शिक्षा कह सकते हैं वहीं आध्यात्मिक धारा के ज्ञान को विद्वानों ने विद्या का नाम दिया है | शिक्षा के आधार पर मनुष्य लोकव्यवहार सीखता है | संसार कैसा है ? इसका भूगोल और इतिहास क्या है ? इस सृष्टि में जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई ?
राजनीति , समाज , नागरिक कर्तव्य , या जीविकोपार्जन कैसे करना चाहिए ? यह सब हम शिक्षा के माध्यम से जान सकते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि शिक्षा के माध्यम से मनुष्य एक व्यवस्थित जीवन जी सकता है , परंतु प्रत्येक मनुष्य को ज्ञान की दूसरी धारा जो कि आध्यात्मिकता है , उसे भी जानना बहुत आवश्यक है | हमारी आंतरिक चेतना , हमारी आत्मा , हमारा विवेक एवं संवेदनाएं यह सब हमारे भीतर समाहित हैं | इनके विषय में जानना भी प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है | इसे अध्यात्म विद्या का नाम दिया गया है भौतिकज्ञान के साथ साथ प्रत्येक मनुष्य में आध्यात्मिक ज्ञान भी होना आवश्यक है , क्योंकि बिना आध्यात्मिक ज्ञान के मानव जीवन सार्थक नहीं हो सकता |* *शिक्षा एवं विद्या दोनों एक दूसरे के पूरक हैं बिना शिक्षा के यदि विद्या नहीं प्राप्त हो सकती तो बिना विद्या के जीवन सार्थक नहीं हो सकता |*