तनहाई घिरने लगा मन में अंधेरा, जब शांत होकर मैं आई। मन में होने लगी उथल-पुथल, यादों ने ली अंगड़ाई। कोई नहीं था, संग मेरे, मैं थीं खुद में समाई। मैं थीं,और थीं मेरी तन्हाई, खुशी हो, या हो गम हम दोनों ही तो है, इसके सिवा है किसकी परछाई? मैं और तन्हाई......... आंखों की नमी उभर आई, मुस्कुरा कर लबों ने दी, नमी को विदाई। मन की खलिश में, फिर से चोट आई, ख्वाहिशों को दफनाने में न देर लगाई। अतीत के पन्नों से एक खुशी उठाई, करवटें बदलते हुए, एक उम्मीद जगाई। अंधेरे में भी चांद की ठंडक मन को भाई, हुई भोर, नयी सुबह, नयी रोशनी को देख मन हर्षाया। लोट गई तन्हाई, मन की गहराई में, जीवन की धारा में, अपने कर्म की पतवार लिए फिर से मैं लोट आई.....