17 जुलाई से सावन का महीना शुरु हो गया है और सभी शिवजी की पूजा अराधना में लग गए हैं। सभी शिवालयों में शिवभक्तों ने रौनक जमानी शुरु कर दी है और भारत में जितने भी बड़े शिव मंदिर हैं वहां पर भक्तों ने अपनी-अपनी अर्जी लगाना शुरु कर दिया है। ऐसा ही एक मंदिर है वैद्यनाथ धाम (baidyanath dham) जो एक प्राचीन मंदिर है और यहां की शक्ति भक्तों द्वारा विख्यात है। यहां पर एक और परंपरा है जहां पर जेल के कैदी ही नाग मुकुट बनाते हैं।
कैसे शुरु हुई वैद्यनाथ धाम की ऐसी परंपरा ?
12 ज्योतिर्लिगों में एक है झारखंड के देवघर में स्थित वेद्यनाथ धाम, जहां पर सावन के महीने में लाखों कांवड़िए वैद्यनाथ बाबा को जल चढ़ाते हैं। जलाभिषेक के साथ ही यहां एक ऐसी परंपरा सालों से निभाई जा रही है जिसके मुताबिक, देवघर जेल में घिनौने अपराध करने वाले कैदी सजा काट कर रहे हैं और वे ही बाबा के लिए नाग का मुकुट बनाकर देते हैं तो वो चढ़ाया जाता है। जेल के गार्ड नंगे पांव बाबा के दरबार जाते हैं फिर वो मुकुट बाबा को पहनाया जाता है श्रृंगार होता है और पूजा करने के बाद मंदिर के पट बंद किए जाते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये परंपरा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। दरअसल साल 1911 में जे. डब्यू. टेलर देवघर के कमिश्नर थे और उस दौरान उनके बेटे की तबियत खराब हो गई। भारत के सभी डॉक्टर्स ने उसे ठीक करने के लिए हाथ खड़े कर लिए थे तभी उसे किसी ने वैद्यनाथ धाम की पूजा करने के लिए कहा। पहले तो वो नहीं माना लेकिन बेटे के मोह में वो तैयार हुआ और उसने पूरी रात बाबा का जाप किया। सुबह होते ही उसका बेटा ठीक हो गया और उसकी श्रद्धा बाबा के लिए जाग गई। उस दिन से उसने ऐलान कर दिया कि सावन में बाबा के लिए नाग का मुकुट इस जेल से ही जाएगा।
बस उसी दिन से ये परंपरा चली आ रही है। इस बात को देवघर के वर्तमान एसपी नरेंद्र कुमार सिंह ने बताया है। पत्नी की हत्या करने वाले एक कैदी ने बताया कि सर्प के सिर के आकार का मुकुट तैयार करने में 6 घंटे का समय लगता है। हर सुबह 2 जेल गार्ड शहर से बाहर फूल खरीदने जाते हैं और कैदी भी नहा-धोकर साफ कपड़े पहनकर 12 बजे ये काम करने बैठ जाते हैं और उन्हें इस काम के लिए 91 रुपये हर दिन मिलता है।