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भस्मासुर

14 अक्टूबर 2019

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लघुकथा


भस्मासुर


- अलख निरंजन!

- आ जाइए बाबा पेड़ की छाह में।


बाबा के आते ही वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- आज्ञा महाराज।

बाबा ने खटिया पर आसन जमाया। बोले- बच्चा, तेरा चेहरा मुरझाया हुआ है। दुःखी लगते हो। दुख का करण बता, बेटा। चुटकी में दूर कर दूंगा।


- एक दुख हो तो बताऊं। दुख का बोझ उठाते-उठाते मैं हंसना-मुस्कुराना सब भूल गया बाबा।

- देख बच्चा। दुख से छुटकारा पाना है तो तीन बातों पर अमल कर । तेरी हंसी-खुशी सब वापस आ जाएगी।


- कौन सी बातें, महाराज?

- पहली बात, तू 'इरखा'( ईर्ष्या) त्याग दे।


उसने मन ही मन सोचा, बाबा तो सच में ज्ञानी हैं। बचपन की बात भी जानते है। 'इरखवा' पर दिल आया था कभी मेरा लेकिन उसको तो कभी का छोड़ दिया था। प्रकट में बोला- महाराज 'इरखा' का त्याग तो मैं बहुत पहले कर चुका हूँ ।


- ठीक है। दूसरी बात। बच्चा 'संतोख'(संतोष) को अपना लो।


वह मन ही मन बाबा की बुद्धि पर हंसा । भला संतोख को अपनाना क्या है, वह तो मेरा बेटा ही है। वह प्रकट में बोला- बाबा, संतोख तो दिन भर मेरे कंधे पर ही बैठा रहता है।


बाबा थोड़ा चिंतित दिखे- 'इरखा' नहीं है। 'संतोख' भी है फिर इसके दुख का कारण क्या है? बोले- तीसरी बात, चाहे लाख मुसीबत तुझ पर आए बच्चा, हंसते रहो। हंसी नहीं आए तो भी हंसो। देखना, दरवाजे पर आया हुआ दुख भी भाग जाएगा।


- ठीक है बाबा। आपकी बात सिर आँखों पर।


इतना सुनना था कि बाबा खटिया पर पसर गये। बोले- बच्चा आज तो बाबा तेरे घर के सामने ही धूनी रमायेगा ।


तत्काल उसे आनेवाले दुख के तूफान की आहट हुई। बाबा के हजार नख़रे झेलने पड़ेंगे। आटा,चावल-दाल, तरकारी के साथ दूध-घी का इंतजाम। बाप रे बाप , कहाँ से इंतजाम करेगा वह? तभी उसे बाबा की तीसरी बात की याद आ गयी। दुख-समस्या आये फिर भी हंसते रहो। आया हुआ दुख भी भाग जाएगा।


वह हंसने लगा।


बाबा उसे हंसता देख आश्वस्त हो गये- बच्चा, बाबा के लिए ठंडा जल और चाय का इंतजाम करो। और नमकीन वगैरह हो तो वह भी लेते आना।


वह सुना और हंसने लगा। इस बार की हंसी पहले वाली हंसी से दुगुनी थी।


बाबा उसकी हंसी से चिढ़ गये- जाओ बच्चा, शीघ्र प्रबंध करो। बाबा को चाय की तलब लगी है।


वह फिर हंसने लगा। हंसता रहा।


बाबा की सहनशक्ति जवाब देने लगी। वे क्रोधित मुद्रा लिये खाट पर बैठ गए। वे कुछ बोलने वाले थे कि सामने से एक स्त्री को आते देख चुप हो गए।


स्त्री ने बाबा को प्रणाम किया और पैर पर पांच रुपए दक्षिणा रखते हुए हाथ जोड़कर बोली- बाबा, हम आपकी सेवा करने में असमर्थ हैं। टूटी मड़ैया में आप कहाँ रहिएगा! गाँव के नुक्कड़ पर मंदिर है। वहीं विश्राम कीजिए।


बाबा का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। वे झटके से उठ गये। डण्ड-कमंडल समेटते हुए बाबा ने उसे देखा। उसकी रूकी हंसी फिर शुरू हो गयी।


तत्काल आयी समस्या, सच में, जानेवाली थी। #


@कृष्ण मनु

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