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भारतीय पुलिस सेवा : मनोबल की समीक्षा

28 मई 2020

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वर्तमान मे पुलिस विभाग के तमाम साथियो की असामयिक मृत्यु ने अनेक पुलिस सहकर्मियों को झझकोर कर रख दिया | भारतिया पुलिस विभाग में इन बढ़ती आत्महत्याओ की संख्या के पीछे क्या मुख्या कारण हैं , इसी का विश्लेषण करने का प्रयास है यह लेख|


पिछले गत पाँच वर्षो में डिसेंबर २०१८ तक ९४० पुलिसे कर्मियों ने आत्महत्या की|


बढ़ती समस्या के कारण


इन आत्महत्याओ के पीछे डिप्रेशन और निजी परिवारिक तनाव मुख्य कारण बन कर उभरे | परंतु यह डिप्रेशन ओर परिवारिक तनाव का बढ़ता चलन एक बड़ी समस्या की छोटीसी झलक मात्र है| यह हम सब जानते हैं की पुलिस कर्मियो के कोई बँधे ९से ५ के कार्य नही होते हैं |

युनाइटेड नेशन ने प्रति एक लाख आबादी के लिए २२२ पुलिस कर्मी परस्तावित किए हैं | भारत मे हालांकि २०१६ मे १८१ पुलिस कर्मी प्रति एक लाख व्यकितआबादी के लिए मंजूर हुए थे परंतु काफ़ी मात्रा मे वेकेन्सी अभी ओपन हैं और केवल १३७ पुलिस कर्मी प्रति एक लाख आबादी के आँकड़े पर ही कार्यरत हैं| इस श्रमिक संख्या में कमी और बदलती हुई परिस्तिथ्यो के हिसाब से आज पुलिस कर्मियो को २४*७ उप्लभ्द रहना होता है | यह एक बड़ा कारण है की वो अपने परिवार को उपयुक्त समय नही दे पाते| हर तीज-त्योहार पर उनकी ड्यूटी लग जाती है | १६ -१६ घंटे की नौकरी एक आम बात हो कर रह जाती है | समय के आभाव मे परिवारिक मनमुटाव और मुद्दे बढ़ते जाते हैं और एक गहन रूप अख्तियार कर लेते हैं | लॉ और ऑर्डर को बनाए रखने के लिए सीनियर ऑफीसर को भी महकमे के सपोर्ट की आवश्यकता होती है | इसी कारण कई बार समय पर अवकाश की मंज़ूरी नही मिल पाती जो निराशा का कारण बनाता है |


इस के अतिरिक्त आजकल हिन्दी फ़िल्मो के सूपर हीरो इमेज जैसे दबंग , सिंघम, एक काल्पनिक वास्तविकिता का रूपांतर करते हैं जिन से कुछ पुलिस अधिकारी, जिनमे कुछ हद तक शायद मैं भी था , अनावश्यक दबाव ले लेते हैं और बी. पी. , शुगर , आंग्ज़ाइटी जैसे रोग ग्रहण कर लेते हैं| पुलिस कर्मियों की रेटिंग , थाना की रेटिंग ऐसे प्रतीत होता है मानो टॅलेंट शो चल रहा है जिसमे फर्स्ट आना है, अधिकारियों की नज़र में चढ़ना है और इस भागम- भाग मे सही ग़लत सभी काम करके अपनी क़ाबलियत दर्शानी है | सोशियल मीडीया पर छा जाना है |यह सब आपकेशाये अनावशयक तनाव बढाती हैं |


समाधान के परस्ताव


  • संघठन स्तरीय सुझाव

१. जन्वरी २०१६ के आँकड़ो के मुताबिक स्टेट पुलिस में २४% वेकेन्सी ओपन थी यानी ५.६ लाख पुलिस कर्मियों की भरती की आवश्यकता थी| महकमे को अगली दशक की ज़रूरतो का गहन आधाययन कर पुलिसे कर्मियों की भरती ओर ट्रैनिंग की समय बध योजना तय्यार कर उस का अमल करना चाहिए ताकि कार्यरत पुलिस कर्मियो पर दबाव कम हो |

२. बढ़ते तनाव ओर दबाव के मधेनज़र अधिकारियों को"ओपन डोर" पॉलिसी अपनानी चाहिए ताकि पुलिस कर्मी अपने आला ओफ्फिसेरो से अपनी परेशानी एक सदभावना पूर्ण माहौल मे डिसकक्स कर सके|

3. आवश्यकता पड़ने पर पुलिस कर्मी एवं उनके परिवार को मनोचिकत्सक परामर्श की सुविधा भी बिना किसी स्टिग्मा के उपलभध होनी चाहिए| इस और इन दीनो काफ़ी जागरूकता बढ़ी है पर काफ़ी सुधार की गुंजाइश है |


  • व्यक्तिगत स्तर पर

मैं अपने सहकर्मियों को कहना चाहूँगा पुलिसिंग एक सिस्टम हैं , जिसमे आप मात्र एक छोटा सा पर एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो | आप सिस्टम को समझ कर अपना पार्ट प्ले करो | आपको अपने कार्य का निर्वहन करते हुए अपने परिवार व खुद की ज़िंदगी को भी प्राथमिकिता देना सीखना होगा | आपको अपनी शारीरिक ओर मानसिक सेहत की ज़िम्मेदारी लेनी होगी | आप कोई भी एसा काम नही कर रहे जो आप से पहले किसी ने नही किया | इस लिए अपनी सीमाओ मे रह कर नौकरी करे| ग़लतफहमी का बोझ अब पुलिस के लिए जानलेवा होता जा रहा है | जीवित रहे , नौकरी आपकी जीवन यापन का साधन है | अति उत्साह मे अपना सब कुछ इसे अर्पित कर अपने परिवार की उपकेशा करना उचित नही | वर्क लाइफ बॅलेन्स बनाने की कोशिश करे | मानसिक तनाव को संभालने के लिए योगा , एक्सर्साइज़, मेडिटेशन अपनाए |

कभी स्वयं पर अभिमान होने लगे तो सोचे की आप किस तरह समाज को बेहतर बना सकते हैं नाकी इन विशेष अधिकारो का स्वयं के फ़ायदे के लिए उल्लंघन करे | बहुत कुछ पाया है आपने इस विभाग व नौकरी मे | अपनी सीमाए जाने ओर विनम्र बने|


एफ आई आर / चार्ज शीट / एफ आर /१०७- ११६ / के नोटीस की चिंता उसके बाद ज़रा सी ग़लती पर लाइन हाज़िर / स्थानांतरण/ सस्पेन्षन की मार मे खुद को ख़तम ना करे || भय मुक्त एवं दबाव मुक्त हो कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करे | असीमित आपकेशाओ की पूर्ति करना किसी के लिए संभव नही है|


ध्यान रहे विभाग के लिए आप मात्र एक व्यक्ति हो सकते हैं परंतु अपने परिवार के लिए आप उनकी पूरी दुनिया हैं !

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