ख्वाब और ख़्याल भी न जाने किस गली से आ जाए पता ही नहीं चलता। दिन नवरात्रि के चल रहें थे।कल्पना भी देवी की पूजा में मग्न रही। इन्हीं दिनों एक रात सपने में वह एक छवि देखती है कि लाल साड़ी और कुर्ते पजामे में एक जोड़ा उससे दूर खड़ा मुस्कुरा रहा है। यह कौन थे इतना तो कल्पना को नहीं मालूम लेकिन यह छवि कल्पना के मन में बस गयी थी। वह उस मुस्कुराती छवि को पूरा करना चाहतीं थीं। जब आंख खुली तो वह अपनी सुबह की दिनचर्या को निपटा कर नहा धो कर मंदिर पहुंची। आज कल्पना के इष्ट देव शिव और शक्ति का दिन था यानी सोमवार। अभी दिन नहीं निकला था। भोर उजली होकर सुबह की तरफ बढ़ रही थी। पांच बजने में भी अभी कुछ मिनटे बची हुई थी। कल्पना ने जलाभिषेक कर आज यही कहा कि हे गौरीनाथ मैं खुश नसीब हूं जो सुबह इस मुस्कान से मेरे मन को हर्षायां है। मैं इस मुस्कान को ढूंढना चाहती हूं ताकि यह हकीकत में भी मेरी आंखों को सुकून दे। कल्पना ने यह मुस्कान धीर और सपना को लेकर चुनी। कल्पना ने अपने एफ बी के अकाउंट से सपना और धीर के अकाउंट से कुछ हंसती मुस्कुराती फोटो ली और उन्हें जोड़ कर उस मुस्कुराहट को ढूंढने का जतन किया। कल्पना खुश थी वह उस तस्वीर को धीर को भेज कर उस खुशी को देखना चाहती थी लेकिन फिर भी कल्पना को कमी सी लगी।