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कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ

28 जनवरी 2015

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शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………… उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं जिस्मों का मिलना लिखूँ या रूहों की पुकार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं……………. उसके अधरों का चुंबन लिखूँ या अपने होठों का कंपन लिखूँ मैं जुदाई का आलम लिखूँ या मदहोशी में तन मन लिखूँ मैं बेताबी, बेचैनी, बेकरारी, बेखुदी, बेहोशी, ख़ामोशी……...... कैसे चंद लफ़्ज़ों में इस दिल की सारी तड़पन लिखूँ मैं इज़हार लिखूँ, इकरार लिखूँ, एतबार लिखूँ, इनकार लिखूँ मैं कुछ नए अर्थों में पीर पुरानी हर बार लिखूँ मैं........ इस दिल का उस दिल पर, उस दिल का किस दिल पर कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा अधिकार लिखूँ मैं.................... होठों की ख़ामोशी लिखूँ या अंतर की आवाज़ लिखूँ मैं… अंजाम लिखूँ इश्क का या मुहब्बत का आगाज़ लिखूँ मैं गीत लिखूँ मिलन के या जुदाई के अल्फाज़ लिखूँ मैं... बिखरे हुए सुरों से कैसे कोई नया साज़ लिखूँ मैं........ कजरे की धार लिखूँ या फूलों वाला हार लिखूँ मैं लबों की शोखी लिखूँ या आँखों का इकरार लिखूँ मैं इस रीते तन-मन से, अधूरे, अकेले खाली पन से कैसे नवयौवन-मधुबन का सारा श्रृंगार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं……….. दिनेश गुप्ता ‘दिन’ [ http://dineshguptadin.in ]

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क्या खूब लिखा है

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कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ

28 जनवरी 2015
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शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैं उन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैं विरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैं कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………… उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैं साँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैं जिस्

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दीया अंतिम आस का [ एक सिपाही की शहादत के अंतिम क्षण ]

28 जनवरी 2015
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दीया अंतिम आस का, प्याला अंतिम प्यास का वक्त नहीं अब, हास-परिहास-उपहास का कदम बढाकर मंजिल छू लूँ, हाथ उठाकर आसमाँ पहर अंतिम रात का, इंतज़ार प्रभात का बस एक बार उठ जाऊँ, उठकर संभल जाऊँ दोनों हाथ उठाकर, फिर एक बार तिरंगा लहराऊँ दुआ अंतिम रब से, कण अंतिम अहसास का कतरा अंतिम लहू का, क्षण अंतिम

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दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित इंटरव्यू "एक इंजीनियर का उसकी कविता के लिए जूनून"

1 फरवरी 2015
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http://www.jagran.com/sahitya/interview-an-engineers-passion-for-his-poetry-12000532.html

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मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है

20 फरवरी 2015
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मेरी आँखों में मुहब्बत के जो मंज़र है तुम्हारी ही चाहतों के समंदर है में हर रोज चाहता हूँ कि तुझसे ये कह दूँ मगर लबो तक नहीं आता, जो मेरे दिल के अन्दर है मेरे दिल में तस्वीर हे तेरी, निगाहों में तेरा ही चेहरा है, नशा आँखों में मुहब्बत का, वफ़ा का रंग ये कितना सुनहरा है, दिल की कश्ती कैसे न

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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ]

28 मई 2016
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क्या प्यार करना गुनाह है ? [ समाज की दोहरी मानसिकता और खोखले मापदंड ] “क्यूँ ऐसा होता है जब दो परिंदे अपनी उड़ान एक साथ तय करने का फैसला करते हैं तो जमाना उनके पर कतरने पर आमादा हो जाता है ‘ ? क्यूँ ऐसा होता है जब दो जिस्म एक जान होना चाहतें हैं तो जमाना उनकी जान ही लेने पर उतारू हो जाता है ? क्यूँ ऐ

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