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माँ से मायका !

27 जुलाई 2016

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'म ' इस शब्द का

कितना गहरा रिश्ता है ?

हर इंसान से

खासतौर पर

हर औरत से।

'म' से 'मैं'

''म' से 'मेरी /मेरा '

'म' से 'माँ'

'म' से 'मायका '

एक कहावत है न ,

माँ से मायका। .

पता नहीं कितना सोचकर

कितने अहसासों के बदले

कितने आहत मनों ने

इसको गढ़ा होगा।

कभी गुजरते हुए  सड़क पर

जाती हुई बसों पर

देखकर 'मायके के शहर /गाँव का नाम

आँखों में चमक  आ जाती थी।

मन करता था

दौड़कर बैठ जाऊं

औ'

पहुँच जाऊं माँ के पास।

जब से माँ गईं 

अब भी वह शहर वही है ,

,वह घर भी है ,

और घर में रहने वाले सभी लोग.

,लेकिन 

सिर्फ माँ तुम नहीं हो। 

रोका नहीं किसी ने 

बाँधा भी नहीं किसी ने 

बुलाते हैं उसी तरह 

फिर भी 

पता नहीं क्यों ?

अब माँ वो अपनापन 

क्यों दिल को छूता नहीं है?

अब भी बसें वहां जाती हैं ,

मेरे सामने से भी गुजरती हैं ,

लेकिन 

अब 

अब नहीं रही वो ललक 

नहीं आती है 

मेरी आँखों में वो चमक 

क्यों माँ ?

क्या जो कहा  गया था वो

वो सच ही है न। 

क्योंकि वो अब 

आगे वाली पीढ़ी के लिए 

मायका बन चुका है। 

मेरा मायका तो माँ 

तुम्हारे साथ ही चला गया। 

मैं इस शब्द के साथ 

बहुत अकेली रह गयी।

रेणु

रेणु

मन भर आया रखा जी आपकी भावपूर्ण पंक्तियाँ पढ़कर -- ये समाज में निहित बहुत भावपूर्ण सच्चाई है -- आपको शुभकामना

2 मार्च 2017

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रचनाएँ
मेरसरकर
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शब्दनगरी एक सेतु !
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अफसोस

26 जुलाई 2016
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वक्त गुजरता जा रहा है तूफान की तरह तेजी से , हम पोटली थामे यादों की आज भी लिए बैठे हैं । दौड़ नहीं पाये संग संग उसके तो पीछे रह गये , थाम कर बीते दिन पुराने कलैण्डर से लिए बैठे हैं । पाँव थक गये थे दौड़ना सिखाते सिखाते उनको , आयेंगे वो पलट कर साथ ले जाने आस लिए बैठे हैं। हमारी तो ये धरोहर है जीवन की

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माँ से मायका !

27 जुलाई 2016
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'म ' इस शब्द का कितना गहरा रिश्ता है ?हर इंसान से खासतौर पर हर औरत से। 'म' से 'मैं'''म' से 'मेरी /मेरा ''म' से 'माँ''म' से 'मायका 'एक कहावत है न ,माँ से मायका। .पता नहीं कितना सोचकरकितने अहसासों के बदलेकितने आहत मनों नेइसको गढ़ा होगा।कभी गुजरते हुए  सड़क परजाती हुई बसों परदेखकर 'मायके के शहर /गाँव का

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रिश्तों की परिभाषा !

8 अगस्त 2016
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रिश्ते बनते हैं बिगड़ते हैं और और फिर ख़त्म हो जाते हैं। कहते हैं खून के रिश्ते ऊपर वाला बनाता है वे अमिट होते हैं खून के रंग से गहरे और रगों में बहते हैं। वक़्त ने रिश्तों की परिभाषा बदल दी ,लक्ष्मी ने खून को पानी कर दिया। स्वार्थ ने अपने को पराया कर दिया। बस एक रिश्ता आज भी जिन्दा है उसी तरह वो  रिश

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