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मुक्तक

8 अगस्त 2016

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मुसकुरा कर फूल को ,यार पागल कर दिया 

प्यार ने अपना जिगर ,नाम तेरे कर दिया 

आस से ना प्यास से ,दूर से ना पास से 

आँख तुमसे जब मिली ,बात पूरी कर दिया 

कुमार रोहित राज की अन्य किताबें

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कविता

26 अप्रैल 2016
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कही कवि ना बन जाऊ ऐ कविता तेरे प्यार मेहै नही तुम जैसा कोई सारे इस संसार मेहै नशा तुझमे बड़ा कविता है चाहत मेरीगा रहा था मै गजल थी वही पर तू खडी

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यादे

8 मई 2016
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मुस्कुराते थे जहां उनकी मुस्कान देखकर कभी उन्ही के साथ,किस्मत देखिये उन्ही की याद मे तन्हा फफक कर रोए वही आज 

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मुक्तक

8 अगस्त 2016
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मुसकुरा कर फूल को ,यार पागल कर दिया प्यार ने अपना जिगर ,नाम तेरे कर दिया आस से ना प्यास से ,दूर से ना पास से आँख तुमसे जब मिली ,बात पूरी कर दिया 

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दिल गिरवी रख

8 अगस्त 2016
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 दिल गिरवी रख दिल गिरवी रख वापस आये,  दो अनजाने नयनन मे जो कहना था कह नहि पाये , क्या कहना इस उलझन मेक्या होती है सुन्दरता कोकल ही मैने जाना था,हम कितने लल्लू थे परवो तो बड़ा सयाना था,चलते-चलते उसने मुड़कर तिरछी नजर से देखा था,फिर हौले से रुककर इकनैन कटार सा फेंका था,जो लगा था सीधे सीने मे,पर तकलीफ हु

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KUMAR ROHIT RAJ KI SAYARI : दिल मेरा मुझसे अब अक्सर

26 अगस्त 2016
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दिल मेरा मुझसे अब अक्सर, पूछता है बस यहीदिल मेरा मुझसे अब अक्सर, पूछता है बस यही |यूँ मुझे गैरो को देने, का तुम्हे अधिकार क्या है ?तुमने किया वादा मुझी से, दिल्लगी थी तो कहो फिर |गर वो सब कुछ दिल्लगी थी, तो कहो फिर प्यार क्या है ?क्यूँ हुई चाहत तुम्ही पे, प्यार में खुद क

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