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बेटी है तो कल है

10 अगस्त 2016

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बोये जाते हैं बेटे
पर उग जाती हैं बेटियाँ,
खाद पानी बेटों को
पर लहराती हैं बेटियां,
स्कूल जाते हैं बेटे
पर पढ़ जाती हैं बेटियां,
मेहनत करते हैं बेटे
पर अव्वल आती हैं बेटियां,
रुलाते हैं जब खूब बेटे
तब हंसाती हैं बेटियां,
नाम करें न करें बेटे
पर नाम कमाती हैं बेटियां,......
क्यों की में अपने बेटो को प्यार करता हु मगर उससे ज्यादा बेटियों को अगर बेटे मेरी जान है तो बेटिया मेरा धड्कता ह्रदय ...यह मेरा ही नही आपका भी होगा कोई संदेह नही ..... बेटे बाप की जमीन बाँटते है और बेटिया हमेशा बाप का दु:ख क्यों करता है भारतीय समाज बेटियों की इतनी परवाह… कहानी के माध्यम से आज में अपने विचार आप तक प्रेषित कर रहा हु ---जिस समस्या से मुख्यतया हर परिवार की पीड़ित बेटी की शिकायत हमेशा अपने माँ व् पिता से रहती है !-----एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।चेहरे पर झलकता आक्रोश…संत ने पूछा – बोलो बेटी क्या बात है? बालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार की आजादी होती है।वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है।यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि।संत मुस्कुराए और कहा…बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं?ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं।इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में।अब तुम चलो एक ज्वेलरी शॉप में।एक बड़ी तिजोरी, उसमें एक छोटी तिजोरी।उसमें रखी छोटी सुन्दर सी डिब्बी में रेशम पर नज़ाकत से रखा चमचमाता हीरा।क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।समाज में बेटियों की अहमियत भी कुछ इसी प्रकार की है।पूरे घर को रोशन करती झिलमिलाते हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता।बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में।पूरी सभा में चुप्पी छा गई।उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रही थी लोहे और हीरे में फर्क। बालिका स्तब्ध थी खुद को सबसे कमजोर समझने वाली बालिका गर्व से फूली नही समां रही थी क्यों की जिसके दिल में माँ व् पिता के लिए एक शंका जेहन में बसी हुई थी आज शंका का पूर्ण समाधान प्राप्त हो गया ! बेटी उछलती कूदती मुस्कान बिखेरती संत के चरणों में नतमस्तक हो गयी ! पास में खड़ा पिता के मुह से ये शब्द निकले ......
बेटी! तेरी इस मुस्कान ने मेरी सारी पीड़ा हर ली
देखता हु तुझे मैं अब तक कल्पनाओं में
हँसती-इठलाती नन्हें कदमों से चलती, गिर जाती
किन्तु आज तूने पाया है आकार, मेरी कल्पनायें हुयी साकार
बेटी! तेरी इस मुस्कान ने मेरी सारी पीड़ा हर ली
दिया मुझे नया जीवन मेरी दुनिया रोशन कर दी
आ छुपा लूँ तुझे अपनी बाँहों में चलना सिखलाऊँ जीवन की राहों में !
मित्रो अब में आपको एक बेटी के नाम सन्देश देना चाहुगा हर माँ बाप की तरह.... हमारी भी यही ख्वाहिश रही है कि तुम लोग अच्छे से अच्छा करो.....कभी गलत रास्तों पर मत चलो...कभी ऐसा कार्य मत करना की माँ व् पिता को सर झुके और माँ पिता जन्म देने से पहले विदा (कन्या भ्रूण हत्या ) कर दे ! .माँ व् पिता के सपने को साकार करो ! और साथ में माँ पिता से एक अनुरोध करूँगा ... कभी कन्या भ्रूण हत्या न करे ! में जानता हु आज दहेज रुपी कुप्रथा वैसे तों समाज के सभी तबकों में अपना पैर पसार चुकी है ! एक कुरीति के लिए आप अपने अनमोल हीरे को गर्भ में म़त मारिये ! बेटी को वरदान समझे ना की अभिशाप ! वही बेटी तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा बनेगी ! आज से प्रण ले हम कन्या भ्रूण हत्या नही करेंगे मेरा लेख न सार्थक हो जायेगा !
उत्तम जैन (विद्रोही )

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