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विजया दशमी

11 अक्टूबर 2016

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विजया दशमी के उपलक्ष पर लिखी रचना
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें
.
मेरी चतुर्नवतिः काव्य रचना (My Ninety-fourth Poem)
.
“विजया दशमी”
.

“विजय मनाऊँ किसकी मैं
राम की या रावण की
गाथा किसकी गाऊँ मैं
राम की या रावण की

राम पिता की आज्ञा से
बिन महल चौदह वर्ष बिताये
रावण ने बहुत तपस्या से
जाने कितने स्वर्ण महल बनाये

रावण एक तपस्वी त्यागी
शिव के प्रति जिसकी अनुरागी
ऋषि पुलस्त्य पुत्र विश्रवा घर जन्मा
देवी सती श्राप से हुआ अभागी

त्याग तपस्या के बल पर
सारी धरती पर राज किया
अपने इष्ट से प्रेम लगाकर
दस मस्तक शिव को दान दिया

जिसके पास सम्पदा इतनी
सुना एक थी उसकी पत्नी
प्रेम दया करुणा से पूर्ण
वह भी शास्त्रों की थी ज्ञान

पत्नी एक मंदोदरी जिसकी
जो रावण के साथ रही
नित सत्य पथ पर चलने की
एक आस जगाए कुल में रही

त्याग भक्ति ज्ञान के बल पर
पाई ताकत सहर्ष अपार
सारा इतिहास गवाह इसी का
नहीं सुना किया हरण पर नार

फिर ऐसी क्या बात हुई
जो सूर्पनखा चित्रकूट को गई
अपनी काम लालसा हित
राम लखन पर मोहित हुई

तब चला समय का ऐसा खेल
रावण मति का नाश हुआ
बदला लेने को उत्तेजित होकर
स्त्री हरण का दुस्साहस हुआ

शायद एक यही पाप ऐसा था
जो प्रभू तुम्हारे द्वार पधाये
सारी राक्षस वंश जाति को
तुम श्रीराम हाथ मोक्ष दिलवाये

श्री राम प्रभु के दर्शन पाकर
प्रेम भाव तुम शीश नवाये
प्रभु चरणों की शरण जाकर
शौनकादि ऋषि श्राप से मुक्ति पाये

दुनिया ने केवल एक पक्ष देखा है
रावण को सदा गलत देखा है
रावण की ईश्वर भक्ति भूल कर
रावण का स्त्री हरण रूप देखा है

जिसका शिव जैसा स्वामी हो
वह राम विमुख कैसे हो सकता
प्रभु चित्त में ध्यान लगा हो
उनके बिन कैसे रह सकता

विजय मनाऊँ किसकी मैं
राम की या रावण की
गाथा किसकी गाऊँ मैं
राम की या रावण की” ।।

रचनाकार :- गोपाल कृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक :- ११ अक्टूबर २०१६

गोपाल कृष्ण त्रिवेदी की अन्य किताबें

बिमलेश

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ह्रदय को छू लेने वाली रचना है. गोपाल जी आगे भी इसी तरह का प्रयास करते रहें . अति उत्तम बंधु .

14 अक्टूबर 2016

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स्वच्छंद

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“स्वच्छंद जल स्वच्छंद दावानलस्वच्छंद पवन के झोंकेस्वच्छंद मन स्वच्छंद गगनस्वच्छंद जलधि तरंगेंजब सारा कुछ स्वच्छंद जगत मेंफिर मानव, अपने को क्यों तू रोके ?क्या पायेगा तू इस जग मेंनश्वर शरीर को ढोके ?जीवन के सारे रस पाये स्वच्छंद धरा पर रहके  अब बचे हुये कुछ पल को जी ले स्वच्छंद मगन तू होके”         

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मैं मजदूर हूँमजबूत हूँपरिश्रम की साख परबैठा हुआ देवदूत हूँ ..संघर्षों के बीच पैदा हुआसंघर्ष में ही पला-बढ़ा संघर्ष के अनुभवों से मेरा कण कण गढ़ा..हर रोज मिलता हूँ प्रकृति से संघर्ष करता हूँ उसके हठीले स्वभाव से और जीता हूँ स्वच्छंदता की साँस से ..मैं थकावट को वरण करस्वेद की गंगा मेंहिलोरे लेता हूँकभी

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दुर्दशा

10 अक्टूबर 2016
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मेरी त्रिनवतिः काव्य रचना (My Ninety-Third Poem) किसी ने दिल को तोड़ा है किसी ने रब को छोड़ा है यहाँ पर आधुनिक होकर अधिकतर ने माँ-बाप छोड़ा है किसी ने स्वार्थ हित आकर अपना घर-बार तोड़ा है किसी ने धन के मद में अपने संबन्धो से मुख मोड़ा है । . यहाँ पर धूर्त लोगों ने क

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विजया दशमी

11 अक्टूबर 2016
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पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या

20 अप्रैल 2020
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( पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या )"गुरु की मृत्यु का समाचार सुन शिष्यों का मन व्याकुल थाजीवन का पथ जो सिखा गए, अंतिम दर्शन को मन आकुल था ।लॉक डाउन में अनुमति लेकर, वृद्ध साधु गुरु के पास चलेसोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान किये, चालक के संग दो शिष्य चले ।गुरु की समाधि में पुष्प चढ़ाने भाव- विह्वल हो सफर

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"सामान"

23 नवम्बर 2020
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मेरी एकादशोत्तरशत काव्य रचना (My One Hundred eleventh Poem)"सामान"“घर-घर सामान भरा पड़ा हैहद से ज्यादा भरा पड़ा हैखरीद-खरीद के बटुआ खालीखाली दिमाग में सामान भरा पड़ा है -१हर दूसरे दिन बाहर जाना हैनयी-नयी चीजें लाना हैजरूरत है एक सामान कीढोकर हजार सामान लाना है-२अपने घर में जो रखा हैउसकी खुशी न करना

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