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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता

4 मई 2017

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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता है


जहाँगीर आलम :- स्वच्छ-सुन्दर और उत्तम समाज की कल्पना की चाह बगैर स्त्री के मुमकिन नहीं, स्त्रियों की बलिदान-योगदान को परिभाषित करना संभव भी नहीं है.सुंदर स्त्री हर माईने में समाज के लिए आदर्श स्वरूप है, जिसे आसानी के साथ देखा और महसूस किया जा सकता है.अब सवाल स्त्री की तो स्त्री की सुन्दरता से क्या मुराद है, हर स्त्री सुंदर है और सुन्दरता से ही स्त्री का वजूद. सुन्दरता एक वाकई व्यापक शब्द है. जिसमे तन-मन-धन-अबरू-आकर्षण सब शामिल है. यदि स्त्री का वजूद नहीं होता तो सुन्दरता शब्द का जन्म भी नहीं हो पाता. सुंदर स्त्री मोहब्बत से लेकर शिद्दत तक की आखिरी मंजिल है. स्त्री नर्ममीयत-सुझबुझ और ईमानदारी की प्रतिक होती है. यदि प्रतिक सुलभ हो-सच्चा हो और प्रभावशाली हो तो आदर्शता का वजूद हर हाल में संभव है. सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता है. सुंदरा स्त्री को परिभाषित करना उसे कलमबंद करना एक अच्छा मौका है, लेकिन कठिनाईपूर्ण भी है. सूर्य के किरणों और वर्षा की बूंदों की भांति मानव जीवन को स्त्री ही प्रभावित करती है. जहाँ स्त्री है वहां बलिदान-सब्र-त्याग और ख़ुशी है. जहाँ तक मुझे लगता है, इसे शब्दों और अल्फाजो में बंद करना ज्यादती होगी और साथ ही मुश्किल भी. सुन्दरता किसे पसंद नहीं और सुन्दरता को कौन आदर्श नहीं बनाना चाहेगा. आईना की भांति अपनी पहचान के साथ-साथ दुसरो को पहचान दिलाने की कला प्रकृति ने एक मात्र स्त्रियों को ही प्रदान की है. सुंदर स्त्री योगदान व उनकी आदर्शता को शब्दों से नहीं बल्कि भाव से ही समझा जा सकता है और भाव को कदापि कलमबंद नहीं किया जा सकता है. इसे थोड़ा शास्त्र-धर्म ग्रन्थ से भी स्पष्ट करने की चेष्टा करना चाहूँगा. प्रकृति ने स्त्रियों को गुणों का धनवान बनाया है, जिसे ऐसा गुण प्रदान किया जिससे पुरुष जाती 100 फिसद महरूम है. इस्लाम में फातिमा राजी. खदीजा राजी.- हिन्दुओ में सीता और राधा तथा ईसाईयों में मदर मरियम...इन जैसे खुबसूरत और सुंदर मन व विचारधारा वाली स्त्रियों को कौन नहीं सराहता है, ये सभी की प्रेरणाश्रोत भी है. मै समझता हूँ कि समस्त मानव जाती इनको अपना आदर्श मानती है और मानती रहेगी और ये मिशाल व उदाहरन की पात्र है. अब बात वर्तमान परिपेक्ष्य की. दुनिया में जितने भी धनि और विकसित देश है, वे महिलाओ का सम्मान और मान-मर्यादा का पूरा ख्याल रखते है तथा उनको अपना आदर्श मानते है. वही दुनिया के जीतने भी पिछड़े देश है, वहां महिलाओ की कोई कदर नहीं है और जहाँ कदर नहीं वहां आदर्शता की बात करना बेवाकूफी है.सुन्दरता जिस्म तक ही महदूद नहीं होती, अपितु सुन्दरता एक बड़ी और वजनदार शब्द है, जिसके लग जाने के बाद बहुत सारी चीजे स्वं उजागर होने लगती है एक सुन्दर स्त्री समाज के लिए आदर्श का प्रतिक हो सकती है, यदि उसके सुन्दर मुखड़े के पीछे एक स्वच्छ मन भी शामिल हो. सुंदर मुखड़ा और स्वच्छ मन दोनों मिलकर एक स्त्री को देवी का रूप प्रदान करती है, जिससे एक घर, एक समाज, एक पीढ़ी ही नहीं बल्कि पूरा देश संवर सकता है. भारतीय सभ्यता व पौराणिक कथाओ के अनुसार स्त्री एक देवी का रूप है, जिसमे अपार शक्तियां समाहित है. एक स्त्री माँ, बहन, पत्नी, बेटी के रूप में हमेशा ही पुरुषो का मार्गदर्शन करती रही है और पुरे परिवार को एक सूत्र में बांधने का हुनर भी इनमे कूट-कूट कर भरा होता है. इनकी सुन्दरता की गाथा हजारो कविता यें, कहानिया व साहित्य सुनाते है और शायद ऐसा कोई कवी व साहित्यकार होंगे जो स्त्रियों की सुन्दरता से अछूते रहे हो. आज इक्कीसवीं शदी में भी जब कभी सुंदर स्त्री की बातें होती है, तो वहां का माहौल भी खुशनुमा हो जाता है. एक सुंदरा स्त्री पत्थर दिल इन्सान को भी मोम बनाने की कुअत रखती है. स्त्री अपनी सुन्दरता का उचित उपयोग करके एक स्वच्छ और सुन्दर समाज गढ़ सकती है. लेकिन कई मामलों में स्त्रियों की सुन्दरता अभिशाप के कारन भी बने है. महाभारत और रामायण इसका एक बड़ा उदहारण है. महिलाओं के लिए सौंदर्य मानकों का निर्माण सामाजिक रूप से किया जाता है जबकि पुरुषों की तुलना में मानके बदल जाती है.


सृजन शक्ति सिर्फ स्त्रियों को ही प्राप्त है

हमारे समाज में ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है जिन्होंने इस पुरुष प्रधान समाज में भी मुकाम हासिल किए हैं, इंद्रा नूई, चन्दा कोचर, सुषमा स्वराज, जयललिता, अरुंधती भट्टाचार्य, किरण बेदी, कल्पना चावला आदि इसके मिशाल है. स्त्री के स्वतंत्र सम्मान जनक आस्तित्व की स्वीकार्यता एक मानसिक अवस्था है, एक विचार-एक एहसास और एक जीवनशैली है, जो जब संस्कृति में परिवर्तित होती है, जिसे हर सभ्य समाज अपनाता है, यूँ तो पूरा ब्रह्माण्ड ईश्वर की बेहतरीन रचना है, लेकिन इन रचनाओ में स्त्री उसकी अनूठी रचना है, उसके दिल के बेहद करीब है, इसीलिए तो ईश्वर ने स्त्री को उन शक्तियों से नवाजा कर धरती पर भेजा है, जो स्वयं उसके पास हैं. यानी की प्रेम और ममता से भरा ह्दय, सहनशीलता और धैर्य से भरपूर व्यक्तित्व, क्षमा करने वाला दिल, बाहर से फूल सी कोमल मगर भीतर से चट्टान सी इच्छाशक्ति से परिपूर्ण और सबसे महत्वपूर्ण है सृजन शक्ति जो स्त्रियों को ईश्वर ने प्रदान की है, जिसकी शक्ति केवल ईश्वर के पास ही है. मनुष्य का जन्म जो स्वयं ईश्वर के हाथ है उसके धरती पर आने का जरिया स्त्री को बनाकर उस पर अपना भरोसा जताया है. उसने स्त्री और पुरुष दोनों को ईश्वर ने भिन्नता प्रदान की है. स्त्रियों का सम्मान एवं उसके हितों की रक्षा करना भारत की सदियों पुरानी संस्कृति का हिस्सा रहा है. वही भारतीय समाज में नारी की स्थिति अत्यन्त विरोधाभासी रहना भी अपने-आप में एक विडम्बना ही है. एक तरफ तो उसे शक्ति के रूप में देखा जाता है, तो दूसरी तरफ ‘अबला’ की उपाधि भी दी गई है. दोनों अतिवादी धारणायें नारी की स्वतन्त्र विकास में बाधा उत्पन्न की है. सदियों से ही भारतीय समाज को संवारने में नारीयो की अति महत्वपूर्ण भूमिका रही है और उसी के बदौलत भारतीय समाज ने स्थान पाया है. सीता, लक्ष्मी बाई से लेकर इन्दिरा गाँधी व सरोजनी नायडू जैसी महिलाओ ने भिन्न-भिन्न रूपों में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. चाहे वह सदियों से समय की धार पर चलती हुई नारी अनेक विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच जीती रही है. वैदिक काल में अपनी विद्वत्ता के लिए सम्मान पाने वाली नारी मुगलकाल में रनिवासों की शोभा बनकर रह गई. मगर आज की नारी के समक्ष जब कभी सीता या गांधारी के आदर्शो का उदाहरण दिया जाता है, तब वह इन चरित्रों के हर पहलू को ज्यों का त्यों स्वीकारने में असमर्थ रहती है. नारी, देश, काल, परिवेश और आवश्यकताओ का व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व है, समाज इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है.


अब कोई भी काम महिलाओं के लिए मायने नहीं रखता

परिवार महिलाओ की पहली प्राथमिकता में शामिल है और वह हमेशा बेहतर करने की कोशिश करती हैं, स्त्रीयों को समझना भी हर किसी के बश की बात नहीं. वर्तमान समय में देखा जा रहा है कि महिलाये भी पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है. अब कोई भी काम महिलाओं के लिए मायने नहीं रखता है. वो हर अपने दायित्व को बखूबी निभा रही है. इसलिए तो प्रकृति ने भी महिलाओं को पुरुषो के मुकाबले अधिक सहनशक्ति दी है, उनकी दिल की धड़कने भी पुरुषों से अधिक तेज धड़कती है, जहाँ एक मिनट में पुरुषो के 70 से 72 बार दिल धड़कता है, तो वहीं महिलाओं का दिल एक मिनट में 78 से 82 बार. महिलाओं की बॉडी क्लॉक पुरुषों के मुकाबले 1.7 से 2.3 घंटे आगे चलती है. इसलिय महिलाएं एक साथ कई काम लेती हैं और एक काम के बीच दूसरा कई काम भी निपटा लेती हैं. जबकि कई काम एक साथ करने के लिए पुरुषों को अधिक उर्जा की जरूरत पड़ती है. स्त्रियों की सुन्दरता पर ऋषि मुनियों से लेकर महापुरुषों ने भी कई उपदेश दिए है. आचार्य चाणक्य के अनुसार सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती है, यदि कोई पुरुष केवल स्त्री की सुंदरता देखकर उसे परखता है और उसी के आधार पर उसे पसंद करके विवाह कर लेता है, तो उससे बड़ा मूर्ख इस पूरे विश्व में कोई नहीं है. वे कहते हैं कि अच्छे संस्कारों वाली स्त्री घर को स्वर्ग बना देती है, वह पति और उसके पूरे परिवार का ख्याल रखती है लेकिन बुरे संस्कारों वाली स्त्री सब तहस-नहस कर देती है. यदि स्त्री सुंदर नहीं है लेकिन उसके संस्कार अच्छे हैं तो पुरुष को उससे विवाह कर लेना चाहिए. क्योंकि यही वह स्त्री है जो उसके भविष्य को सुखद बनाएगी. सुंदरता मन की देखनी चाहिए, तन की नहीं.

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