है वो आज अकेली क्यों
नों महीने रखा अपनी कोख में जिसने
लगती है वो आज बोझ क्यों
काट कर अपना पेट, भरा पेट हमारा
सो जाती आज, वो ख़ाली पेट क्यों
आने नहीं देती थी हमारी आँखों में आँसु
उसकी आँखों में रहते हैं आँसु, आज दिन रात क्यों
जिसके बोल कभी लगते थे अमृत
उसी के दो शब्द लगते हैं, आज कड़वे क्यों
हाथ पकड़ कर चलना सिखाया जिसने
उसके हाथ को पकड़ कर चलना लगता है भार क्यों
सिखाया जिसने जीने का ढंग और दिए संस्कार
उसके ही जीने का तरीक़ा लगता है आज शर्मनाक क्यों
होता नहीं था कोई त्योहार पूरा, उसके आशीर्वाद के बिना
वो ही त्योहार उसके बिना धूम धाम से बन जाते हैं क्यों
लगता था घर जिसके बिना सूना
रहती है वो आज , इस घर के एक कोने में, अकेली क्यों
१४ मई २०१७
जिनेवा