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ज़िंदा दिल

5 जून 2018

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भयानक साय है ,जिनके न चेहरे हैं ,

न नाम हैं |

जला दिया लोगों को ,ज़िंदा लोगों को,

या खुदा!


ज़िंदा दिलों की नाज़ुक सी डोर थी,

मज़हब की ज़ोर ने इसे भी तोर दिया|


सब भाग रहे थे, सब चीख रहे थे,

लोग दर्दनाक मारे गए मुर्दा के बीच में भी छिप रहे थे|


कही आग की लपटे थे ,कही सन्नाटा ही सन्नाटा था |

कही डर का मंज़र था , कही खूनी खंज़र था |


कही भेदी हुई लाश थी ,

कही इनसे ही बुझी अंगारो की प्यास थी |


मुर्दा भी हथेली खोल के मरते है ताकि दिल से दुआ कर सकें :-

सब ठीक हो ,सब खैरियत हो,
इंसानियत बची रहे , ताकि:-
अपनी इस गुलिस्ता में अंगारे नहीं , फूल बरस सकें |
बेनाम साय नहीं, ज़िंदा दिल जी सकें |

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