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बदलता बचपन

16 जून 2018

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हाल में 1 दिन के लिए गांव गया था,क्योंकि घूप अपने चरम पर थी इसलिए कहीं ना जाकर घर के बाहर ही बच्चों के साथ मस्ती कर रहा था और मन ही मन अपने बचपन और इनके बचपन की तुलना भी कर रहा था, मुझे जहाँ तक अपना बचपन याद है- गर्मी के माह में एक्जुन्नी( 12 बजे तक) विद्यालय हो जाया करता था और हम हर सुबह इसलिए खुश होकर विद्यालय जाते थे की बारह बजे छुट्टी हो जायेगी उसके बाद पूरा दिन बगिया - बगिया घुमाई होगी, क्योंकि गर्मियों में बुआ जी और भाई,बहन भी आ जाते थे इससे घर में माई, चाची,अम्मा,बुआ और गांव के भउजी तमामा बड़की अम्मा लोग भी बहिनी, जिज्जी करते करते आ जाती थी, उन लोगों का पूरी दुपहरिया मिलन होता तो उनका मिलन हम भाइयों को इसलिए आनंद देता की उनका ध्यान हमारी करतूतों पर नही जायेगा, हर भाई कटोरा,मौनी(दवरी) लेकर तैयार रहता था गेंहूँ चुराने के लिए रहे भी क्यों ना 1 बजे बरफ वाले चाचा जी बगिया में आ जाते थे, गेंहूँ कितना भी हो बर्फ 2 ही मिलना रहता था, विद्यालय से आते ही हम अपने बचपनी कपड़े कच्चा ,बनियान में आ जाते थे, और एक कच्चा कपार पर धर लेते थे की कहूँ भी पम्पिंग सेट या नहर,तलाब में डुबकी लगाना पड़ सकता है(गर्मी पर निर्भर करता था) हाथ में एक सीपी(आम छीलने वाला साधन)नमक ,बोरा,हमेशा होता था ,बगिया में बिछ जाता था बिछौना उसके बाद काफी समय तक आम ,जामुन,अमार, औरा, चलता था, कपड़ा अपना रंग बदल चुका होता था,तो आम के चेपु से मुंह में तमामा दाग हमारे चोरी को शाही में बदल देते थे, हां कभी कभी आपस में लड़ाई झगडा हो जाने से खुशियां छिन जाती थी, शाम होते ही- आठ- काठ,आइस- पाइस, चप्पल चोर,गोबरेला,गिट्टी,सत्तुल,कंचा आदि हमारे सबसे प्रिय खेल शुरू हो जाते थे, यानी ऐसा कोई खेल हम लोगों के पास नही होता था जो हम अकेले खेल सके और जिसमे बिना मिट्टी के काम हो, ऐसा लगता था हम मिट्टी से जन्मे हैं मिट्टी में मिलना है, माँ,बाप को भी उतनी चिंता ना रहती थी की हमे कहीं ज्यादा चोट या क्षति पहुंचेगी, क्योंकि हर तरफ था तो सिर्फ मिट्टी जो हमे कभी क्षति नही पहुंचाती, क्योंकि हम तो चोरी चोरी खाते भी थे ना, बारिश का तो अपना अलग आनंद होता था गांव का कोई गड्ढा नही होता था जहाँ डुबकी ना लगती हो और सायद कोई जोंक हो जो खून ना पिया हो, उस जोंक के खून चूसने से ज्यादा सुख मिलता था उस पर नमक डाल उसका खून निकालना, पर आज- जब बच्चे इंटरलॉकिंग ईंट के बने सड़क और बाउंड्री के अंदर खेलते हैं तो कलेजा मुंह में होता है, कहीं गिर गए तो अंग तो क्षत-विक्षत हो ही जायेंगे, कहीं सीढ़ी पर ना चला जाये गिरेगी तो विकलांगे हो जायेगा, सिमट गयी हमारे इस पीढ़ी की जिंदगी- वीडियोगेम,मोबाइल,टीवी और कंप्यूटर में किताबों का बोझ उनके बोझ से कहीं ज्यादा (भले जिंदगी भर नौकरी के लिए भटके) प्रतिस्पर्धा ने छीन लिया हमारे बच्चों के बचपन को, और हम खुश होते हैं यह सोचकर बेट्वा विद्यालय नही स्कूल जा रहा है। पर कभी ना सोचे क्या क्या नही छीन लिया हमने उनके बचपन में ही उनसे, सायद ही लौटे वो अपना वाला बचपन,अपनों के बचपन में।।

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पितृ दिवस

17 जून 2018
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#बाप_दिवस- __________ पितृ/ बाप दिवस प्रसिद्धि फादर्स डे के रूप में पाया है, बाप -वाह वाह ऐसा शब्द जो कोई बोलकर अपना सीना 95 सेंटीमीटर फूला महसूस करने लगता है , ★रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं (सब सुने होंगे) लेकिन इस शब्द के गर्त में कितने त्याग,कर्तव्य,दायित्व छिपे हैं वह सिर्फ बाप समझता

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