राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रप्रेम सियासतदानों का धतूरा है जिसे चटा कर सियासतदान अपनी सियासत पर पकड़ बनाये रखना चाहते है. सिकंदर ने ग्रीक लोगो को चटाया, नेपोलियन ने फ्रांसीसियों को, हिटलर ने जर्मनियों को , मोसलनी ने इटली के लोंगो को, जापान के समुराइयों ने जापानी लोगो को, माओ त्से तुंग ने चीनियों को, और उन सब के नतीजे भी सबके सामने है. आज भी कुछ देशों के सियासतदां ये धतूरा चटा रहे है. उत्तर कोरिया में , ईराक -ईरान में, सीरिया में, पकिस्तान में और भारत में , जो पुरे राष्ट्र को दहशत और जंग की ओर धकेल रहा है. धतूरा चटाना कोई आज की नई बात नहीं है. रावण ने अपने भाइयों और बेटों तक को चटाया था. महाभारत में धृतराष्ट्र ने चटाया था, और हमारे सियासतदांन इसे आज भी चटा रहे है. राष्ट्र क्या है? राष्ट्रवाद क्या है? राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र भक्ति क्या है? सबसे पहले हमें जानना होगा कि राष्ट्र की परिभाषा क्या है. क्या राष्ट्र एक ज़मीन का टुकड़ा है? पर्वत, पहाड़, नदी - नाले , जंगल या शहर , गांव, खेत खलिहान, कल-कारखाने, ये सब राष्ट्र है?
राष्ट्र इंसानो से बनता है, जहाँ आज़ादी हो बोलने की, खाने-पीने की, काम करने की, अगर आज़ादी नहीं है तो वो राष्ट्र नहीं है, वहां के लोग गुलाम है और गुलामों से राष्ट्र नहीं बनता. किसी एक समाज ,जाति ,या मज़हब से भी कोई राष्ट्र नहीं बनता. इसलिए जो राष्ट्र को मज़हब से या जाति से जोड़ कर देखते है उनके लिए राष्ट्रवाद बहुसंख्यक लोगो का अल्पसंख्यक लोगो पर दवाब बनाता है और उन्हें सोचने के लिए मज़बूर कर देता है कि ये राष्ट्र उनका नहीं बल्कि बहुसंख्यक लोगो का है और वही से शुरू हो जाती है अलगाववाद की कहानी, जो किसी भी राष्ट्र के लिए खतरनाक है, हिंसा को पैदा करती है और राष्ट्र को जंग की ओर धकेल देती है. तीव्र राष्ट्रवाद युद्ध के कारणों में से एक था । (merriam webster)
सियासतदान अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए अवाम को राष्ट्रवाद की घुट्टी पिला देते है या राष्ट्रवाद का धतूरा चटा देते है. धतूरा उनकी सोचने समझने की शक्ति को ख़त्म कर देता है और उनका नेता उनका ख़ुदा बन जाता है, भगवान् बन जाता है. जर्मन में हिटलर के नारे लगते थे, चीन में माओ त्से तुंग के. 1961 से 1971 तक 10 साल जिसे चीन में सांस्कृतिक क्रांति कहा जाता है, उस वक्त चीन में क्या हुआ? स्कूल, कालेज बंद कर दिए और सबको मेहनत मज़दूरी के लिए भेज दिया, जैसे हमारे देश में कहा जा रहा है कि पकौड़े तलो, गाय पालो. जर्मन, जापान, और इटली की बुरी हार हुई. राजा के खिलाफ क्रांति कर नेपोलियन खुद राजा बन बैठा, सिकंदर को भारत से हार कर जाना पड़ा और अपने देश तक वापिस नहीं पहुँच पाया. रावण ने अपने देशवासियों को ही नहीं बेटो और भाइयों को भी मरवा दिया. महाभारत में धृतराष्ट्र ने अपने पुरे परिवार को ही नहीं सभी को राष्ट्रवाद के नाम पर मरवा दिया. जो लोग कृष्ण को राष्ट्रवाद या राष्ट्र प्रेम से जोड़ कर गीता का व्याख्यान करते है वो पहले भगवान् कृष्ण को समझे , गीता को अच्छी तरह पढ़े ही नहीं बल्कि समझे. गीता में युद्ध करने को कहा है पर किससे? गीता युद्ध की नहीं शांति की बात करती है जो गीता की आड़ में जंग की बात करते है वो ना तो भगवान् कृष्ण के भक्त है ना ही उनका भगवान् कृष्ण में विश्वास है वो दुर्योधन की सोंच के लोग है. (आलिम)