एक एसडीएम की कहानी ---->>
आज स्कूल में शहर की LADY SDM आने वाली थी क्लास की सारी लड़कियां ख़ुशी के मारे फूले नहीं समां रही थी ...सबकी बातों में सिर्फ एक ही बात थी SDM .. और हो भी क्यों न आखिर वो भी एक लड़की थी ....पर एक ओर जब सब लड़कियां व्यस्त थी SDM की चर्चाओं में ....एक लड़की सीट की लास्ट बेंच पर बैठी पेन और उसके कैप से खेल रही थी ...उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था कौन आ रहा है और क्यों आ रहा है ? .वो अपने में मस्त थी ....वो लड़की थी आरुषि ...!!! आरुषि पास के ही एक गांव के एक किसान की एकलौती बेटी थी .....स्कूल और उसके घर का फासला लगभग 10 किलोमीटर का था जिसे वो साइकिल से तय करती थी .....स्कूल में बाकि की सहेलियां उससे इसलिए ज्यादा नहीं जुड़कर रहती थी क्योंकि वो उनकी तरह रईस नहीं थी लेकिन इसमें उसका क्या दोष था ...?..आईएएस गुरू शरद.... खैर उसकी जिंदगी सेट कर दी गयी थी इंटरमीडिएट के बाद उसे आगे नहीं पढ़ा सकते थे ....क्योंकि उसके पापा पैसा सिर्फ एक जगह लगा सकते थे या शादी में और या तो आगे की पढाई में ....उसके परिवार में कोई भी मैट्रिक से ज्यादा पढ़ा नहीं था .... बस यही रोड मैप उसके आँखों के सामने हमेशा घूमता रहता कि ये क्लास उसकी अंतिम क्लास है और इसके बाद उसकी शादी कर दी जाएगी .....इसीलिए वो आगे सपने ही नहीं देखती थी और इसीलिए उस दिन एसडीएम के आने का उसपर कोई फर्क नहीं पड़ा ......ठीक 12 बजे SDM उनके स्कूल में आयी .... यही कोई 24 -25 की साल की लड़की ..नीली बत्ती की अम्बेसडर गाड़ी और साथ में 4 पुलिसवाले .....2 घंटे के कार्यक्रम के बाद एसडीएम चली गयी ....लेकिन आरुषि के दिल में बहुत बड़ी उम्मीद छोड़कर गयी ...उसे अपनी जिंदगी से अब प्यार हो रहा था .....जैसे उसके सपने अब आज़ाद होना चाहते हो ...!!
उस रात आरुषि सो नहीं पायी ....स्कूल में भी उसी उलझन में लगी रही ....क्या करूँ ? .... वो अब उड़ना चाहती थी फिर अचानक पापा की गरीबी उसके सपनो और मंजिलो के बीच में आकर खड़ी हो जाती ......वो घर वापस गयी और रात खाने के वक़्त सब माँ और पापा को बता डाला ......पापा ने उसे गले से लगा लिया ....उनके पास छोटी सी जमीन का एक टुकड़ा था ...कीमत यही 50000 रुपये की होगी ...आईएएस गुरू शरद..आरुषि की शादी के लिए उसे डाल रखा था .....पापा ने कहा की मैं सिर्फ एक ही चीज पूरी कर सकता हूँ .. .. तेरी शादी के लिए हो या तेरे सपने ......आरुषि अपने सपनों पर दांव खेलने को तैयार हो गयी ....... इंटरमीडिएट के बाद उसके बीए में दाखिला लिया ...क्योंकि ग्रेजुएशन में इसकी फीस सबसे सस्ती थी .... पैसे का इंतेजाम पापा ने किसी से मांग कर कर दिया .... पर ये उसकी मंजिल नहीं थी उसकी मंजिल तो कही और थी ....उसने तैयारी शुरू की .....सबसे बड़ी समस्या आती किताबों की .... तो उसके लिए नुक्कड़ की एक पुरानी दुकान का सहारा लिया ..जहाँ पुरानी किताबे बेचीं या खरीदी जाती थी ..ये पुरानी किताबें उसे आधी कीमत में मिल जाती थी ...वो एक किताब खरीदकर लाती और पढ़ने के बाद उसे बेचकर दूसरी किताब ....."" कहते हैं न कि जब परिंदों के हौसलों में शिद्दत होती है तो आसमान भी अपना कद झुकाने लगता है "" ....आरुषि की लगन को देखकर उस दुकान वाले अंकल ने उसे किताबे फ्री में देनी शुरू की और कुछ किताबें तो खुद नयी खरीदकर दे देते और कहते कि बिटिया जब बन जाना तो सूद समेत वापस कर देना "" कुछ भी हो आरुषि इस यकीन को नहीं तोडना चाहती थी ..... ग्रेजुएशन के 2 साल पूरे हो गए .....और उसकी तैयारी लगातार चलती रही ...आईएएस गुरू शरद.. सब ठीक चल रहा था कि अचानक उसके माँ की तबियत ख़राब हो गयी ....इलाज के लिए पैसे की जरुरत थी लेकिन पहले से की घर क़र्ज़ में डूब चूका था .....अंत में पापा ने जमीन गिरवी रख दी .... और इसी बीच उसने ग्रेजुएशन के तीसरे वर्ष में दाखिला लिया .... समस्याएं दामन नहीं छोड़ रही थी .... आरुषि कब तक अपने हौसलो को मजबूत बनाने की कोशिस करती आख़िरकार एक दिन मां से लिपटकर वो बहुत रोई ..और एक ही बात पूछी """ मां हमारे कभी अच्छे दिन नहीं आएंगे ? .""" . .... मां ने उसे साहस दिया ..और फिर से उसने कोशिस की ..!! ..कहते हैं न कि योद्धा कभी पराजित नहीं होते ...या तो विजयी होते हैं और या तो वीरगति को प्राप्त होते हैं ........!! ....23 जून हाँ ये वही दिन था जब आरुषि ने प्रारंभिक परीक्षा पास की थी ..अब बारी मुख्य परीक्षा की थी .और आरुषि के हौसले अब सातवें आसमान को छू रहे थे ...... तीन वर्ष की लगातार कठिन परिश्रम का फल था की आरुषि ने मुख्य परीक्षा भी पास कर ली ........अब वो अपने सपने से सिर्फ एक कदम दूर खड़ी थी ...... पीछे मुड़कर देखती तो उसे सिर्फ तीन लोग ही नजर आते ..माँ , पापा और दुकान वाले अंकल ......आख़िरकार इंटरव्यू हुआ .....और अंतिम परिणाम में आरुषि ने सफलता हासिल की ....आरुषि को जैसे यकीन नहीं हो रहा था की हाँ ये वही आरुषि है ..... माँ , पापा तो अपने आंसुओं के सैलाब को रोक नहीं पा रहे थे .... आरुषि अपने घर से तेजी से निकल गयी ... उन्ही आंसुओं के साथ आखिर किसी और को भी तो उसे धन्यवाद देना था ....सीधे जाकर दुकान वाले अंकल के पास रुकी .....अंकल ने उसे गले से लगा लिया और खुद भी छलक गए !!
असल में ये जीत सिर्फ आरुषि की जीत नहीं थी .इस जीत में शामिल थी माँ की ममता ..पिता के हौसले और दुकान वाले अंकल का यकीन ..!! !
◇आईएएस shiv bhole singh