सृजन.....!
ज़िंदगी है ,
बनती- बिगड़ती हसरतें , जो पूरी न होने पर भी
नए सृजन की ओर इशारा करती हैं।
सुबह की ओस की वे बूँदें , जो चंचलता से पत्तों पर
थिरकती मिट्टी में समां जाती हैं ,
तो कहीं सूखे पत्तों- सी चरमराती
ज़िंदगी, नया बीज पाकर फ़िर से
खिलखिलाती है।
बचपन के किस्से ,कहानियों से निकल ,
ज़िंदगी जैसे डायरी के पन्नों में समां गई।
हर पन्ना जीवन के अनुभवों को अपने में समेटे
दूसरे पन्ने पर जाने की राह दिखाता है।
हर पन्ने पर
एक अलग कहानी
गुदगुदाती , मुस्कुराती ,
कुछ दर्द, जो सबक बन , आगे चल कर मील का पत्थर भी साबित हुए।
जख़्म भी मिले और मरहम भी …
शतरंज की बिसात भी बिछी ,
चालें भी चली गईं
पर जीत समर्पण और जुनून की हुई ।
जाना कि ज़िंदगी संक्षिप्तता नहीं पूर्णता है।
तभी एक तितली आकर डायरी के उस पन्ने पर बैठ गई
कुछ लिखने ही वाली थी, जिस पर
अपने रंग बिखेर कर ,
वह पुनः सृजन का संदेश देती उड़ गई।
मेरी कलम से
परमजीत कौर
18 . 12 . 19