पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं हैं. 67 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली. 6 अगस्त की रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया. लाख कोशिश की गई, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. रात 9 बजे उन्होंने दम तोड़ दिया. पूरा देश इस वक्त सदमे में है. सुषमा चली गईं, इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल है.
सुषमा पिछली मोदी सरकार में विदेश मंत्री थीं. अपना काम बहुत अच्छे से किया. ट्विटर पर हमेशा मौजूद रहती थीं. मुसीबत में फंसे लोग सुषमा के नाम बस एक ट्वीट करते थे, वो मदद पहुंचा देती थीं. लोगों ने सोचा था कि अगली विदेश मंत्री भी वही बनेंगी, लेकिन नवंबर 2018 में सुषमा ने ऐलान कर दिया कि वो 2019 का चुनाव लड़ेंगी ही नहीं. लाखों लोग निराश हुए, केवल एक व्यक्ति इस बात से बेहद खुश हुआ. वो व्यक्ति थे स्वराज कौशल. सुषमा के पति और मिजोरम के पूर्व गवर्नर.
उन्होंने सुषमा के फैसले के बाद उनके लिए ट्विटर पर बेहद प्यारा सा एक मैसेज लिखा,
‘मैडम सुषमा स्वराज- अब और ज्यादा चुनाव न लड़ने का फैसला लेने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. मुझे याद है कि एक टाइम ऐसा भी आया था जब मिल्खा सिंह ने दौड़ना बंद कर दिया था. और आपकी मैराथन तो 1977 से चल रही है, 41 साल हो गए हैं. आपने 11 चुनाव लड़े. यहां तक कि 1977 के बाद से आपने केवल दो मौकों को छोड़कर हर चुनाव लड़ा. 1991 और 2004 में आपने चुनाव इसलिए नहीं लड़ा था, क्योंकि पार्टी ने आपको अनुमति नहीं दी थी. आप चार बार लोकसभा, तीन बार राज्यसभा सांसद रहीं. तीन बार विधानसभा भी पहुंचीं. आप जब 25 साल की थीं, तभी से चुनाव लड़ रही हैं. 41 साल तक चुनाव लड़ते रहना मैराथन जैसा ही है.
मैडम- मैं पिछले 46 साल से आपके पीछे दौड़ रहा हूं. मैं अब 19 साल का नहीं हूं. मेरी सांस फूलने लगी है. थैंक्यू.’
स्वराज ने ये मैसेज नवंबर 2018 में लिखा था. और महज़ आठ महीने बाद ही सुषमा उन्हें छोड़कर चली गईं. क्या बीत रही होगी स्वराज कौशल पर, शब्दों में बता नहीं सकते.
कैसे मिले सुषमा-स्वराज, क्या है उनकी प्रेम कहानी?
दोनों की मुलाकात हुई थी पंजाब यूनिवर्सिटी में. दोनों कानून की पढ़ाई कर रहे थे. अच्छे दोस्त थे. दोनों डिपार्टमेंट की डिबेटिंग टीम में साथ थे. और अगर खबरों की मानें तो दोनों की टीम कभी हारी नहीं थी. सुषमा की हिंदी में काफी मजबूत पकड़ थी. ये बताने वाली बात नहीं है. हर कोई जानता है. चाहे संसद में दिया हुआ कोई भाषण हो, या फिर किसी पत्रकार को दिया जवाब, या किसी कॉन्फ्रेंस में किसी मुद्दे पर बोलना हो. सब में सुषमा ने खुद को साबित किया था.
अब वापस सुषमा और स्वराज कौशल की दोस्ती पर आते हैं. साल था 1973, सुषमा ने लीगल प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध खत्म हो चुका था. देश की और अर्थव्यवस्था की हालत बहुत खस्ता थी. सुषमा ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) में थीं. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. और इंदिरा तानाशाही की तरफ तेज़ी से बढ़ रही थीं. देश के कई लोग उनके खिलाफ होते जा रहे थे. धीरे-धीरे उनके खिलाफ आवाज़ें उठने लगी थीं.
इंदिरा गांधी को जॉर्ज फर्नांडिस से खतरा महसूस होने लगा. जॉर्ज ट्रेड यूनियनिस्ट थे, पत्रकार थे, रेलवे कर्मचारियों के यूनियन के अध्यक्ष थे, बड़े मजदूर लीडर के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे. इंदिरा ने जॉर्ज पर आरोप लगाया कि उनसे सरकार को खतरा है. स्वराज कौशल पहले से ही जॉर्ज के करीबी थे, सुषमा भी जॉर्ज का साथ देने पहुंच गईं. सुषमा और स्वराज कौशल ने एक-दूसरे को इंदिरा के तानाशाही रवैये के खिलाफ पाया. और फिर दोनों की दोस्ती और भी गहरी हो गई. धीरे-धीरे ये प्यार में बदल गई.
इमरजेंसी के दौरान की थी शादी
सुषमा के पिता RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के लीडर थे. ऐसे में सुषमा के सामने लव मैरिज के लिए परिवार को मनाना बड़ा चैलेंज था. लेकिन सुषमा ने जैसे-तैसे अपने परिवार को शादी के लिए मना लिया. साल 1975 में 26 जून के दिन इमरजेंसी लागू हुई और 13 जुलाई के दिन सुषमा ने स्वराज कौशल से शादी कर ली.
शादी से पहले सुषमा का नाम था सुषमा शर्मा. लेकिन शादी के बाद उन्होंने अपने पति के पहले नाम को खुद के नाम के बाद लगाना शुरू कर दिया, और बन गईं- सुषमा स्वराज. दोनों की एक बेटी है, जिनका नाम बांसूरी है.
शादी के बाद सुषमा एक्टिव पॉलिटिक्स में आईं. इमरजेंसी के बाद 1977 में चुनाव लड़ा. हरियाणा विधानसभा पहुंच गईं. 1982 तक अंबाला की विधायक रहीं. उन्हें जुलाई 1977 में हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया, तब वो महज 25 साल की थीं. वो सबसे कम उम्र में हरियाणा की कैबिनेट मंत्री बनने वाली नेता रहीं. हरियाणा में बीजेपी और लोक दल के गठबंधन वाली सरकार में सुषमा शिक्षा मंत्री भी रहीं. दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. हालांकि उनका कार्यकाल बेहद छोटा रहा. वो अक्टूबर 1998 से दिसंबर 1998 तक दिल्ली की सीएम थीं.
उसके बाद सुषमा नेशनल लेवल की पॉलिटिक्स में आ गईं. राज्यसभा पहुंचीं, लोकसभा का चुनाव लड़ा. उनका राजनीतिक सफर मई 2019 तक चलता रहा. यानी 17वीं लोकसभा बनने तक.
वहीं स्वराज कौशल 34 साल की उम्र में सुप्रीम कोर्ट के सबसे युवा ऐडवोकेट जनरल बने. इसके पहले वो दिल्ली में ही क्रिमिनल लॉयर के तौर पर प्रैक्टिस कर रहे थे. 1990 में वो मिजोरम के गवर्नर बने. तब वो 37 साल के थे. 1993 तक वो इस पद पर रहे. 1998 से 2004 तक वो राज्यसभा के सांसद रहे. सुषमा भी साल 2000 से 2004 तक राज्यसभा सांसद रहीं. ये उन कम मौकों में से एक था जब कोई पति-पत्नी एक साथ राज्यसभा में हों.
जब ट्विटर पर ट्रोल करने वाले को स्वराज कौशल ने धूल चटाई थी
साल 2018 में, जब सुषमा विदेश मंत्री थीं, तब उन्होंने बहुत लोगों की वीज़ा और पासपोर्ट के मामले में मदद की थी. एक मुस्लिम कपल की भी उन्होंने मदद की. तब ट्विटर पर उन्हें बहुत बुरी तरह से ट्रोल किया गया था. लोगों ने आरोप लगाए कि वो मुस्लिमों को खुश करने की कोशिश कर रही हैं.
एक यूजर ने स्वराज कौशल को टैग करते हुए ट्वीट किया, कहा- जब वो घर आएं, तब उन्हें सिखाएं कि मुस्लिमों को खुश न करें. मुस्लिम कभी भी बीजेपी के लिए वोट नहीं करेंगे.
जवाब में स्वराज ने लिखा,
‘आपके शब्दों ने मुझे बहुत दुख दिया. मैं केवल आपसे ये शेयर करना चाहता हूं, कि मेरी मां की मौत 1993 में कैंसर की वजह से हुई थी. सुषमा तब सासंद थीं. वो एक साल तक अस्पताल में रहीं. मेरी मां की देखरख करती रहीं. उन्होंने किसी मेडिकल अटेंडेंट की मदद नहीं ली, खुद मेरी मां की सेवा करती रहीं. ये उनका त्याग था मेरे परिवार के लिए. मेरे पिता की इच्छा के मुताबिक, सुषमा ने उनकी चिता को अग्नि दी. हम सब उनसे बहुत प्यार करते हैं. उनके लिए प्लीज इस तरह के शब्द मत बोलो. हम इस वक्त केवल उनकी जिंदगी के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.’(नोट- जिस वक्त स्वराज ने ये बात कही थी, तब सुषमा अस्पताल में भर्ती थीं.)
सुषमा बिना रुके काम करती रहीं. उनका काम लोगों को दिखा भी. उनके पति स्वराज कौशल हर वक्त उन्हें सपोर्ट करते रहे. एक अच्छे पति का फर्ज बखूबी निभाते रहे. सुषमा आगे बढ़ती रहीं, और स्वराज मोरल सपोर्ट देते रहे. स्वराज ने सुषमा को हमेशा प्यार किया, उनकी इज्जत की. और समय-समय पर बहुत ही शांत तरीके से वो ये जाहिर भी करते रहे.
एक बार एक ट्विटर यूजर ने सुषमा और स्वराज कौशल से एक सवाल किया. वो ये कि स्वराज तो ट्विटर पर सुषमा को फॉलो करते हैं, लेकिन वो उन्हें नहीं करतीं. इस पर कौशल ने जवाब दिया, ‘मैंने तो उन्हें 45 साल तक फॉलो किया, अब ये नहीं बदल सकता.’
ऐसे कई वाकये हैं, कि पति अगर करियर में आगे बढ़ता है, तो पत्नी खुश होती है. लेकिन ऐसा कम ही दिखता है कि पत्नी के आगे बढ़ने से पति खुश रहे. ईगो क्लैश न हो. सुषमा और स्वराज कौशल का रिश्ता इसी तरह का था. कहीं भी कभी भी ये नहीं दिखा कि सुषमा की तरक्की से स्वराज को दिक्कत हुई हो. बल्कि वो हर कदम पर उन्हें सपोर्ट करते दिखे.