मेरी तो तकदीर में यही लिखा है,इसी बहाने अपना दोष तकदीर पे मढ़ता है;
तुम्हारी तो तकदीर बहुत ही अच्छी है,कह के अपनी तकदीर को कोसता है;
चल छोड़ यार मेरी तकदीर में वह नहीं ,कह के दिल को संतोष दिलाता है;
मेरी तो तकदीर साथ ही नहीं देती,कह के अपनी तकदीर पे दोषारोपण करता है;
दूसरे की थाली में इंसान को ,हमेशा घी ज्यादा ही दिखता है;
इसीलिए तो जिन्दगी भर ,अपनी ही तकदीर को कोसता रहता है।
तकदीर तो साथ देती है परिश्रमियों का,कर्मविरों का,ईमानदारों का;
दोषी ना बता तेरी तकदीर को ये इंसान,दोष तुझमें हैं उसकी आड़ में इसे ना छिपा।
वहीं होता है जो तकदीर में लिखा है, कह के अपने आप को ना बहला;
कर्मवीर अपनी तकदीर लिखते खुद हैअपने हाथों से, संवारते भी है उसे अपने हाथों से।
मेरी तो तकदीर ही फूटी निकली, कह कर अपने निष्कर्मों को ना छिपा;
कभी ना कभी तकदीर ही साथ देगी,थोड़ा इस पे ऐतबार तो कर;
तकदीर को बदल दे अपने कर्मों से,सफल जीवन की ये राह तू ना छिपा ।