*हमारे देश भारत में सदैव से विद्वानों का मान सम्मान होता रहा है | अपनी विद्वता के बल पर विद्वानों ने भारत देश का गौरव समस्त विश्व में बढ़ाया है | विद्वता का अर्थ मात्र पांडित्य का क्षेत्र न हो करके जीवन के अनेक विषयों पर पारंगत हो करके यह विद्वता प्राप्त की जाती है | किसी भी विषय का विद्वान हो वह अपने क्रियाकलापों से सर्वत्र पूजनीय हो जाता है | किसी विषय विशेष की विद्वता प्राप्त करने के लिए मनुष्य उस विषय के श्रेष्ठ सद्गुरु का चयन करके उस विशेष विद्या को प्राप्त करना प्रारंभ करता है परंतु जैसे ही उसे कुछ ज्ञान हो जाता है वह स्वयं को विद्वान समझने लगता है और समाज में विद्या (ज्ञान) बांटने के लिए निकल पड़ता है | ऐसे लोगों की गणना ना तो विद्वानों में हो पाती है और ना ही मूर्खों में | अधकचरा ज्ञान लेकर के स्वयं को विद्वान घोषित करने कराने का सतत प्रयास ऐसे लोगों के द्वारा किया जाता है | किसी भी विषय का अधूरा ज्ञान सदैव घातक ही रहा है , परंतु देश में जितनी संख्या विद्वानों एवं मूर्खों की है उससे कहीं ज्यादा संख्या अधकचरा ज्ञान प्राप्त किए स्वघोषित विद्वानों की देखने को मिल रही है | जिस विषय में उनको कोई विशेष ज्ञान नहीं है उसी विषय को बहस का मुद्दा बनाकर के ऐसे लोग स्वयं को स्थापित करने का प्रयास करते हुए देखे जा रहे हैं | ऐसे लोगों को समझाना बहुत कठिन होता है क्योंकि ऐसे लोग तर्क नहीं कर पाते हैं बल्कि अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कुतर्क का सहारा लेने लगते हैं | ऐसे ही लोगों के लिए राजा भर्तृहरि ने अपने "नीतिशतकम्" में लिखा है :- "अग्य: सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ: ! ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति !!" अर्थात :- एक मूर्ख व्यक्ति को समझाना सरल है , एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे ज्यादा सरल है , परंतु अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते , क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी एवं अपने तर्क के प्रति अंधे हो जाते | ऐसे लोगों को अपना तर्क ही उचित प्रतीत होता है |*
*आज समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ा है आधुनिकता के परिवेश में व्यवसायिक शिक्षा के साथ-साथ लोग आध्यात्मिक शिक्षा भी प्राप्त करने का प्रयास करते हुए देखे जा रहे हैं | आज जहां एक और प्रत्येक विषय के विद्वानों की संख्या बढ़ी है वहीं दूसरी ओर इनसे ज्यादा अधूरा ज्ञान रखने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है | आज जिधर देखो अधूरा ज्ञान रखने वाले स्वयं को स्थापित करने में प्रयासरत दिखाई पड़ते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे - ऐसे लोगों के दर्शन कर रहा हूं जो संविधान के विषय में कुछ भी नहीं जानते हैं परंतु कहीं से एक लाइन पाकर के दिन भर उसी पर चर्चा किया करते हैं और देश के संविधान में अनेकों कमियां निकाला करते हैं | इसके अतिरिक्त अनेक विद्वान ऐसे भी समाज में टहल रहे हैं जिन्होंने विद्वता प्राप्त करने के लिए गुरुओं का आश्रय लिया परंतु अधूरा ज्ञान प्राप्त करने के बाद उनको ऐसा प्रतीत हुआ कि वह विद्वान हो गए हैं और स्वयं गुरु की श्रेणी में आ गए | जिनको न तो ढंग से श्लोक आता है और न हीं श्लोक का अर्थ निकालना ऐसे तथाकथित लोग समाज को कौन सी दिशा देंगे | जो देश के भूगोल , इतिहास , संविधान , विज्ञान एवं अध्यात्म के विषय में स्वयं कुछ नहीं जानते हैं परंतु लोगों के मध्य स्वयं को विद्वान की श्रेणी में स्थापित करना चाहते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे लोग किसी के द्वारा उचित एवं सत्य का ज्ञान कराने पर उसको मानना भी नहीं चाहते हैं क्योंकि उनको ऐसा प्रतीत होता है कि जो मैं जानता हूं वही सत्य है | "एको$हं द्वितीयो नास्ति" की भावना से प्रेरित होकर के ऐसे लोग समाज में अनेकों प्रकार के क्रियाकलाप करते हैं और हंसी के पात्र बनते रहते हैं | विद्वता का प्रदर्शन विद्वान कभी नहीं करता है परंतु जो स्वघोषित विद्वान हैं वह चाहे जिस विषय के हों उनके द्वारा ऐसे कृत्य बारंबार देखने को मिल रहे हैं | जो कि देश की दिशा एवं दशा को परिवर्तित करने में लगे हैं |*
*अधकचरा ज्ञान प्राप्त करके समाज में टहल रहे अनेकों ज्ञान - विज्ञान , संविधान एवं आध्यात्मिक गुरु की श्रेणी को प्राप्त कर चुके ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है |*