क्या आप जानते हैं गोवा भारत के साथ आजाद नहीं हुआ था | बंटवारे और संप्रदायिक हिंसा के बाद भारत को
आजादी तो मिल गई लेकिन गोवा पुर्तगाल के कब्जे में रहा | १९५४ में फ्रांसीसी पांडिचेरी छोड़ कर चले गए मगर
गोवा
आजाद नहीं हो पाया |
वास्कोडिगामा १४९८ में भारत आए और इसके १२ वर्षों के भीतर पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा कर लिया १५१० से
शुरू हुआ पुर्तगाली शासन गोवा के लोगों को ४५१ सालों तक झेलना पड़ा | १९ दिसंबर १९६१ को गोवा आजाद हुआ
और भारत में शामिल हुआ | गोवा दमन और दीव के भारत में शामिल होने के पीछे अनेक लोगों की भूमिका भी
थी जिनके बारे में लोगों को शायद ही पता
हो |
डॉक्टर लोहिया थे जिन्होंने गोवा के लोगों में आजादी की भूख जगाई थी | भारतीय सेना ने जो ऑपरेशन विजय
चलाया था इसके ३६ घंटों के भीतर पुर्तगाली जनरल ने आत्मसमर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए और
गोवा को भारत के हवाले सौंप दिया था | "लोहिया एक जीवनी किताब" में गोवा में लोहिया के संघर्ष के बारे में
इस तरह लिखा गया है कि "उनका इरादा तो बीमार शरीर को आराम देने का था" लेकिन गोवा में उन्होंने देखा
कि पुर्तगाली शासन ब्रितानिओं से भी अधिक बहशी है | डॉक्टर लोहिया ने पाया की लोगो के किसी भी तरह के
नागरिक अधिकार नहीं थे | यह सब कुछ देख कर डॉक्टर लोहिया का खून खौल उठा और उन्होंने तुरंत २०० लोगों
को जमा करके एक बैठक की और यह तय किया गया कि नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन छेड़ा जाए | १८
जून १९४६ को डॉक्टर लोहिया ने पुर्तगाली
प्रतिबन्ध को पहली बार चुनौती दी | इस दौरान वे बीमार भी थे |
तेज बारिश में लोहिया ने पुर्तगालियो के खिलाफ जनसभा को संबोधित किया जिसमें उन्होंने पुर्तगाली दमन के
विरोध में आवाज उठाई इस दौरान लोहिया को गिरफ्तार कर लिया गया और
मडगांव की जेल में डाल दिया गया |
लोहिया को जेल में डालने से महात्मा गांधी ने लेख लिखकर पुर्तगाली सरकार के दमन की कड़ी आलोचना की
और सख्त बयान दिया | यह सब देखकर पुर्तगाली घबरा गए और लोहिया को गोवा की सीमा से बाहर ले जाकर
छोड़ दिया | पुर्तगालियों ने लोहिया के गोवा में प्रवेश पर ५ साल का प्रतिबंध लगा दिया गया | परंतु लोहिया जब
तक गोवा में थे वे अपना काम कर चुके थे | गोवा के हिंदुओं और कैथोलिक ईसाईयों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
से प्रेरणा ली और खुद को संगठित करना शुरू किया , क्योंकि पुर्तग़ालिओं का इनके प्रति रवैया दिन-ब-दिन खराब
होता जा रहा था |
Image of Old Goa, Churches
विश्वनाथ लवांडे, नारायण हरि नायक, दत्तात्रेय देशपांडे और प्रभाकर सीनारी ने इसकी स्थापना की | इनमें से
कई लोगों को पुर्तगालियों ने गिरफ्तार करके लंबी सजा सुनाई और उनमें से कुछ लोगों को अफ्रीकी देश अंगोला की
जेल में रखा गया | विश्वनाथ लवांडे और प्रभाकर सिनारी जेल से भाग गए और क्रांतिकारी आंदोलन चलाते रहे |
Freedom Fighter Ram Manohar Lohia
लोहिया की प्रेरणा से १९५४ में गोवा विमोचन सहायक समिति बनी जिसने सत्याग्रह के आधार पर आंदोलन
चलाया और गुजरात में आचार्य नरेंद्र देव की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सदस्यों ने भी भरपूर साथ दिया | गोवा
छोड़ने से पहले लोहिया
ने गोवा के लोगों से आह्वान किया कि गोवा के लोग अपना संघर्ष जारी रखें |
एक बार दोबारा लोहिया गोवा गए लेकिन उनको रेलवे स्टेशन पर ही गिरफ्तार कर लिया गया | इस बार भी
गांधी जी लोहिया की गिरफ्तारी पर बहुत सख्त थे | इस बार पुर्तगालियों ने डॉक्टर लोहिया को १० दिन तक जेल
में रखने के बाद दोबारा गोवा की सीमा से बाहर ले जाकर छोड़ दिया | यहाँ एक गौर करने वाली बात थी की
गोवा की आजादी की लड़ाई में लोहिया की भूमिका को सिर्फ गांधी का समर्थन मिला | जबकि कांग्रेस पार्टी के बड़े
नेता नेहरू और पटेल का ध्यान गोवा की तरफ नहीं था | १९४७ में नेहरू ने यहां तक कह दिया कि गोवा प्रश्न
महत्वहीन है | नेहरू ने यह भी कहा कि गोवा के लोग भारत में नहीं आना चाहते | नेहरू के कथन से गोवा की
स्वतंत्रता का आंदोलन मुरझाने लगा | लेकिन लोहिया के मनोबल को देखकर गोवा के लोगों का मन बदल चुका
था | गोवा के लोगों के स्वतंत्र आत्मा के प्रतीक बन चुके थे डॉ राम मनोहर लोहिया |
Lohia calls for Direct Action in Goa
मुख्तार अनीस ने अपनी किताब पर लिखा है कि तब भारत में कांग्रेस और मुस्लिम लीग की अस्थाई सरकार थी
उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक बयान में कहा कि गोवा की पराधीनता भारत के गाल पर फुंसी
है | मुख्तार अनीस लिखते हैं कि सरदार पटेल ने भी साफ कह दिया कि गोवा से सरकार का कोई वास्ता नहीं है |
लेकिन लोहिया को गांधीजी का आशीर्वाद प्राप्त था |
आजादी का रास्ता कैसे
खुला -
गोवा को आजादी मिलने की कहानी बहुत दिलचस्प है | गोवा को छोड़ने के मूड में पुर्तगाल नहीं था | नेहरू किसी
सैन्य टकराव से हिचक रहे थे क्योंकि गोवा नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नैटो) का सदस्य था | नवंबर
१९६१ में कुछ ऐसा हुआ कि पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चलाई जिसमें एक व्यक्ति की
मौत हो गई , इसके बाद माहौल बदल गया और तुरंत नेहरू ने आपातकालीन बैठक की जिसमें भारत के
तत्कालीन रक्षामंत्री के वी कृष्णा मेनन थे |
इस बैठक के तुरंत बाद १७
दिसंबर को भारत में करीब ३०००० सैनिकों को ऑपरेशन विजय के तहत गोवा
भेजने का फैसला किया गया | इस ऑपरेशन में नौसेना और वायुसेना भी शामिल थी | इस ऑपरेशन से पुर्तगाली
इतने बौखलायें हुए थे की उन्होंने वास्को का पुल उड़ा दिया, लेकिन भारत की मजबूत सेना के आगे ३६ घंटो के
भीतर पुर्तगाल ने कब्जा छोड़ने का फैसला कर लिया |
बहुत बहुत धन्यवाद |
साथ ही यह सन्देश जरूर
ध्यान दें -
घर पर रहें सुरक्षित रहे और हाँ समय समय पर गरम पानी का सेवन करें | साथ में
कोरोना का टीका अवश्य लगवाएं | अगला लेख जल्द ही आप लोगों के साथ साझा
किया जाएगा |
जय हिन्द |||| जय भारत
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मेरे को अति प्रिय लेख जो इस मंच पर मेरा पहला लेख है अवश्य पढ़े इसका यूआरएल/लिंक नीचे दे रहा हूँ –
https://shabd.in/post/117543/manokamna-purn-karne-wala-khajrana-ganesh-mandir-quot