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भक्ति

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मैया तेरे नव-रूपों में, मां का रूप समाया।इसीलिए तेरे दर्शन को, तेरे दर पर आया।।मिले आशीष भवानी!कृपा करना महारानी!!...जगह जगह है अनाचार, खल ने मर्यादा खोई।अधमों के चंगुल में अबला, निस्सहाय सम रोई।।हरो

शक्ति की भक्ति में,डूबा हर व्यक्ति है,माँ की आराधना को,"दीप" आई नवरात्रि है।बिना उसकी मर्जी से,हिलती नहीं पत्ती है,दुनियाँ को चलाने वाली,वो ऐसी आदि शक्ति है।देवी की भक्ति से,मिलती नव शक्ति है,फूल और प

ओ मोहना....मन मोहना।यमुना के तीरे बंसी बजाएँ।श्याम तेरी मुरलियाँ मन को लुभाए।प्यारे नटवर तू माखन चुराये।गैया चराये तू ब्रज का कन्हैया।तू बांका छबीला, यशोदा तेरी मैया।।नटवर.. नटखट राधा के मोहन।छटा निरा

मां सरस्वती वंदना हे मां सरस्वती, हंसवहिनी कृपा करो, अपने ज्ञान ज्ञोत से जगत का अंधकार हरो, बुद्धि विद्या प्रदान करो हे मां शास्त्ररुपिणी, जन-जन को ऊर्जावान‌ करो मां सुवासिनी, द्वेष,क्रोध,ल

नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो॥ थांरा देसा में राणा साध नहीं छै, लोग बसे सब कूड़ो। गहणा गांठी राणा हम सब त्यागा, त्याग्यो कररो चूड़ो॥ काजल टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो है बांधन जूड़ो। मी

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ढांढस बन्हाई के जोहाई समुझाई के त शक्ति के भान उ करउलैं जमवंता । साहस न बाटे केहू तोहरा के रोके टोके छेके डाँड़ डहरी हो चाहे भगवंता । सिया सुधि लेहि आवा देरी ना लगावा त ले सगरे प पुल दु बनइहें अभियं

“प्रतीक तथा प्रतिमा-उपासना” नामक यह अध्याय स्वामी विवेकानंद की विख्यात कृति भक्ति योग से लिया गया है। इसमें स्वामी जी व्याख्या कर रहे हैं धार्मिक प्रतीकों तथा उनकी उपासना की। वे बता रहे हैं कि प्रतीक

“अवतार” नामक यह अध्याय स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक भक्ति योग से लिया गया है। इस अध्याय में स्वामी जी इस बात का निरूपण कर रहे हैं कि अवतार कौन हैं और वे इस धरा पर क्यों अवतीर्ण होते हैं। अवतार

“गुरु और शिष्य के लक्षण” नामक यह अध्याय स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध किताब भक्तियोग से लिया गया है। इसमें स्वामी जी बता रहे हैं कि गुरु और शिष्य के लक्षण किस प्रकार होने चाहिए, अर्थात् सच्चे गुरु और श

“गुरु की आवश्यकता” नामक यह अध्याय स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक भक्ति योग से लिया गया है। आध्यात्मिक जीवन में गुरु की आवश्यकता अत्यधिक है। बिना गुरु के सही मार्ग पर बने रहना और उसपर आगे बढ़ना बहु

“भक्तियोग का ध्येय प्रत्यक्षानुभूति” नामक यह अध्याय स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक भक्ति योग से लिया गया है। इसमें स्वामी जी बता रहे हैं कि भक्ति कोई अंधश्रद्धा नहीं, अपितु इसका उद्देश्य ईश्वर का

“ईश्वर का स्वरूप” नामक स्वामी विवेकानंद कृत भक्ति योग का यह तीसरा अध्याय है। इसमें स्वामी जी बता रहे हैं कि भक्ति के लिए ईश्वर का स्वरूप समझना अत्यन्त आवश्यक है। साथ ही इस अध्याय में वे विभिन्न भारतीय

• “प्रार्थना” नामक यह अध्याय स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तक भक्ति योग का प्रथम अध्याय है। इसमें श्वेताश्वतर         उपनिषद के दो मंत्र हैं, जो ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हैं और उसकी शरण में जा

हे त्रिकालदर्शी शमशान वासी तुम्हे नमन, हे शंभू शूल पाणि उठो सर्वेश्वर शिखर चन्द्र सजाओ विष्णुप्रिय अब रूप बदल आयो जल स्नान करो हे भस्म रमैया थोड़ा श्रृंगार करो हे भुजंग सजैया छवि देख ना डरे मेरी मई

कर्म रूप को साध में रख कर,

कर्मभूमि में निहित मेरे हनुमान जी!


ऐश्वर्


  • क्यों तुम्हारे प्रेम में शिव,<

जय माता दी 🙏
सभी लोगो नवरात्रि की शुभकामना।
माता रानी करे प

   कावेरी हर साल की तरह इस साल भी माता की पूजा का स्थापना ब


गिरिधारी नटवर नागर, मोर मुकुट मोहे भाया।
सूरत  मैं तेरी

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