जज़्बात किसी के भी हो,रहते दिल की गहराई में,
बहुत श्रम करना पड़ता है,उन्हें जीवन पटल पे लाने में।
एक चित्रकार उकेर देता है,जज्बातों को अपनी पेंटिग में,
एक कवि उतार लेता है,जज्बातों को कुछ पंक्तियों में।
एक कहानी में जज्बातों को,कहानीकार समेट लेता है,
भावनाओं में जज्बातों को, व्यक्त नाटककार कर देता है।
चिकित्सक , मरीज़ के जज्बातों को साकार कर देता है,
अभिनेता ,जज्बातों से दर्शकों पर अधिकार कर लेता है।
आज बच्चे ना समझ पाते, मां बाप के वो जज़्बात,
क्योंकि समय के साथ,हो गया उनका अवमूल्यन,
धीरे धीरे मानव समाज से,हो रहा जज़्बातों का बहिर्गमन।