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कविता

21 जून 2017

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क्यों रोते हो पथिक रहो चुप कहाँ गई तेरी दृढ निश्चय कहाँ गयी ये छुप बस हो चुका सफर भूल गए लक्ष्य पर नजर माना मंजिल कठिन है नहीं यह नामुमकिन है बस इतने से हारे हारे तो हारे वह भी डर के मारे यदि तिमिर आया है तो जायेगा फिर तेरे जीवन में एक आलोक आएगा उठ जा और लग जा लक्ष्य पर तभी तू पायेगा अपना भविस्य

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