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मेरी पहली हवाई यात्रा

8 अप्रैल 2020

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Meri Pehli Hawai Yatra के उत्साह, रोमांच, थोड़ा सा डर, जिज्ञासा से मन उथल पुथल हो रहा था जैसे तैसे चारबाग रेलवे स्टेशन पर पहुँचा, लखनऊ चारबाग सुबह 9 बजे ही पहुँच गया था जबकि मेरी गोवा की फ्लाइट शाम 5:30 पर थी खैर अपने एक रिश्तेदार के घर चला गया चाय नाश्ता खाना पीना करके कुछ आराम की और 3 बजे फिर आ गया चारबाग और पहुँच गया मेट्रो स्टेशन वाकई मे लखनऊ की मेट्रो के स्टेशन देखते ही बनते है, टिकट काउंटर पर जाकर लखनऊ एयरपोर्ट की टिकट ली और चल पड़ा जैसे ही प्लेटफॉर्म पर पंहुचा मेट्रो रेल आ चुकी थी मुझे तो जल्दी थी ही फटाफट चढ़ गया वाकई मे साफ़ सफाई नज़र आ रही थी मेट्रो मे, मेरा मेट्रो का सफर भी शानदार रहा |

चलो अब पहुँच गए चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट अब वहां आई-डी और टिकट दिखाकर अन्दर प्रवेश लिया फिर सबसे पहले पूरा एयरपोर्ट देखा भैया Meri Pehli Hawai Yatra थी तो कौतूहल चरम पर था चलिए अब लगेज चेक करवाया मेरे पास तो मात्र एक पिट्ठू बैग था बस सारी औपचारिकताये को पूरा करके मैं एक सीट पर बैठ गया कुछ देर बाद पता चला की हमारी फ्लाइट के लिए लोग जाने लगे है, मैं दौड़ा और लाइन मे लग गया काउंटर पर फिर बोर्डिंग पास दिखाकर आगे बढ़ गया |

इण्डिगो की एक बस आई और अपने गंतव्य मतलब Meri Pehli Hawai Yatra के ऐरोप्लेन तक ले गई सबसे पहले तो जी भर के अपने हवाईजहाज ( मतलब जिसपर यात्रा करनी थी ) को निहारा दूर से तो छोटा सा लगता है पास से बहुत ही बड़ा फिर कदम बढ़ा दिए अन्दर की तरफ एयर-होस्टेस ने स्वागत किया और मैंने भी उनको नमस्कार बोलकर उनका अभिवादन स्वीकार किया |

अगस्त 2019 - लखनऊ से गोवा - Meri Pehli Hawai Yatra

अब मै हवाई जहाज के अन्दर था मुझे हवाई जहाज एक बड़ी डीलक्स बस की तरह दिखा खैर अपनी सीट ढूंढी और बैठ गया कौतूहलवश सीट बेल्ट को बांधने का प्रयास करने लगा हड़बड़ाहट मे मुझसे बेल्ट बाँधी ही नहीं जा रही थी तो पड़ोस मे बैठे एक सहयात्री ने मेरी मदद की मैंने कहा अरे इतना आसान था तब भी मुझसे नहीं हो रहा था वो सज्जन मुस्कुरा दिये अब एयर-होस्टेस ने सारे नियम बताये जिन्हें कोई भी सुन नहीं रहा था लेकिन मैंने बड़े ही ध्यान से सारे नियम सुने , यह Meri Pehli Hawai Yatra थी और पहली हवाई यात्रा में नियम सुनने भी चाहिए ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है |

और फिर वो घड़ी ( Meri Pehli Hawai Yatra ) आ गई जिसका मुझे कब से इंतजार था हवाईजहाज अपने रनवे पर रेंगने लगा और रेंगते रेंगते इतनी स्पीड तेज हो गई की पूछिए मत और अब मेरे प्लेन ने अवध की ज़मीन को अलविदा बोल दिया था मेरी निगाहेँ खिड़की पर थी मेरे ऊपर रोमांच छाया हुआ था ऊपर से नजाकत का शहर लखनऊ बड़ा प्यारा लग रहा था पता नहीं मैं किस सोच मे था तब तक प्लेन मे कुछ हुआ ऐसा प्रतीत हुआ की नीचे गिरे यह बिलकुल वैसा ही अनुभव था जैसे लिफ्ट में होता है लेकिन लिफ्ट से कही ज्यादा तेज और कई बात हुआ था |

अब हमारा हवाईजहाज आसमान को चीरते हुए काफी ऊपर पहुच चूका था , Meri Pehli Hawai Yatra असल में अब शुरू हो गई थी खिड़की का नजारा बहुत ही नया था मैंने सोचा पहाड़ दिख रहे है की बादल है अब हवाईजहाज में चहलकदमी होने लगी थी एयरहोस्टेस अपनी खाने की ट्राली लेकर जिसको जो चाहिए वो मुहैया करवा रही थी अच्छा एयरहोस्टेस के बोलने का लहजा वाकई में काबिलेतारीफ होता है |

हमने भी सोचा चलो थोडा खड़े होकर पैर सीधे किये जाय और वाशरूम भी देखा जाय कैसा होता है हवाईजहाज का, कौतुहलवश सीट बेल्ट खोलकर खड़े हो गये और पीछे की तरफ चल दिए , उड़ते हुए जहाज में चलना भी एक सुखद अनुभव था खैर अत्यंत साफ़ सुथरा आधुनिक तकनीको से युक्त ये वाशरूम था मै पुनः आकर अपनी सीट पर बैठ गया |

अब जो एयरकंडिशनर की हवा के लिए सीट के ऊपर बटन होता है उसको पहले तो समझा फिर इस्तेमाल किया , अब सामने जो मैगजीन रखी थी उसको पढ़ा मुझे मैगजीन पढने की उत्सुकता नही थी बस जो आगे खान-पीने का सामान रखने के लिए सीट में ही इनबिल्ट छोटी सी मेज होती है उसका उपयोग करना चाह रहा था , चूँकि ये Meri Pehli Hawai Yatra थी तो ये सब लाजिमी था |

अच्छा मोबाइल तो ऐरोप्लेन मोड पर था तो और इतने ऊपर शायद इन्टरनेट चलता भी नहीं , अच्छा एक और समस्या हुई थी मेरे साथ जो बता दू कान दर्द वो भी बड़ा अजीब सा जब आप ऊपर उड़ते हो तो वायु के दबाव के चलते कान में दर्द होता है सबको नही होता परन्तु कुछ लोगो को होता है खासकर पहली हवाई यात्रा वालो को जिनमे से हम भी एक थे , लोगो की आवाजे बहुत ही धीरे सुनाई दे रही थी हमको लेकिन मेरे पड़ोस में जो सज्जन बैठे थे उनके साथ ये समस्या नहीं थी वो बैठे मुस्कुरा रहे थे फिर मुझसे बोले की Meri Pehli Hawai Yatra में भी ऐसा ही मेरे साथ हुआ था |

फिर उन्होंने अपने बैग से कुछ निकाला मैंने देखा वो ऑरेंज वाली चूसने वाली टाफी थी बचपन याद आ गया 1 रुपये की 8 टॉफी मिलती थी खूब चूसते थे उन्हें क्यूंकि इससे सस्ता कुछ मिलता नहीं था और उस समय जेब खर्च भी एक रुपये दो रुपये ही मिलता था खैर उन सज्जन ने मुझे मेरे बचपन से बाहर निकाला और बोले ये टॉफी चूसो शायद आराम मिले हमने ले ली परन्तु कोई ख़ास आराम नही मिला फिर वो सज्जन बोले मुह से सांसे लो फिर एक नाक से निकालो वही मतलब अनुलोम विलोम खैर मैंने उन भले मानुष की बात मानकर यह भी किया अचानक कान से एक पट्ट की आवाज आई और सच में आराम मिल गया , कान दर्द Meri Pehli Hawai Yatra का एक दुखद अनुभव रहा |

अब देखा सब लोग नीचे देख रहे थे शायद गोवा आ गया था नीचे की रौशनी देखते ही बन रही थी मैंने टकटकी फिर से खिड़की की तरफ बाँध दी थी, हालाँकि अब फिर से प्लेन ऊपर नीचे हो रहा था जो की एक डर पैदा कर रहा था अब हमारा हवाईजहाज गोवा की जमीन पर दौड़ रहा था, धीरे धीरे सभी यात्रियों ने अपनी सीट बेल्ट खोली मैंने भी खोली और ऊपर से अपना बैग उठाया और समीप बैठे सज्जन का भी बैग उठाकर उनको दिया, सीढियों से निकलकर मै गोवा एअरपोर्ट पर पहुच चुका था गोवा के एअरपोर्ट की भी बनावट शानदार थी और Meri Pehli Hawai Yatra भी शानदार रही जिसे मै अपने जीवन में कभी भूल नहीं पाउँगा |

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Meri Pehli Hawai Yatra

अब मै हवाई जहाज के अन्दर था मुझे हवाई जहाज एक बड़ी डीलक्स बस की तरह दिखा खैर अपनी सीट ढूंढी और बैठ गया कौतूहलवश सीट बेल्ट को बांधने का प्रयास करने लगा हड़बड़ाहट मे मुझसे बेल्ट बाँधी ही नहीं जा रही थी तो पड़ोस मे बैठे एक सहयात्री ने मेरी मदद की मैंने कहा अरे इतना आसान था तब भी मुझसे नहीं हो रहा था वो सज्जन मुस्कुरा दिये अब एयर-होस्टेस ने सारे नियम बताये जिन्हें कोई भी सुन नहीं रहा था लेकिन मैंने बड़े ही ध्यान से सारे नियम सुने , यह Meri Pehli Hawai Yatra थी और पहली हवाई यात्रा में नियम सुनने भी चाहिए ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है |

और फिर वो घड़ी ( Meri Pehli Hawai Yatra ) आ गई जिसका मुझे कब से इंतजार था हवाईजहाज अपने रनवे पर रेंगने लगा और रेंगते रेंगते इतनी स्पीड तेज हो गई की पूछिए मत और अब मेरे प्लेन ने अवध की ज़मीन को अलविदा बोल दिया था मेरी निगाहेँ खिड़की पर थी मेरे ऊपर रोमांच छाया हुआ था ऊपर से नजाकत का शहर लखनऊ बड़ा प्यारा लग रहा था पता नहीं मैं किस सोच मे था तब तक प्लेन मे कुछ हुआ ऐसा प्रतीत हुआ की नीचे गिरे यह बिलकुल वैसा ही अनुभव था जैसे लिफ्ट में होता है लेकिन लिफ्ट से कही ज्यादा तेज और कई बात हुआ था |

अब हमारा हवाईजहाज आसमान को चीरते हुए काफी ऊपर पहुच चूका था , Meri Pehli Hawai Yatra असल में अब शुरू हो गई थी खिड़की का नजारा बहुत ही नया था मैंने सोचा पहाड़ दिख रहे है की बादल है अब हवाईजहाज में चहलकदमी होने लगी थी एयरहोस्टेस अपनी खाने की ट्राली लेकर जिसको जो चाहिए वो मुहैया करवा रही थी अच्छा एयरहोस्टेस के बोलने का लहजा वाकई में काबिलेतारीफ होता है |

हमने भी सोचा चलो थोडा खड़े होकर पैर सीधे किये जाय और वाशरूम भी देखा जाय कैसा होता है हवाईजहाज का, कौतुहलवश सीट बेल्ट खोलकर खड़े हो गये और पीछे की तरफ चल दिए , उड़ते हुए जहाज में चलना भी एक सुखद अनुभव था खैर अत्यंत साफ़ सुथरा आधुनिक तकनीको से युक्त ये वाशरूम था मै पुनः आकर अपनी सीट पर बैठ गया |

अब जो एयरकंडिशनर की हवा के लिए सीट के ऊपर बटन होता है उसको पहले तो समझा फिर इस्तेमाल किया , अब सामने जो मैगजीन रखी थी उसको पढ़ा मुझे मैगजीन पढने की उत्सुकता नही थी बस जो आगे खान-पीने का सामान रखने के लिए सीट में ही इनबिल्ट छोटी सी मेज होती है उसका उपयोग करना चाह रहा था , चूँकि ये Meri Pehli Hawai Yatra थी तो ये सब लाजिमी था |

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अच्छा मोबाइल तो ऐरोप्लेन मोड पर था तो और इतने ऊपर शायद इन्टरनेट चलता भी नहीं , अच्छा एक और समस्या हुई थी मेरे साथ जो बता दू कान दर्द वो भी बड़ा अजीब सा जब आप ऊपर उड़ते हो तो वायु के दबाव के चलते कान में दर्द होता है सबको नही होता परन्तु कुछ लोगो को होता है खासकर पहली हवाई यात्रा वालो को जिनमे से हम भी एक थे , लोगो की आवाजे बहुत ही धीरे सुनाई दे रही थी हमको लेकिन मेरे पड़ोस में जो सज्जन बैठे थे उनके साथ ये समस्या नहीं थी वो बैठे मुस्कुरा रहे थे फिर मुझसे बोले की Meri Pehli Hawai Yatra में भी ऐसा ही मेरे साथ हुआ था |

फिर उन्होंने अपने बैग से कुछ निकाला मैंने देखा वो ऑरेंज वाली चूसने वाली टाफी थी बचपन याद आ गया 1 रुपये की 8 टॉफी मिलती थी खूब चूसते थे उन्हें क्यूंकि इससे सस्ता कुछ मिलता नहीं था और उस समय जेब खर्च भी एक रुपये दो रुपये ही मिलता था खैर उन सज्जन ने मुझे मेरे बचपन से बाहर निकाला और बोले ये टॉफी चूसो शायद आराम मिले हमने ले ली परन्तु कोई ख़ास आराम नही मिला फिर वो सज्जन बोले मुह से सांसे लो फिर एक नाक से निकालो वही मतलब अनुलोम विलोम खैर मैंने उन भले मानुष की बात मानकर यह भी किया अचानक कान से एक पट्ट की आवाज आई और सच में आराम मिल गया , कान दर्द Meri Pehli Hawai Yatraका एक दुखद अनुभव रहा |

अब देखा सब लोग नीचे देख रहे थे शायद गोवा आ गया था नीचे की रौशनी देखते ही बन रही थी मैंने टकटकी फिर से खिड़की की तरफ बाँध दी थी, हालाँकि अब फिर से प्लेन ऊपर नीचे हो रहा था जो की एक डर पैदा कर रहा था अब हमारा हवाईजहाज गोवा की जमीन पर दौड़ रहा था, धीरे धीरे सभी यात्रियों ने अपनी सीट बेल्ट खोली मैंने भी खोली और ऊपर से अपना बैग उठाया और समीप बैठे सज्जन का भी बैग उठाकर उनको दिया, सीढियों से निकलकर मै गोवा एअरपोर्ट पर पहुच चुका था गोवा के एअरपोर्ट की भी बनावट शानदार थी और Meri Pehli Hawai Yatra भी शानदार रही जिसे मै अपने जीवन में कभी भूल नहीं पाउँगा |

Meri Pehli Hawai Yatra - पहली हवाई यात्रा के कुछ मज़ेदार अनुभव

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