कोई कहे हिंदु पानी
कोई कहे मुस्लिम पानी
समझाने को आत्मा पानी की अनेकों ने दी कुर्बानी
फिर भी न माने क्योंकि कमान ईसाईयत को थी
जो थमानी
ईसाईयत ने करोड़ों लीले आत्मा की हुई बदनामी
स्वतंत्र है देश फिर भी कोई कहे हिंदु पानी ‘कोई’ मुस्लिम पानी
क्योंकि किसी को मंदिर तो
किसी को है मस्जिद बनवानी
बौद्धों ने अपनी ही अलग हाट जमाली
मठों डेरों का पानी भी हो
गया है अभिमानी
कहे आत्मा
पानी की मानवता है जात इंसान की
पढ़ ले चाहे गीता,
बाइबल, गुरूग्रंथ और कुरान
मैं हूँ मंदिरों
की साधना ‘गिरिजागरों’ की प्रार्थना
गुरुद्वारे का
शब्द हूँ ‘मस्जिदों’ की आवाज
बंटना गंवारा
न मुझे मैं सब में हूँ इक ‘आत्मा’
मैं हूँ दया का इक धागा
नहीं धर्म की ‘पड़ताड़ना’
जीव से जीव जुड़े है मेरी यही ‘प्रार्थना’
है मेरी आत्मा की एक ही पुकार
कि
धर्म श्रेष्ठता की जगह अहम युक्ति हो सद्भावना