*सनातन धर्म ने मानव जीवन में आने वाली प्राय: सभी समस्याओं का निराकरण बताने करने का प्रयास अपने विधानों के माध्यम से किया है | नि:संतान दम्पत्ति या सुसंस्कृत , सदाचारी सन्तति की प्राप्ति के लिए "पयोव्रत" का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है | दैत्यराजा बलि के आक्रमण से देवता स्वर्ग से पलायन करके गुफाओं / कन्दराओं में दुखी होकर जीवन व्यतीत करने लगे | देवताओं की माता अदिति अपने पुत्रों की दुर्दशा पर बहुत दुखी हुईं एवं अपने पति कश्यप के निर्देशानुसार एक उत्तम सन्तान प्राप्त करने के उद्देश्य से "पयोव्रत" का अनुष्ठान किया | फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से द्वादशी तक किये जाने वाले इस उत्तम व्रत को करने वाले सरोवर के किनारे वाराह (सूकर) के द्वारा खोदी गयी मिट्टी को शरीर पर लगाकर स्नान करके भगवान विष्णु का पूजन करें ! दूध पीते हुए बारह दिन तक भूमि पर शयन करते हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए यह व्रत करने के फलस्वरूप माता अदिति ने गर्भ धारण किया एवं भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु कश्यप जी के आश्रम में "वामन" के रूप में प्रकट हुए | राजा बलि के यज्ञ में पहुँचकर भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि में ही सब कुछ ले लिया | इस प्रकार देवताओं को स्वर्ग की पुन: प्राप्ति हुई | राजा बलि को सुतललोक प्रदान करके भगवान ने उसे भी अभय दान दिया | भगवान ने राजा बलि पर पूर्ण कृपा की | भगवान जब कृपा करते हैं तो भक्त से तीन कदम अर्थात तन , मन , एवं धन मांग लेते हैं | जब मनुष्य यह तीनों चीजें भगवान को अर्पित कर देता है तो भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते हैं | भगवान ने छोटा सा स्वरूप बनाकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि यदि किसी से मांगना हो , कुछ प्राप्त करना हो तो अपने समस्त ऐश्वर्य का त्याग करके छोटा बनकर ही जाना चाहिए | समस्त सृष्टि का पालन करने वाले श्रीहरि विष्णु ने छोटा याचक बनकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है | प्रत्येक मनुष्य को भगवान वामन के अवतार से यह सीख अवश्य लेना चाहिए कि याचक कितना भी ज्ञानी व धनी हो परंतु यदि किसी से कोई ज्ञान , धन व सहायता की कामना हो तो सदैव छोटा ही बनना पड़ता है |*
*आज के युग में भी हमारे व्रत / पर्व वही फल प्रदान करने वाले हैं परंतु आज व्रत का विघान पालन करने वालों की संख्या बहुत कम देखने को मिलती है | आज मनुष्य में विश्वास की कमी स्पष्ट झलकती देखी जा सकती है | आज अनेकों नि:सन्तान दम्पत्ति ओझा , बाबा एवं नीम - हकीमों के जाल में फंसकर अपना तन , मन , धन सब लुटा रहे हैं परंतु यदि उनसे कोई विद्वान "पयोव्रत" करने को कहे तो उनका विश्वास नहीं जमता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के दानदाताओं को भी देख रहा हूं जो आरती करते समय तन मन धन सब तेरा होने का उद्घोष तो करते हैं पर बड़े-बड़े मंदिरों एवं आयोजनों में दान स्वरूप मोटी रकम देने के बाद अपने नाम की घोषणा करवाने से भी नहीं चूकते | ये आधुनिक दानकर्ता दिखावे के लिए तो बगुत कुछ दान कर देते हैं परंतु भूलवश दरवाजे पहुँच गये किसी दीन हीन याचक को धक्के मारकर अपशब्दों का प्रयोग करते हुए भगा देते हैं | ऐसे लोगों को राजा बलि से शिक्षा लेनी चाहिए जिसने भगवान वामन से यह पूछे बिना कि आप कौन हो सर्वस्व दान कर दिया | ऐसा करने से राजा बलि को विशेष "भगवत्कृपा" प्राप्त हुई | प्रत्येक मनुष्य को हमारे आदर्शों से शिक्षा लेने का प्रयास करते रहना चाहिए | परंतु आज न तो कोई किसी का व्रत का विधिवत पालन करना चाहता है और न ही मन से दान करना चाहता है | आज किसी भी व्रत को करने के पहले मनुष्य इस पर मन्थन करते हुए देखा जा रहा है कि फलाहार में क्या लिया जा सकता है | वहीं आज के दानी मन्दिरों में दान की धनराशि के साथ ही अपने नाम का पत्थर भी भेज देते हैं | दान की परिणिति यह है कि यदि दाहिना हाथ दे तो बाँयें हाथ को भी नहीं पता चलना चाहिए , परंतु आज ढिंढोरा पहले पीटा जाता है दान बाद में किया जाता | ऐसा करके मनुष्य उचित फल की कामना करता है तो भला यह कैसे सम्भव हो सकता है | इन तथ्यों पर विचार करने की आवश्यकता है |*
*आज भी "पयोव्रत" की वही महिमा है ! आवश्यकता है निर्देशानुसार उसका पालन करने की | आज भी विधिवत इस "पयोव्रत" का पालन करके वामन भगवान को प्रकट किया जा सकता है |*