1.
सोनल 33 साल की है. 7 साल हो गए शादी को. 5 साल का एक बेटा है. सोनल के पति इंटरनेट सर्विस कंपनी में काम करते हैं. सोनल हाउसवाइफ है. बेटा स्कूल से लौट आए उसके बाद सोनल की दोपहरें खाली होती हैं. छोटी बहन आई थी तो उसने सोनल का फेसबुक अकाउंट बना दिया. सोनल ने शादी की एल्बम बनवाने के बाद से कभी फोटो नहीं खिंचवाई थी. तो मालूम नहीं था डीपी में क्या लागाए. शर्म भी आती है. जब घर में कोई नहीं था तो बेटे के साथ सेल्फी खींची. असल में तस्वीर में बेटा ही है. सोनल पीछे है. हलकी सी शक्ल दिख रही है. जैसे आंखें बस झांक सी रही हों. कवर फोटो में पति की फोटो लगा ली. जिसमें वो मोबाइल कान में लगाए मुस्कुरा रहा है. कोई मौका पड़ता है तो पति के साथ फोटो खिंचवा कर फेसबुक पर लगा देती है. अपने अकाउंट में एक भी तस्वीर में सोनल अकेली नहीं है.
2.
अंबर 26 साल की लड़की है. घरवालों ने उसकी शादी तय कर दी. अंबर इंडिया में थी, होने वाला पति दुबई में. उनके परिवार में ऐसा चलन नहीं था कि सगाई के पहले लड़की लड़के से बात करे. अंबर के मन में हमेशा यही चला करता था कि किसी तरह तो लड़के से बात कर जान लूं कि वो कैसा है. एक दिन अपनी इज्जत ताक पर रखकर उसने होने वाले पति को मैसेज किया. दोनों की कुछ दिन बात हुई. फिर ससुरालवाले आकर अंगूठी पहना गए और अंबर को फेसबुक अकाउंट बंद करने को कह दिया गया. किसी और ने नहीं, उसकी मां ने. अब तो शादी तय है, क्या जरूरत है फेसबुक पर अपना अकाउंट रखने की. होने वाले पति ने भी कहा, मेरा अकाउंट तो है ही, तुम क्या करोगी.
3.
54 साल की कविता की बेटी की शादी हो गई, बेटा विदेश में नौकरी करता है. घर पे कोई नहीं रहता. बोर हो जाती थीं. बेटे ने नया स्मार्टफोन गिफ्ट किया तो एक फेसबुक अकाउंट भी बना दिया. कहा, मम्मी यहां सब रिश्तेदार मिल जाएंगे. कविता स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल में इतनी कच्ची हैं कि कभी-कभी खड़ी फोटो को लेटी अपलोड कर देती हैं. एक दिन ‘प्राउड ऑफ़ यू माय सन’ लिखकर बेटे की प्रोफाइल फोटो शेयर कर दी. बेटा कई दिनों तक झेंपता रहा.
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हमारे सोशल मीडिया पर अक्सर इस तरह की तस्वीरें आती हैं. आपकी भी लिस्ट में कोई ऐसी महिला होगी, जो खुद से ज्यादा अपने बच्चे की फोटो लगाती होगी. अपने बनाए हुए खाने की फोटो लगाती होगी, बिना परवाह किए कि उसका किचन और कड़ाही कितने बदरंग लग रहे हैं.
आपको ऐसी लड़कियों की रिक्वेस्ट आती होगी, जिन्होंने डीपी में टूटा हुआ दिल लगाया होगा. लव हर्ट्स लिखा होगा. आप उनको एंजल प्रिया बुलाकर हंस पड़ते होंगे. आप, मैं, हम सभी.
आपकी फ्रेंड लिस्ट में कुछ उम्रदराज औरतें जरूर होंगी जो आपको, आपके बचपन के नाम से पुकार लेती होंगी और आप झेंप जाते होंगे. कमेंट सेक्शन में वो सवाल पूछ लेती होंगी जो चैट में पूछने चाहिए.
हमें ऐसी महिलाओं का फेसबुक या दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर होना हास्यास्पद लगता है. अधिकतर ये औरतें या तो कम पढ़ी-लिखी होती हैं. या तो इतने पिछड़े परिवारों से आती हैं जिसमें उन्हें लड़कों से मिलना, बात करना सख्त मना होता है. जब बात लड़कियों को घर में बंद कर रखने की आती है तो अमीरी-गरीबी जैसे सारे भेद मिट जाते हैं. समुदाय कोई भी हो, क्लास कोई भी, खानदान की इज्जत संभालने का प्रेशर लड़की के ही ऊपर होता है. इसलिए वो लड़कों से न बात करे, ये ही बेहतर है.
फिर एंट्री होती है स्मार्टफोन की और वो इन बंधनों को तोड़ देता है. अब लड़कियों को लड़कों से बात करने के लिए छत पर जाने की जरूरत नहीं है. गांवों में उन्हें शौच का बहाना कर निकलने की जरूरत नहीं है. क्योंकि उनके पास स्मार्टफोन है. जिसमें फेसबुक और वॉट्सऐप की अलग दुनिया है. एक ऐसी दुनिया जिसे आज अगर महज़ एक ऐप कहा जाए, तो वो उसके साथ अन्याय होगा.
हम एक ऐसी समाज में हैं जो मूलतः लड़कियों और लड़कों को अलग-अलग रखने में भरोसा रखता है, जबतक माता पिता को उनसे बच्चे न चाहिए हों. मूलतः हम एक कम्युनिटी बेस्ड समाज भी हैं. जिसमें बड़े-बड़े परिवार एक साथ रहते हैं. बड़े परिवार में रहना, जो एक सुंदर विचार है, लड़कियों के लिए उतना सुंदर नहीं रहता. चाहे वो बेटियां हों या बहुएं, उनके हिस्से अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाने का प्रेशर आता है. किसी बाहरी व्यक्ति से बात न करना, दोस्त न होना, और परिवार से इतर किसी के साथ घूमना-फिरना, दोस्तों की पार्टी अटेंड करना, बेटियों और बहुओं को इसकी इजाज़त नहीं होती. फलाने की बेटी, फलाने की पत्नी या फलाने घर की बहू ही उनकी पहली और आखिरी पहचान होती है.
इसमें जब स्मार्टफोन की एंट्री होती है, वो एक नया कल्चर लेकर आता है. ये नया कल्चर, सामुदायिक नहीं, पर्सनल आइडेंटिटी से बनता है. एक फोन पर फेसबुक या वॉट्सऐप का एक ही ऐप होता है, उस ऐप में आप अपना ही फेसबुक यूज करती हैं. मनोरंजन का ये जरिया टीवी की तरह नहीं कि आपके पास सिर्फ दोपहर का वक़्त हो और शाम को रिमोट घर के पुरुषों के हाथ में चला जाए.
इस पर्सनल आइडेंटिटी के माने औरतों के लिए कहीं ज्यादा हैं. क्योंकि सोशल मीडिया पर लड़कियां, लड़कियां पहले होती हैं. पत्नियां बाद में होती हैं. सोशल मीडिया उन्हें सुनता है, उनकी तस्वीरें दुनिया को दिखाता है. और उन्हें उन सहेलियों से जोड़ता है जिनसे वो शादी के बाद कभी नहीं मिली.
हम अपनी लिस्ट में मौजूद एंजल प्रिया पर हंस सकते हैं. उनके भोलेपन पर चुटकुले बना सकते हैं. मगर इनपर हंसते हुए हम कुछ बातें भूल जाते हैं. जैसे:
-जाने ये लड़की किस प्रेशर में है कि अपनी असली तस्वीर नहीं लगा सकती.
-क्या ये लड़की या इसलिए अपनी तस्वीर नहीं लगाती कि उसे डर है कि वो सुंदर नहीं है.
-बार-बार अपने बेटे की फोटो लगाने वाली औरत क्या ये साबित करना चाहती है कि वो शादीशुदा है और रिलेशनशिप की चाह में वो फेसबुक पर नहीं आई है.
हम अपनी लिस्ट में मौजूद उन लड़कियों पर भी हंस सकते हैं जिन्होंने बीते तीन साल से फेसबुक पर कोई भी एक्टिविटी नहीं की. मगर एक दिन ‘आई लव माय हबी’ जैसे कैप्शन के साथ हनीमून की फोटो डालने लगीं. लेकिन हंसते वक़्त हम ये भूल जाएंगे कि शायद ये हनीमून ही उनके जीवन का सबसे हाई पॉइंट हो. क्योंकि जब उन्होंने माता-पिता से सहेलियों के साथ ट्रिप पर जाने की इजाज़त मांगी हो तो उन्हें ये कहकर लौटा दिया गया हो कि अपने पति के साथ जाना.
एंजल प्रिया आज सोशल मीडिया पर इसलिए है क्योंकि सोशल मीडिया उसके लिए वो खिड़की है जो उसके मां-बाप-भाई-सास-ससुर-पति ने मिलकर बंद कर रखी है. जरूरी नहीं कि हर एंजल प्रिया के पीछे कोई लड़का ही हो, जो फ़ेक अकाउंट बनाकर बैठा हो.
वो कोई भी लड़की हो सकती है, जिसे परिवार का डर है. हम फिर भी उसपर हंस सकते हैं क्योंकि उसे मालूम नहीं है कि उसका यूजरनेम हास्यास्पद है. और हमें मालूम नहीं है कि उसका असल जीवन कितना असली है.