*परमात्मा द्वारा सृजित इस सृष्टि का अवलोकन प्रत्येक मनुष्य अपनी अपनी दृष्टिकोण से करता है | सुंदर-सुंदर दृश्य देखकर मनुष्य विचार करने पर विवश हो जाता है कि इस सुंदर सृष्टि का रचयिता अर्थात इसका मूल कितना सुंदर होगा | यदि मूल ना होता तो इतनी सुंदर सृष्टि शायद ही देखने को मिलती | जिस प्रकार इस सृष्टि का मूल वह परमात्मा है उसी प्रकार इस संसार में हम अनेकों प्रकार के वृक्ष एवं ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं के दर्शन करते हैं | वृक्ष देखने में तो बहुत सुंदर लगते हैं परंतु उनका मूल अर्थात जड़ इतनी सुंदर नहीं होती है जितनी सुंदर वृक्ष की डालियां एवं पत्तियां होती है परंतु बिना जड़ के वृक्ष का कोई अस्तित्व नहीं होता है | यदि कोई विचार करें कि इस बदसूरत जड़ को काट दिया जाए तो वृक्ष की सुंदरता बढ़ जाएगी , तो विचार कीजिए की जड़ को काटने के बाद वृक्ष कितना सुंदर रह जाएगा ?? लोग ऊंची ऊंची अट्टालिका / महल बनवाते हैं तरह तरह से उसको रंग रोगन भी करवाते हैं परंतु उनकी नींव में ना तो रंग रोगन होता है और ना ही वो खूबसूरत होती है | उन ऊंचे ऊंचे महलों का अस्तित्व उसी नींव पर टिका होता है | ठीक उसी प्रकार मनुष्य परिवार में जन्म लेकर उन्नति करने वाला प्राणी है | जिस प्रकार सृष्टि का मूल परमात्मा है , वृक्ष का मूल उसकी जड़ एवं बड़े बड़े भवनों का मूल उनकी नींव है उसी प्रकार कितना भी सुंदर व्यक्ति हो उसका मूल उसके बुजुर्ग होते हैं भले ही वे सुंदर ना हो परंतु उनके बिना सुंदरता का कोई अस्तित्व नहीं होता है | यदि जड़ ना होती तो वृक्ष का अस्तित्व नहीं होता उसी प्रकार यदि बुजुर्ग ना होते तो मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं होता | जिस प्रकार विशाल वृक्ष का संरक्षण जड़ करती है उसी प्रकार घर के बुजुर्ग परिवार के संरक्षक होते हैं | आज यदि मनुष्य अचंभित कर देने वाला आविष्कार कर रहा है या लोग विद्वान बनकर बड़े-बड़े मंचों पर प्रवचन कर रहे हैं तो उनमें हमारे बुजुर्गों का महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि इन्हीं बुजुर्गों के कारण ही मनुष्य संसार में जन्म लेता है | जन्म लेने के तुरंत बाद कोई योग्य नहीं हो जाता , उनको योग्य बनाने में घर के यही बुजुर्ग अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं | यदि यह चाहते हैं कि संसार में सम्मान होता रहे तो वृक्ष के जड़ की तरह इन बुजुर्गों का संरक्षण एवं सम्मान करना ही होगा |*
*आज मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया है | जिस प्रकार राजकीय भवनों में वृक्ष की सुंदरता को बढ़ाने के लिए उसकी जड़ को ढक दिया जाता है उसी प्रकार आज कुछ लोग अपने घर के बुजुर्गों को भी या तो कमरे में बंद करके रखते हैं या फिर उनको घर के बाहर निकाल देते हैं | आज यदि ऐसा हो रहा है तो कहीं ना कहीं से संस्कारों की कमी एवं अज्ञान का प्रभाव ही माना जाएगा | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि आज के युवा यदि अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं तो उसमें उनके माता-पिता ही दोषी हैं , क्योंकि आज के आधुनिक युग में अपने बच्चों को संस्कारित कर पाने का समय माता पिता के पास नहीं रह गया है जिससे कि बच्चे ज्ञान तो अर्जित कर ले रहे हैं परंतु संस्कारशून्य होते जा रहे हैं | आज समाज में बुजुर्गों की जो स्थिति है उसके जिम्मेदार आज के प्रौढ़ एवं कल के होने वाले बुजुर्ग ही कहे जा सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपने बच्चों को यह बताना आवश्यक नहीं समझा कि यह जो घर में बुजुर्ग हैं यही इस घर का अस्तित्व है यदि यह ना होते तो आज तुम्हारा अस्तित्व ना होता | आज एकल परिवारों के बढ़ते चलन ने बुजुर्गों को भार स्वरूप मान लिया है जबकि यह विचार करना चाहिए कि जब बिना नींव के महल नहीं खड़े हो सकते हैं , बिना जड़ के वृक्ष का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है , बिना परमात्मा के सृष्टि नहीं हो सकती है उसी प्रकार बिना बुजुर्ग के परिवार का विस्तार नहीं हो सकता है | आज मनुष्य अपनी जड़ को खोदने में लगा है | विचार कीजिए जिस दिन जड़ नहीं रह जाएगी उस दिन मनुष्य का कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा | प्रत्येक मनुष्य को जड़ रूपी बुजुर्गों का संरक्षण एवं सम्मान करते रहना चाहिए | जिन बुजुर्गों ने अपने बच्चों को सफलता के शिखर तक पहुंचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया वह बुजुर्ग आपसे किसी बात की अपेक्षा न रखकर सिर्फ सम्मान में प्रेम भरा व्यवहार चाहते हैं परंतु आज के आधुनिक शिक्षा प्रणाली के चलते मनुष्य वह भी नहीं कर पा रहा है जो कि आने वाले भविष्य के लिए चिंतनीय है | जो लोग अपने बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं वह शायद यह भूल जाते हैं कि कल उनको भी बुजुर्ग होना है , जो इस बात को समझ जाता है वह बुजुर्गों का सम्मान स्वयं करने लगता है परंतु आज मनुष्य इतना अंधा हो गया है कि वह सिर्फ वर्तमान को देख रहा है अपने भविष्य को देखने का समय ही उसके पास नहीं है | जो अपने भविष्य को देखकर नहीं चलता है वही अंततोगत्वा वृद्धावस्था में उपेक्षित होकर पश्चाताप की भट्टी ने जलता रहता है |*
*अपने अपने मूल का संरक्षण प्रत्येक व्यक्ति को करते रहना चाहिए | स्वयं तो बुजुर्गों का सम्मान करें ही और यदि वृद्धावस्था में अपने बच्चों से सम्मान चाहते हैं तो उन्हें भी बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाना ही पड़ेगा |*