निर्भया के बहाने
विजय कुमार तिवारी
अन्ततः आज २० मार्च २०२० को निर्भया के दोषियों को फांसी हो ही गयी।१६ दिसम्बर २०१२ को निर्भया के साथ दरिन्दों ने जघन्य अपराध किया था।पूरा देश उबल पड़ा था और हमारी सम्पूर्ण व्यवस्था पर नाना तरह के प्रश्न खड़े किये जा रहे थे।हमारा प्रशासन,हमारी न्याय व्यवस्था,हमारा राजनैतिक तन्त्र और हमारा समाज सभी कटघरे में थे।आज पूरे देश ने सुकून और संतोष महसूस किया है।आज फिर बहुत सी बातें होंगी और बहुत से तामझाम किये जायेंगे।शायद फिर से नये-नये प्रश्न उछाले जायेंगे और अनेक मंंचों पर नयी-नयी व्याख्यायें प्रस्तुत की जायेंगी।दो-चार दिनों तक पूरे देश में यह समाचार सुर्खियों में छाया रहेगा।सदा की तरह कुछ चेहरे दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर अपने ज्ञान और अपनी विद्वता का प्रदर्शन करेंगे।बहुतेरे अपनी-अपनी पीठ थपथपायेंगे और बहुत लोग आज भी कोसना जारी रखेंगे।ऐसा भी हो सकता है कि कुछ लोग उनके भी पक्ष में खड़े दिखें जिन्होंने ऐसा कुकृत्य किया है।हमारा देश अद्भूत है और हम पूरी दुनिया में अपनी इन्हीं विलक्षणताओं के लिए जाने जाते हैं।मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमारे यहाँ दुनिया का अच्छा से अच्छा और बुरा से बुरा कोई ऐसा विचार नहीं है जिसके वाहक और पोषक नहीं हैं।
हम अपनी सभ्यता-संस्कृति पर गर्व करते हैं और करना भी चाहिए।दरअसल हम अपने मूल्यों को,उन आचरणों और संस्कारो को जीवन में लागू नहीं कर पाते हैं।अपनी सभ्यता और संस्कृति को शायद हम स्वयं भुला बैठे हैं या ठीक से समझते नहीं।उन विचारों को,उन मूल्यों को दबाने की बहुत कोशिशेंं हुई हैं।हजारों सालों की गुलामी ने हमारे सारे मूल्यों को भटकाया और तहस-नहस किया है।आक्रान्ताओं ने अपनी विचारधारा,अपने मूल्य थोपने की कोशिशें कीं और हमारी सभ्यता-संस्कृति को रौंदा।हमने त्याग-तपस्या को अपना जीवन-दर्शन माना।सहिष्णुता,सह-अस्तित्व, प्रेम,सहयोग और हरेक का सम्मान हमने यही सीखा और यही किया।नारियाँ सदैव पूजित रहीं।कभी भी उन्हें भोग्या नहीं समझा गया।यह पवित्र भाव आक्रान्ताओं की कुदृष्टि की भेंट चढ़ गया और हम अपनी संस्कृति से अलग पतनोन्मुखी कृत्यों में उलझते गये।सबसे बड़ा कुठाराघात हमारी शिक्षा-व्यवस्था पर हुआ।गुरुकुल की परम्परा को खत्म किया गया।हमारे पुस्तकालय जला दिये गये।ऋषियों-मुनियों पर बड़े पैमाने पर आक्रमण हुए।समाज में नीति और धर्म जगानेवाले लोगोंं पर अत्याचार हुए।लोभ-लालच में अपने ही लोग एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े हो गये।इसका भरपूर लाभ उन आक्रान्ताओं ने उठाया।सर्वाधिक शिकार हमारी माताये,बहनें हुईं।हमारी प्राचीन संस्कृति में जहाँ नारियों को सम्पूर्ण श्रद्धा और सम्मान से व्यवहार किया जाता था,वहीं इन आक्रान्ताओं ने उनके प्रति देखने के भाव को बदल दिया।आज वही प्रभाव है कि हमारी बहू-बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं।
हमारा देश भले ही विगत सत्तर सालों से स्वतन्त्र है,भले ही अंग्रेज चले गये हैंं परन्तु उनके विचारों के मानने वाले ही सत्ता पर काबिज हो गये हैंं।इन्होंंने उन्हीं के विचारों,संस्कारों को बनाये रखने का पाप किया।शीर्ष पर रहे लोगों ने कभी भी भारतीय और भारतीयता की चिन्ता नहींं की।उन्होंने सदैव भारतीय और भारतीयता को वैसे ही नष्ट होने दिया जैसे आक्रान्ता करते आये थे।इनमें से अधिकांश की पृष्ठभूमि उन्हींं से जुड़ी है।उन्होंने सुनियोजित तरीके से वही एजेण्डा चलाया और हमारी संस्कृति को दबाते रहे।सबसे बड़ा कुकृत्य यह हुआ कि हमें जातियों,क्षेत्रों में बांटा गया।कुछ विशेष वर्ग को संरक्षण दिया गया और बहुतायत को दबाया गया।आज स्थिति यह है कि उनके मनोबल इतने बढ़े हुए हैं कि वे संविधान,कानून और किसी भी व्यवस्था को मानना नहीं चाहते।अराजक स्थिति से देश गुजर रहा है।
अब समय आ गया है।सोचना तो पड़ेगा ही और खड़ा भी होना पड़ेगा।देश सबका है और यहाँ सबका आदर और सम्मान है।देश में अभी भी साधन-संसाधनों की कोई कमी नहीं है।अराजक विचार हमें पतन की ओर ले जा रहे हैं।युवाओं को पुरुषार्थ से जीने का संंकल्प लेना चाहिए और एक-दूसरे का आदर करना चाहिए।देश के संविधान से भले ही कोई बच जाये,परमात्मा के न्याय से कोई नहीं बच सकता।यहाँ भले ही हम अराजक,आतंकी और व्यभिचारी हो जांंय,किसी भी व्यवस्था को न मानें और मनमाना करते रहें,निश्चित जानिये कि आप कभी भी उस बड़ी और अदृश्य व्यवस्था से बाहर नहीं हैं।उसके हथौड़े से कोई नहींं बच सकता।उसके पास ऐसे-ऐसे हथियार हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता।अभी करोना से पूरी दुनिया त्रस्त है।
आजकल समुद्र-मंथन का दौर चल रहा है।सक्रियता बढ़ी है और गति तीव्र हुई है।प्रकृति ने भी अपना खेल दिखाना शुरु कर दिया है।यह बहुत ही विलक्षण स्थिति है कि लोग पहचाने जाने लगे हैं और उनके चेहरे से पर्दा उठ रहा है।आश्चर्य यह है कि वे फिर भी गल्तियाँ करते जा रहे हैं।उनकी सोचने-समझने की शक्ति मानो नष्ट हो गयी है।वे खुद अपने महाविनाश पर उतारू हैं जैसे कोई पतिंगा खुद दिये की लौ में जाकर प्राण दे देता है।परमात्मा सम्पूर्ण विश्व में जागृति जगा रहा है।उसकी संहारक और रचनात्मक शक्तियाँ सक्रिय हो उठी हैं।यह उसी की न्याय-व्यवस्था का प्रतिफल है कि आज सालों से चली आ रही समस्यायें सुलझने लगी हैं।न्याय के उच्च पदों पर आसीन लोग अपने आदेशों से पूरी व्यवस्था को चमत्कृत कर दे रहे हैं।सभी अराजक और दुष्ट प्रकृति के लोग पकड़ में आ रहे हैं।
अभी भी समय है।हमें सही मार्ग पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए।यही उचित है और इसी में भलाई है।विश्वास रखिये परमात्मा सबको देना चाहता है।उसके यहाँ किसी तरह का भेद नहीं है।नारियों का सम्मान कीजिए और अपने भीतर सद्गुणों को जगाईये।संकल्प लीजिए कि अब कोई भी लड़की ऐसे हालात में ना पड़े।निर्भया के बहाने सभी पुरुषों से कहना है कि आप सभी लड़कियों की सुरक्षा में तत्पर हों और सम्पूर्ण नारी-जाति का सम्मान करें।नारी खिलखिलायेगी,मुस्करायेगी तभी सम्पूर्ण मानवजाति और हमारी सभ्यता-संस्कृति अपने उत्कर्ष को प्राप्त कर सकेगी।