*जय श्रीमन्नारायण*
*श्रीमते गोदाम्बाय नमः*
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*गुरुपूर्णिमा विशेष*
*भाग तृतीय*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 वैष्णव के चिन्ह स्वयं व्यक्ति को देव तुल्य बना देते हैं वैष्णव दीक्षा लेने के बाद पंच संस्कार युक्त मनुष्य स्वयं एक दिव्य यंत्र अर्थात दिव्य पुरुष के रूप में इस धरा धाम को आलोकित करता है
*ये कंठ लग्न तुलसी नलिनाक्ष माला*
*ये बाहु मूल पर चिन्हित शंख चक्र:*
*एवा ललाट पटले लसत ऊर्ध्व पुण्ड्र*
*ते वैष्णवा भुवनसु पवित्र यन्त्र*
अर्थात:- जिस मनुष्य के कंठे में अर्थात गले में तुलसी व कमलगट्टे की माला शोभित हो दोनों भुजाओं के ऊपर शंख चक्र अंकित हो मस्तक पर ऊर्ध्व पुण्ड्र तिलक लगा हो वह मनुष्य परम वैष्णव होकर इस धरा धाम पर एक पवित्र यंत्र की तरह इस धारा को आलोकित करता है और अंत में भगवान श्रीमन्नारायण के परमधाम बैकुंठ धाम में निवास पाता है और यह सब तभी संभव है जब सद्गुरु का आश्रय लिया जाए उनकी कृपा प्राप्त हो उनकी ममतामई छांव में रहकर उनका वंदन करते हुए भगवान नारायण का ध्यान गुरु मंत्र का जप और वैष्णव धर्म का पालन किया जाए वह व्यक्ति जो यह सब करता है अपने साथ-साथ अपने संपर्क में आने वाले अनेकानेक जीवो का कल्याण करते हुए और नारायण का ध्यान करता हुआ भगवान यतींद्र श्री रामानुजाचार्य के आदेशों का पालन करता हुआ इस पावन सनातन धर्म को आगे बढ़ाता है जिससे उसका ही नहीं अपितु उसके आने वाली अनेकों पीढ़ियां एवं पूर्व की सात पीढ़ियां मोक्ष की गामी बनकर उसकी साक्षी हो जाती है इस प्रकार वह सपना वैष्णव अपने साथ-साथ अनेकों जिओ का उद्धार करता बनता है और एक बात ध्यान देने योग्य है हमारे सनातन धर्म श्री वैष्णव संप्रदाय में कभी भी भिक्षा मांगने का प्रावधान नहीं बनाया गया उसका विशेष कारण यह पावन संप्रदाय माता श्री लक्ष्मी जी के द्वारा प्रारंभ किया गया आदि गुरु पूर्व आचार्य श्री सिन्धुजा माता लक्ष्मी है कहा गया है
*लक्ष्मी नाथ समारम्भाम नाथ यमुन मध्यमाम*
जब स्वयं पूर्व आचार्य माता लक्ष्मी जी हैं तो फिर इस संप्रदाय को भरण पोषण की चिंता ही नहीं है और दूसरी बात स्वयं नारायण ने गीता में कहा है
*अनन्याश्चिन्तयन्तो माम् ये जनाः पर्युपासते*
*तेषाम नित्य$भुक्तानां योगक्षेमम वहाम्यहं*
अर्थात जो मेरा अनन्य उपासक है केवल मेरा ही चिंतन करता है अनन्य उपासना से मतलब यह नहीं कि हम नारायण का ध्यान करें और अन्य देवताओं का अपमान करें अनन्य उपासना का मतलब यह है कि हम अगर शिव का भी पूजन करते हैं पूजन शिव का करें लेकिन प्रार्थना में ध्यान भगवान नारायण का हो भगवान शिव से कहें हे नाथ अभी नारायण के नाम की एक माला होती है कृपा करो एक से 11 होने लगे इस प्रकार से पूजन शिव का हो गया और चिंतन ध्यान नारायण का हुआ जो अन्य अन्य चिंतन को छोड़कर केवल नारायण का चिंतन करता है उसकी भरण पोषण योग क्षेम सभी का उत्तरदायित्व स्वयं श्रीमन्नारायण ले लेते हैं इसलिए सनातन धर्म श्री वैष्णव संप्रदाय सर्वश्रेष्ठ है
*क्रमशः----*
*श्री महंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*लखीमपुर खीरी*
*उत्तर प्रदेश*
*9648 7690 89*