*इस विशाल सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई , इसका पालन भगवान श्री हरि नारायण करते हैं और संहार करने का भार भगवान शिव के ऊपर है | सनातन धर्म में उत्पत्ति अर्थात सृजन कर्ता , पालक एवं संहारक त्रिदेव को माना जाता है | सृजन एवं संहार के बीच में पालन करने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भगवान विष्णु को मिला , क्योंकि जन्म देने वाले से पालन करने वाले का महत्व अधिक होता है | भगवान कृष्ण को जन्म तो मैया देवकी ने दिया परंतु उनका पालन यशोदा माता के द्वारा हुआ और इस संसार में भगवान श्री कृष्ण को यशोदा नंदन के रूप में जितनी ख्याति मिली उतनी देवकीनंदन के रूप में नहीं मिल पायी | पालनकर्ता को ही घर का मुखिया कहा जा सकता है | पालक या संचालक घर का हो या किसी संगठन का उसे समाज या परिवार के पालन में यदि स्वयं को या स्वयं के स्वरूप को मिटाना भी पड़े तो भी संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि पालक का एक ही कर्तव्य होता है कि उनके द्वारा जिनका पालन हो रहा है उनको कोई कष्ट ना होने पाये | चूंकि भगवान श्री हरि विष्णु इस संसार के पालन कर्ता है तो संसार में उत्पन्न अनेक गतिरोध को समाप्त करने का भार भी उन्हीं के ऊपर है , इसीलिए उन्होंने अपने सुंदर स्वरूप को त्याग करके अनेकानेक स्वरूप धारण कर अवतार लिया है | भगवान के अवतारों में दूसरा अवतार है पूर्व अर्थात कच्छप का | अमृत की प्राप्ति के लिए जब देवता और दानव मंदराचल को मथानी बनाकर के समुद्र का मंथन करने लगे तब मंदराचल पहाड़ समुद्र की गहराइयों में धंसने लगा | इस अवसर पर भगवान श्री हरि विष्णु ने मंदराचल को धंसने से रोकने के लिए बैशाख शुक्ल पूर्णिमा को कच्छप अर्थात कछुए का स्वरूप धारण करके मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण कर लिया | भगवान के ऐसा करने से संसार को अमृत एवं अनेक प्रकार की औषधियां तथा दिव्य रत्न प्राप्त हुए | भगवान श्री हरि विष्णु को इसीलिए देवताओं में सर्वोपरि माना जाता है क्योंकि उन्होंने संकटकाल में अपने स्वरूप का ध्यान ना दे करके समयानुसार स्वरूप धारण करके जनकल्याण का कार्य किया है इसीलिए उनको सर्वपूज्य माना जाता है |*
*आज वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन जब हम भगवान के कच्छप अवतार का पूजन करते हुए उनका प्राकट्योत्सव मना रहे हैं ऐसे में हमको विचार करने की आवश्यकता है कि इस समाज एवं देश का पालन करने वाला किस प्रकार होना चाहिए क्योंकि जीवन में जितना महत्व पालनकर्ता का होता है इतना महत्व सृजन कर्ता का नहीं होता परंतु आज इस समय परिवर्तित हो गया है | लोग यदि किसी का पालन करते हैं तो उसमें उनका स्वार्थ भरा होता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज अनेकों लोग ऐसे हैं जो समाज या किसी संगठन या फिर स्वयं के परिवार के मुखिया होते हुए भी अपने पदानुरूप कार्य न करके उससे विपरीत कार्य करते हुए देखे जा रहे हैं | वर्तमान समय में पालक को संहारक की भूमिका में देखा जा रहा है | ऐसे में हमें भगवान श्री विष्णु के चरित्रों एवं अवतारों से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए | भगवान श्री हरि विष्णु ने अनेकों अवतार धारण किए हैं जिनकी कथाएं हम बहुत प्रेम से सुनते एवं पढ़ते हैं परंतु उनके इन अवतार धारण पर कभी सूक्ष्मता से विचार नहीं करना चाहते | जबकि सत्य यह है कि भगवान के प्रत्येक अवतार हमको सूक्ष्म ज्ञान प्रदान करते हैं | आज के समाज में दूसरों को उपदेश देने वाले तो बहुत मिल जाते हैं परंतु उनका पालन स्वयं नहीं कर पाते , जबकि भगवान श्री हरि विष्णु ने कच्छप का अवतार धारण करके मानव मात्र को यह शिक्षा दी है की परिवार या समाज के पालन कर्ता को उनकी भलाई के लिए यदि अपने स्वरूप को भी मिटाना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए , क्योंकि पालनकर्ता का एक ही उद्देश्य होना चाहिए कि जो हमारे द्वारा पालन किए जा रहे हैं या जिनको सिर्फ हमारा ही आश्रय है उनकी भलाई किस प्रकार होगी ? इसके लिए क्या करना पड़ेगा ? अपने संरक्षण में रह रहे लोगों की भलाई में ही पालनकर्ता को विचार करते रहना चाहिए तभी वह पालनकर्ता कहे जाने की योग्य हो सकता है |*
*भगवान कच्छप का अवतार हमें यह शिक्षा देता है की एक पालनकर्ता को अपने संरक्षण में रहने वाले लोगों के लिए सदैव सचेत होकर विचार करते रहना चाहिए कि वह किस प्रकार काम करें जिससे कि उनको (संरक्षण में रहने वालों को) कोई कष्ट ना ऐसा करने पर ही वह पालनकर्ता कहा जा सकता है |*