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बेशक दंगल बेहतरीन फिल्म लेकिन नॉनवेज को बढ़ावा देने के आमिर के प्रयास घृणित

5 जनवरी 2017

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इन दिनों दंगल फ़िल्म की चर्चा सर्वत्र सुनी जा रही हैं, तो जा पहुंचे हम आज सूरत के 'V.R मॉल' के 'INOX' मल्टीप्लेक्स में, जहां प्रातःकालीन शो में आमिरखान, साक्षी तंवर आदि अदाकारों द्वारा अभिनित 'दंगल' फ़िल्म देखने का संयोग हुआ, पूरी फ़िल्म देखने के पश्चात यह तो हर कोई दर्शक तहे दिल से ये स्वीकारे बिना रहेगा भी नही कि इससे बेहतर फ़िल्म बन ही नही सकती थी, गोल्ड मेडलिस्ट गीता फोगाट स्वंय भी यह स्वीकारती हैं कि फ़िल्म 99 प्रतिशत उनकी रियल लाइफ पर ही आधारित हैं, 1 प्रतिशत मनोरंजन के हिसाब से आर्टिफिशियल पुट शामिल किया गया है , गीता एंव बबिता फोगाट के पिता महावीर सिंह फोगाट भी इसे बेहतरीन पिक्चर बता रहे हैं, निश्चित रूप से लड़के के जन्म पर खुशियां मनाने तथा लड़की पैदा होने पर मुंह लटकाने वाले माता-पिताओं को यह फ़िल्म सकारत्मक सन्देश देती हैं कि आज के युग में लड़कियां जमाने के अनुसार कदमताल मिलाते हुए आगे बढ़ रही हैं, और वे लड़कों तुलना में कम नही हैं तथा किसी भी क्षेत्र में पीछे नही हैं, लड़कियों को अमूमन दब्बू, अबला, संकोची व कमजोर आंकने वाले पुरुष प्रदान समाज को यह फ़िल्म अपनी सोच बदलने हेतु बाध्य करती हैं, इन सराहनीय प्रयासों हेतु आमिरखान का दिल से आभार, लेकिन इस पिक्चर के कुछ बिंदुओं पर हमारा कड़ा विरोध व एतराज भी हैं, इस फ़िल्म में आमिरखान द्वारा मांसाहार को बेफजुल बढ़ावा देने की प्रवृति को देख मेरे जैसे करोड़ों शाकाहारियों को गहरी ठेस पहुंची,यह स्पष्ट हैं कि जिस तरह 'दंगल' फ़िल्म में आमिरखान ने नॉनवेज की पुरजोर वकालत की उसकी कत्तई जरूरत नही थी, इस सीन को देख ऐसा लग रहा हैं कि मानो आमिरखान मांसाहार के प्रचार में ही जुटे हुए हैं, और कोई मांस कारोबारी उन्हें इसकी एवज में कोई आर्थिक फायदा पहुंचा रहा हैं, ताज्जुब यह हे कि जब-जब गीता मेडल हासिल करती, तब-तब वो चिकन बेचने वाला कसाई अपनी दुकान के बाहर गीता के पोस्टर को उस उत्सुकता से प्रदर्शित कर जश्न मनाता नजर आता कि मानो उसे मेडल उसकी दुकान से खरीदे चिकन की बदौलत ही मिल पाए हैं, हरियाणा के महावीर सिंह व उनकी पत्नि दया सिंह जाति से जाट हैं, अमूमन जाट जैसी कृषि प्रदान बिरादरी नॉनवेज आदि व्यंजन ों से दूर रहती हैं, तथा फ़िल्म में यह दर्शाया भी गया हैं, कि महावीर सिंह (आमिरखान) की पत्नि दया सिंह (साक्षी तंवर )अपनी बेटियों गीता (फातिमा साना शेख) व बबिता (सान्या मल्होत्रा) को नॉनवेज खिलाने हेतु तथा घर में ऐसे अभक्ष्य व्यंजन बनाने का वो कड़ा एतराज भी करती हैं, और वो अंत तक अपने हाथों से मांसाहार के व्यंजन बनाने से परहेज रखती हैं, तो फिर ये समझ में नही आ रहा कि आखिर इस अनावश्यक दृश्य को जबरदस्ती ठूंस कर शाकाहारियों की भावना को ठेस पहुंचाने की जरूरत कहां व क्यों थी ? क्या दूध-दही-घी, फल-फ्रुट, मेवों दालों-अनाजों जैसे शाकाहारी किस्मों से प्रोटीन तत्व नही मिल पाते ? क्या चन्दगीराम जैसे शाकाहारी खानपान अपनाने वाले पहलवानों ने भारत का गौरव नही बढ़ाया और उन्होंने विजय श्री हासिल नही की ? पहलवानी के क्षेत्र में गुरु हनुमान की प्रतिभा को कौन नही जानता ? वे ताउम्र शाकाहारी रहे, गुरू हनुमान के शिष्य झाड़सा गुड़गांव के पहलवान तथा लेख राम सोनी के पुत्र हेमाराम ने राजधानी में आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में तमाम के तमाम पहलवानो को चारों खाने चित कर डाला था, उनके भाई हरिचन्द्र वर्मा कबड्डी के अच्छे खिलाडी रहे हैं, ये दोनों भाई स्वंय तो शाकाहारी थे ही तथा अन्य खिलाड़ियों को भी प्रेरणा देते रहे है, फ़िल्म अभिनेता जॉन अब्राहम बॉस्केट बॉल व फ़ुटबॉल के अच्छे खिलाडी भी रहे हैं, वे भी पूर्णतया शाकाहारी हैं, क्रिकेटर रोहित शर्मा जो ब्राह्मण जाति से हे वे भी शाकाहारी हैं, पहलवानी व कुश्ती जैसे खेल तो अभी लुप्त हुए हैं, अतीत में यह विधा गजब की प्रचलित थी, हर गांव, हर शहर में अखाड़े बने नजर आते थे तथा वहां पहलवानी व कुश्ती बड़े पैमाने से होती थी, शायद ही किसी ने यह सुना या देखा होगा कि कुश्ती-पहलवानी आदि जीतने हेतु मांसाहार का खानपान आवश्यक था, दरअसल कुश्ती व पहलवानी ही एक ऐसी विधा है जिससे जुड़े अधिकांश खिलाडी शाकाहारी रहे हैं, आमिरखान जैसे मंजे हुए अभिनेता आखिर नॉनवेज को प्रमोट करने हेतु फ़िल्म जैसे उपयोगी माध्यम का दुरपयोग करने पे क्यों तुले हैं ? तथा इस माध्यम को शवाब, शराब और कवाब का पर्याय क्यों बनाया जा रहा हैं ? मेरा तो मानना हे कि आमिरखान का ये प्रयास किसी साजिश से कम नही हैं, क्या दूध- घी-मक्खन फल-फ्रुट मेवे, सोयाबीन, अनाज,दालें जैसे प्रोटीन पर आधारित खुराक अगर गीता-बबिता की हो जाती तो क्या उनके द्वारा मेडल जीतने में कोई सन्देह होता या ये फ़िल्म फ्लॉप हो जाती? साफ शब्दों में कहा जाए तो मांसाहार को प्रमोट करने तथा मीट लॉबी को फायदा पहुंचाने व इस कारोबार को बढ़ावा देने हेतु ..... आगेपढ़े

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article-imageइन दिनों दंगल फ़िल्म की चर्चा सर्वत्र सुनी जा रही हैं, तो जा पहुंचे हम आज सूरत के ‘V.R मॉल’ के ‘INOX’ मल्टीप्लेक्स में, जहां प्रातःकालीन शो में आमिरखान, साक्षी तंवर आदि अदाकारों द्वारा अभिनित ‘दंगल’ फ़िल्म देखने का संयोग हुआ, पूरी फ़िल्म देखने के पश्चात यह तो हर कोई दर्शक तहे दिल से ये स्वीकारे बिना रहेगा भी नही कि इससे बेहतर फ़िल्म बन ही नही सकती थी, गोल्ड मेडलिस्ट गीता फोगाट स्वंय भी यह स्वीकारती हैं कि फ़िल्म 99 प्रतिशत उनकी रियल लाइफ पर ही आधारित हैं, 1 प्रतिशत मनोरंजन के हिसाब से आर्टिफिशियल पुट शामिल किया गया है , गीता एंव बबिता फोगाट के पिता महावीर सिंह फोगाट भी इसे बेहतरीन पिक्चर बता रहे हैं, निश्चित रूप से लड़के के जन्म पर खुशियां मनाने तथा लड़की पैदा होने पर मुंह लटकाने वाले माता-पिताओं को यह फ़िल्म सकारत्मक सन्देश देती हैं कि आज के युग में लड़कियां जमाने के अनुसार कदमताल मिलाते हुए आगे बढ़ रही हैं, और वे लड़कों तुलना में कम नही हैं तथा किसी भी क्षेत्र में पीछे नही हैं, लड़कियों को अमूमन दब्बू, अबला, संकोची व कमजोर आंकने वाले पुरुष प्रदान समाज को यह फ़िल्म अपनी सोच बदलने हेतु बाध्य करती हैं, इन सराहनीय प्रयासों हेतु आमिरखान का दिल से आभार, लेकिन इस पिक्चर के कुछ बिंदुओं पर हमारा कड़ा विरोध व एतराज भी हैं, इस फ़िल्म में आमिरखान द्वारा मांसाहार को बेफजुल बढ़ावा देने की प्रवृति को देख मेरे जैसे करोड़ों शाकाहारियों को गहरी ठेस पहुंची,यह स्पष्ट हैं कि जिस तरह ‘दंगल’ फ़िल्म में आमिरखान ने नॉनवेज की पुरजोर वकालत की उसकी कत्तई जरूरत नही थी, इस सीन को देख ऐसा लग रहा हैं कि मानो आमिरखान मांसाहार के प्रचार में ही जुटे हुए हैं, और कोई मांस कारोबारी उन्हें इसकी एवज में कोई आर्थिक फायदा पहुंचा रहा हैं, ताज्जुब यह हे कि जब-जब गीता मेडल हासिल करती, तब-तब वो चिकन बेचने वाला कसाई अपनी दुकान के बाहर गीता के पोस्टर को उस उत्सुकता से प्रदर्शित कर जश्न मनाता नजर आता कि मानो उसे मेडल उसकी दुकान से खरीदे चिकन की बदौलत ही मिल पाए हैं, हरियाणा के महावीर सिंह व उनकी पत्नि दया सिंह जाति से जाट हैं, अमूमन जाट जैसी कृषि प्रदान बिरादरी नॉनवेज आदि व्यंजनों से दूर रहती हैं, तथा फ़िल्म में यह दर्शाया भी गया हैं, कि महावीर सिंह (आमिरखान) की पत्नि दया सिंह (साक्षी तंवर )अपनी बेटियों गीता (फातिमा साना शेख) व बबिता (सान्या मल्होत्रा) को नॉनवेज खिलाने हेतु तथा घर में ऐसे अभक्ष्य व्यंजन बनाने का वो कड़ा एतराज भी करती हैं, और वो अंत तक अपने हाथों से मांसाहार के व्यंजन बनाने से परहेज रखती हैं, तो फिर ये समझ में नही आ रहा कि आखिर इस अनावश्यक दृश्य को जबरदस्ती ठूंस कर शाकाहारियों की भावना को ठेस पहुंचाने की जरूरत कहां व क्यों थी ? क्या दूध-दही-घी, फल-फ्रुट, मेवों दालों-अनाजों जैसे शाकाहारी किस्मों से प्रोटीन तत्व नही मिल पाते ? क्या चन्दगीराम जैसे शाकाहारी खानपान अपनाने वाले पहलवानों ने भारत का गौरव नही बढ़ाया और उन्होंने विजय श्री हासिल नही की ? पहलवानी के क्षेत्र में गुरु हनुमान की प्रतिभा को कौन नही जानता ? वे ताउम्र शाकाहारी रहे, गुरू हनुमान के शिष्य झाड़सा गुड़गांव के पहलवान तथा लेखराम सोनी के पुत्र हेमाराम ने राजधानी में आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में तमाम के तमाम पहलवानो को चारों खाने चित कर डाला था, उनके भाई हरिचन्द्र वर्मा कबड्डी के अच्छे खिलाडी रहे हैं, ये दोनों भाई स्वंय तो शाकाहारी थे ही तथा अन्य खिलाड़ियों को भी प्रेरणा देते रहे है, फ़िल्म अभिनेता जॉन अब्राहम बॉस्केट बॉल व फ़ुटबॉल के अच्छे खिलाडी भी रहे हैं, वे भी पूर्णतया शाकाहारी हैं, क्रिकेटर रोहित शर्मा जो ब्राह्मण जाति से हे वे भी शाकाहारी हैं, पहलवानी व कुश्ती जैसे खेल तो अभी लुप्त हुए हैं, अतीत में यह विधा गजब की प्रचलित थी, हर गांव, हर शहर में अखाड़े बने नजर आते थे तथा वहां पहलवानी व कुश्ती बड़े पैमाने से होती थी, शायद ही किसी ने यह सुना या देखा होगा कि कुश्ती-पहलवानी आदि जीतने हेतु मांसाहार का खानपान आवश्यक था, दरअसल कुश्ती व पहलवानी ही एक ऐसी विधा है जिससे जुड़े अधिकांश खिलाडी शाकाहारी रहे हैं, आमिरखान जैसे मंजे हुए अभिनेता आखिर नॉनवेज को प्रमोट करने हेतु फ़िल्म जैसे उपयोगी माध्यम का दुरपयोग करने पे क्यों तुले हैं ? तथा इस माध्यम को शवाब, शराब और कवाब का पर्याय क्यों बनाया जा रहा हैं ? मेरा तो मानना हे कि आमिरखान का ये प्रयास किसी साजिश से कम नही हैं, क्या दूध- घी-मक्खन फल-फ्रुट मेवे, सोयाबीन, अनाज,दालें जैसे प्रोटीन पर आधारित खुराक अगर गीता-बबिता की हो जाती तो क्या उनके द्वारा मेडल जीतने में कोई सन्देह होता या ये फ़िल्म फ्लॉप हो जाती? साफ शब्दों में कहा जाए तो मांसाहार को प्रमोट करने तथा मीट लॉबी को फायदा पहुंचाने व इस कारोबार को बढ़ावा देने हेतु फ़िल्म जैसे सशक्त माध्यम का आमिरखान द्वारा यह पूर्ण तया दुरपयोग हैं, मेरा आमिरखान जैसे मांसाहार के प्रबल समर्थकों से ये प्रश्न हैं कि जब किसी जेन्यून दृश्य से भी किसी धर्म या मजहब की भावनाओं को ठेस पहुंचने का खतरा बना रहता है तो उन दृश्यों को भय व ख़ौफ़ के मारे शामिल करने से क्यों कतराते हो ? तो ऐसे दृश्यों से भी शाकाहारियों की भावनाएं बुरी तरह आहत होती हैं, क्या ऐसे सिनों से किनारा नही किया जा सकता ? बहरहाल आमिरखान से यही कहना हैं कि माना कि आप मांसाहार के प्रबल समर्थक हो और आप को यह खानपान प्रोटीन का भरपूर स्त्रोत महसूस होता नजर आता है, तो इसकी मायने ये तो नही कि आप पूरी दुनिया को नॉनवेज के खानपान का सन्देश देते फिरो….
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गणपत भंसाली
Jasolwala@gmail.com
09426119871

Vidrohi Avaz बेशक दंगल बेहतरीन फिल्म लेकिन नॉनवेज को बढ़ावा देने के आमिर के प्रयास घृणित , मानो आमिर मांस बेचने वाली लॉबी के प्रचार में जुटे है - Vidrohi Avaz
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बचपन की यादे और आज

10 अगस्त 2016
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बेटी है तो कल है

10 अगस्त 2016
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                  बोये जाते हैं बेटेपर उग जाती हैं बेटियाँ,खाद पानी बेटों कोपर लहराती हैं बेटियां,स्कूल जाते हैं बेटेपर पढ़ जाती हैं बेटियां,मेहनत करते हैं बेटेपर अव्वल आती हैं बेटियां,रुलाते हैं जब खूब बेटेतब हंसाती हैं बेटियां,नाम करें न करें बेटेपर नाम कमाती हैं बेटियां,......क्यों की में अपने बेट

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लोभ व् क्रोध है नर्क के द्वार

11 अगस्त 2016
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क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है, प्रीति को नष्ट कर देता है। क्रोध जब व्यक्ति को आता है तो वह बेभान हो जाता है, उसे करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं रहता, वह प्रीति को समाप्त कर देता है। प्रेम को नष्ट कर देता है। क्रोधी व्यक्ति में विवेक नहीं रहता तो विनय भी नहीं रहता। मान, विनय को नष्ट कर देता है। अभिमान म

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राजनितिक पार्टिया और भ्रष्टाचार

11 अगस्त 2016
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रंग बदलने की फितरत और उदाहरण भले ही गिरगिट के हिस्से मेंआते हैं, लेकिन मानव जाति में भी कम रंग बदलू लोग नहीं हैं। सबसेज्यादा यह प्रजाति आपको लोकतंत्र के मंदिर में मिल जाएगी ! बल्कि ऐसे लोगों कीसंख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है।तो साहेबान, कदरदान, मेहरबान, पेश हैभ्रष्टाचार में सर से पांव तक डूबे

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दिनों दिन पनपती यह गंभीर समस्या

11 अगस्त 2016
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आज वर्तमान में हमारे देश की सबसे गंभीर समस्या तेजी से पनप रही है वह है तलाक नामक बीमारी ! जो व्यक्ति या नारी इस बीमारी से गुजरा है या गुजर रहा है तलाक नाम सुनते ही खुद अपने आपको दुर्भाग्यशाली समझने लग जायेगा ! आखिर यह समस्या क्यों पनप रही है ! आज क्यों अदालतो में हजारो लाखो इस तरह के केस लंबित पड़े

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एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी

12 अगस्त 2016
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मित्रो में आज एक ऐसे विषय पर अपने विचार प्रेषित कर रहा हु जो आज की सबसे बड़ी समस्या है कुछ दिनों पूर्व मेरे एक पत्रकार मित्र के साथ बेठा था उसने उसे प्राप्त एक किशोरी के खत की चर्चा की मेरे मानस पटल पर यही बात बात बार बार आ रही थी ... मेने सोचा अपने विचारो को ब्लॉग, फेसबुक , व्हट्स अप के सभी पा

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ये भटकता मन

25 अगस्त 2016
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मन एक ऐसी शक्ति है जो आपको एक सेंकंड में कहा से कहा तक हजारो मील की यात्रा करा देता है !हम अपने घर पर बेठे देहली , अमेरिका तक की यात्रा मन से क्षणों में कर के आ जाते है ! इसे हम कह सकते भटकता मन ! मनुष्य का मन कितनी जल्दी भटकता है । ये नही तो

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हरियाणा विधानसभा सम्बोधन सोशल मीडिया में जंग

2 सितम्बर 2016
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सोशल मीडिया में जंग छिड़ी । हरियाणा विधानसभा के सत्र के पहले दिन जैन मुनि आचार्य तरुण सागर जी के प्रवचन को लेकर जबरदस्त विवाद छिड़ा । उनके प्रवचन को कड़वे वचन का नाम दिया गया था और सभी पार्टियों के विधायकों ने पूरी तन्मयता से उनकी बातें सुनीं थी । उनके प्रवचन को लेकर

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एक सच्ची एवं निष्कपट- क्षमा याचना

2 सितम्बर 2016
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क्षमा मांगना एक यान्त्रिक कर्म नहीं है बल्कि अपनी गलतियों को महसूस कर उस पर पश्चाताप करना है । पश्चाताप में स्वयं को भाव होता है । ताकि हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा आगे बढ़ा सकें । भूल करना मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है; हम सभी भूल करते

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जैनधर्म के पर्युषण देता मधुरता व् मेत्री का सन्देश

3 सितम्बर 2016
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श्वेताम्बर सम्प्रदाय प्रति वर्ष की भाँति आत्म जागरण का महापर्व पर्युषण चल रहे हैं। व् दिगंबर सम्प्रदाय में शुरू होने वाले है यह पर्व क्षमा और मैत्री का संदेश लेकर आया है। खोलें हम अपने मन के दरवाजे और प्रवेश करने दें अपने भीतर क्षमा और मैत्री की ज्योति किरणों को। तिथि

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सफलतम जीवन की कुंजी – आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए?

4 सितम्बर 2016
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में एक दिन रात्री के दुसरे प्रहर यानी करीब एक बजे में कुछ विचारो में खोया हुआ था नींद नही आ रही थी तो मन को शांत व् एकाग्रचित करने के लिए एक पुस्तक पढने बेठ गया पुस्तक हाथ में लगी रूस में एक बहुत बड़े लेखक इतने बड़े कि सारी दुनिया उन्हें जानती है। उनका नाम था लियो टॉल्स्टॉय, पर हमारे देश में उन्हे

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बेशक दंगल बेहतरीन फिल्म लेकिन नॉनवेज को बढ़ावा देने के आमिर के प्रयास घृणित

5 जनवरी 2017
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इन दिनों दंगल फ़िल्म की चर्चा सर्वत्र सुनी जा रही हैं, तो जा पहुंचे हम आज सूरत के 'V.R मॉल' के 'INOX' मल्टीप्लेक्स में, जहां प्रातःकालीन शो में आमिरखान, साक्षी तंवर आदि अदाकारों द्वारा अभिनित 'दंगल' फ़िल्म देखन

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पर्यावरण का करना ख्याल

4 जून 2017
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एक वृक्ष दस पुत्रो के समान होता है, अतः अगर हम एक वृक्ष काटते है तो हमे दस मनुष्यों की हत्या का पाप लगता है। इसलिए हमने वायु प्रदान करने वाले वृक्ष को नही काटना चाहिए। जल, थल और आकाश मिलकर पर्यावरण को बनाते हैं। हमने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के इन वरदानों का दोहन किया,

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