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" वह चुप था "

14 सितम्बर 2017

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ज़िन्दगी ने किया एक मज़ाक,

उस नन्हें नादान के साथ,

राहें दर्द देती रहीं उसे,

फिर भी वह चुप था|


वो हसीं रिश्ता माँ-बेटे का,

जिससे वह हमेशा वंचित रहा,

ममता के लिए वो तड़पता रहा,

फिर भी वह चुप था|


पिता तो करते थे प्यार उसे,

ले आये नयी माँ उसके लिए,

फिर भी मिल न पाया प्यार उसे,

माँ की ममता का दुलार उसे,

फिर भी वह चुप था|


पर सच कहते हैं कि,

माँ-बेटे का रिश्ता अटूट है,

जीवन के हर समतल मे,

आती थी याद माँ की उसे|


कहता था मुझसे वह ये,

बहुत याद आती है माँ की मुझे,

चुप रह लूँगा मै सह लूँगा,

अब जाने दे मुझे जाने दे|


फिर चुपके से रातो मे उसने,

अपनी सासों को थाम लिया,

जाकर रहूँगा माँ के पास,

यह मन में उसने ठान लिया,

दर्द से झटपटता रहा वह,

फिर भी वह चुप था|

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वर्तिका जी ! अच्छी रचना है |

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